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Showing posts from 2011

पूर्वोत्तर की अनोखी शमां

  पूर्वोत्तर की मिलजुली संस्कृति के अनोखे संगम के साथ लोगों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से रायपुर में सांस्कृतिक कार्यक्रम ऑक्टेव 2011 की बेमिसाल शुरूआत हुई..खुले आसमां तले तीन स्तरीय मंच पर पूर्वोत्तर का खनकदार नृत्य..अंग-अंग की खास भाव-भंगिमा का मोहक असर..मृदंग की थाप, बांसुरी की तान और झाल की झनक..नृत्यप्रेमियों का हुजूम..साथ में गुलाबी ठंड का सुहाना मौसम..मानो संध्या की धड़कन में पावों की थिरकन हो रही हो रवां..ऑक्टेव 2011 में पुलिस लाईन ग्राउंड में रंग-बिरंगी रोशनी के बीच जीवंत हो रहा था यह नजारा.. कार्यक्रम का आकर्षण पारंपरिक फैशन शो के रूप में सामने आई..इसमें आठों राज्य के लोगों ने अपने-अपने राज्य के परिधानों के साथ कैटवाक किया..नगालैंड, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय आदि प्रदेशों के कलाकारों ने भी अपने परिधानों से दर्शकों पर छाप छोड़ी..इसके बाद इन राज्यों के लोकनृत्यों की बारी थी..मणिपुर के थांग ता व ढोल ढोलक चोलम की प्रस्तुति..मणिपुर में याओशांग यानी होली के मौके पर इसकी प्रस्तुति की जाती है..भक्तिरस से परिपूर्ण इस नृत्य का प्रमुख

F1 रेस: रफ्तार का महासंग्राम

30 अक्टूबर रविवार दोपहर 3 बजे जिगर थाम के बैठने का समय आ गया था..जब इंडियन ग्रांप्री फॉर्मूला वन रेस में रविवार को विश्व के शीर्ष 24 फॉर्मूला वन ड्राइवरों के बीच रफ्तार की बादशाहत के लिए जबरदस्त होड़ देखने को मिली..क्रिकेट, हॉकी, कुश्ती, मुक्केबाज़ी, तैराकी, तीरदाज़ी तरह-तरह के खेलों से हम अच्छी तरह वाकिफ हैं..लेकिन भारत में इन दिनों जिस खेल की चर्चा है..वो है फ़ॉर्मूला वन.दरअसल 30 अक्तूबर को भारत में पहली बार फ़ॉर्मूला वन रेस आयोजित किया गया था..इसके लिए विशेष ट्रैक बनाया गया..इस रेस के दौरान कारें जब ३०० किमी./घंटा की रफ्तार से ट्रैक पर गुजरी तो उसके रोमांच को चाहे वो टीवी पर लाइव देख रहे हों..य़ा सजीव आंखों से..सभी कारों की कानफाड़ू गर्जना, हाई स्पीड फ्यूल से निकलता घना धुआं, ट्रैक पर उड़ती धूल और ट्रैक पर घिसटते टायरों के निशान के बीच जो ड्राइवर सबसे तेज समय निकालने में सफल हो रहा था..उसे देखकर सब आश्चर्यचकित हो रहे थे..इस खेल के बारे में मैंने बीबीसी से कुछ जानकारियां इक्ट्ठी की..जिससे मुझे इस खेल के बारे में कई रोचक बातें जानने को मिली.. फ़ार्मूला वन  ये खेल मोटर स्पोर्ट्स का हि

कहां तुम चले गए..

लाखों दिलों पर राज करने वाले गजल सम्राट हम सभी को अलविदा कह गए..गजल की दुनिया का चमकता-दमकता सितारा हमारे बीच से चला गया..हमेशा के लिए जगजीत सिंह हमें छोड़ गए..लेकिन अपने गीतों के बीच वे अमर हो गए हैं.. होठों से छू लो तुम..., ये दौलत भी ले लो..., होशवालों को खबर क्‍या..., हजारों ख्‍वाहिशें ऐसी..., हाथ छूटे भी तो..., जैसे अनगिनत सुरीली गजलों को आवाज देने वाले जगजीत सिंह अब नहीं रहे..ब्रेन हमरेज से जूझ रहे जगजीत सिंह का आठ बजकर 10 मिनट पर देहांत हो गया है..जगजीत सिंह के निधन के साथ ही मौसिकी की दुनिया का एक कालखंड समाप्‍त हो गया..प्रख्यात गजल गायक  जगजीत सिंह ने अपनी मखमली आवाज के जरिए गजलों को नया जीवन दिया..वह अपने जीवन के70वें साल का जश्न अनोखे ढंग से मनाना चाहते थे..उनकी इस साल 70 संगीत समारोहों में शिरकत करने की हसरत थी लेकिन सोमवार को अपने निधन से पहले तक वह केवल 46 संगीत समारोहों में ही शामिल हो सके थे.. सिंह ने पंडित छगनलाल शर्मा और उस्ताद जमाल खान से संगीत की शिक्षा ली थी..उनकी गजल व भजन गायन की अलग शैली ने उन्हें बहुत जल्दी जाना-पहचाना नाम बना दिया, 70 व 80 के दशक में उनकी ता

बॉडीगार्ड एक प्रेम कहानी

फिल्म बॉडीगार्ड एक प्रेम कहानी है..और इसका क्लाइमैक्स काफी दमदार है..इस फिल्म को सलमान की एक्टिंग और एक बेहतरीन क्लाइमैक्स के लिए जाना जाएगा..फिल्म में लवली सिंह एक बॉडीगार्ड है और वह एक ही एहसान चाहता है कि उस पर किसी किस्म का एहसान ना किया जाए..उसे दिव्या की रक्षा का जिम्मा सौंपा जाता है..परछाई की तरह लवली उसके साथ लग जाता है और इससे दिव्या परेशान हो जाती है..लवली से छुटकारा पाने के लिए दिव्या फोन पर छाया बनकर लवली सिंह को प्रेम जाल में फांसती है..लवली भी धीरे-धीरे छाया को बिना देखे ही चाहने लगता है..किस तरह से दिव्या अपने ही बुने हुए जाल में फंस जाती है यह फिल्म का सार है..कुछ बढ़िया एक्शन दृश्यों के बाद प्रेम कहानी शुरू हो जाती है..फर्स्ट हाफ तक तो ठीक लगता है, लेकिन इसके बाद यह खींची हुई लगने लगती है..लेकिन क्लाइमेक्स में कई उतार-चढ़ाव आते हैं जिससे दर्शक एक बार फिर फिल्म से बंध जाता है..फिल्म के अंत में कई संयोग देखने को मिलते हैं, और एक सुखद क्लाइमैक्स भी..कहानी कई सवाल उठाती हैं, जिसमें सबसे अहम ये है कि दिव्या जब सचमुच में लवली को चाहने लगती है तो वह असलियत बताने में इतना वक्त

आरक्षण नहीं शिक्षा की जरुरत

राजनीति के बाद निर्देशक प्रकाश झा ने एक बार फिर अपनी फिल्म आरक्षण के जरिए समाज से जुड़े एक अहम मुद्दे को उजागर किया है..ये फिल्म अलग-अलग नजरिए से हमें दिखाती है कि आरक्षण पर होने वाली राजनीति का शिकार अंत में आम जनता ही होती है..फिल्म में अमिताभ का डॉयलाग भारत में दो भारत बसते हैं..सहित कई संवाद दिल को झंकझोरने के लिए काफी है..फिल्म दो वर्ग की खाई को पाटने वाली है तोड़ने वाली नहीं..फिल्म में ये संदेश दिया गया है कि समाज के विकास के लिए एक मात्र रास्ता हर वर्ग, हर जाति के बच्चे को शिक्षा का बेहतर मौका देना है...ये प्रतिक्रिया महज सामान्य वर्ग के लोगों की ही नहीं हैं, जिस वर्ग के साथ मजाक किए जाने की बात कही जा रही है..फिल्म काफी अच्छी है, उसमें दो वर्गो को लड़ाने वाली बात पूरी तरह गलत है, इस फिल्म में बिहार के सुपर-30 की झलक दिखाई देती है.. फिल्म में प्रभाकर आनंद (अमिताभ बच्चन) और सुपर-30 के आनंद कुमार के पढ़ाने की शैली एक है..अमिताभ का फिल्म में गणित (मोड जेड =1) की पढ़ाई यहां के गणितज्ञ आनंद से बिल्कुल मिलती-जुलती है...इस फिल्म की शूटिंग के पूर्व फिल्म के निर्देशक प्रकाश झा ने सुपर-30

पत्रकारों का एनकाउंटर करने पर अमादा छत्तीसगढ़ पुलिस...

छत्तीसगढ़ में पुलिस बेखौफ हो गई है..कभी खुलेआम पुलिस अपने मातहत अधिकारियों के सामने गार्ड को लात-घूंसे से मारती हैं..तो कभी बीच सड़क पर पत्रकारों पर अपनी दबंगई दिखाती है..नक्सल मोर्चे पर छत्तीसगढ़ पुलिस की फर्जी मुठभे़ड़ की कई दास्तां जगजाहिर है..लेकिन अभी तक बेकसूर आदिवासियों को फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने वाली छत्तीसगढ़ पुलिस के निशाने पर आम लोगों की आवाज उठाने वाले पत्रकार हैं..छत्तीसगढ़ के दूरस्थ आदिवासी अंचलों में पुलिस की फर्जी मुठभेड़ की लंबी फेहरिस्त है..लेकिन अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आदिवासी अंचलों में पुलिस के फर्जी मुठभेड़ों को सामने रखने वाले पत्रकारों को उनका एनकाउंटर कर देने की धमकी देने का सनसनीखेज मामला सामने आया है.. दरअसल गुरूवार दोपहर जब छत्तीसगढ़ पुलिस के तमाम अधिकारी अपने चैंबर में पहुँचकर अपने काम में मशगूल हो गए..तब इन तमाम अधिकारियों के गनमैन और ड्राइवर ने पुलिस मुख्यालय को जुए का अड्डा बना दिया..ऐसे में साधना न्यूज मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ ने अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए पुलिस मुख्यालय में जवानों द्वारा लंबे-लंबे जुए का दांव लगाते हुए

नक्‍सली इलाके में जवानों के लिए अंधेरे में चिराग बन गए पत्रकार

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से महज 170 किलोमीटर की दूरी पर हुई नक्सली घटना में पत्रकारों ने पुलिस के लिए अंधेरे में चिराग की तरह काम किया.. दरअसल भारी बारिश, घनघोर अंधेरा.. पहाड़ी रास्ते. और नक्सली खौफ के बीच रायपुर से निकले कुछ इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार पुलिस से पहले घटनास्थल पर पहुँच गए.. जब वे इतनी विषम परिस्थितियों में फुटेज बनाकर राजधानी की तरफ लौट रहे थे.. तभी घटनास्थल पर पहुँचने की कोशिश कर रही पुलिस की टीम ने उन मीडियाकर्मियों को रोक लिया. मीडियाकर्मियों पर पहले पुलिस ने संदेह करते हुए सवालों की झड़ी लगा दी.. पुलिस की टीम जब पूरी तरह से आश्वस्त हो गई कि उनकी कस्टडी में खड़े लोग मीडियाकर्मी हैं.. तो उन्होंने पहले तो पूरा वीडिया फुटेज देखा.. उसके बाद घटनास्थल की पूरी जानकारी लेने के बाद घटनास्थल पर चलने को कहा.. अपने सामाजिक दायित्वों को समझते हुए भारी बारिश और नक्सली खौफ के बीच मीडियाकर्मी पुलिस के साथ पैदल मार्च करते हुए घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.. पत्रकारों की इस पहले से तीन घंटे के बाद पुलिस वाले गुरुवार की सुबह मौका-ए-वारदात पर पहुँचे.. जहां का मंजर काफी भयावह था..

जिंदगी न मिलेगी दोबारा

जिंदगी क्या है..जितनी बहस की जाए..उतनी कम है.....लेकिन जोया अख्तर की फिल्म जिंदगी न मिलेगी दोबारा में जिंदगी के मायने को समेटने की कोशिश की गई है..जिंदगी ना मिलेगी दोबारा..निश्चित तौर पर किसे क्या पता..उसे यह जिंदगी दोबारा मिलेगी या नहीं..जिंदगी एक कारवां है..जिंदगी एक सफर है..इस सफर को अपने अपने अंदाज में हर कोई जीना चाहता है..लेकिन जिंदगी में इतने उतार-चढ़ाव आते हैं कि कोई जिंदगी के थपेड़ों को हंसते हंसते सह जाता है..तो कोई इन थपेड़ों का सामना नहीं कर पाता..जिंदगी ना मिलेगी दोबारा हमें जिंदगी में किसी भी बात का अफसोस न करने की सीख देती है..वह बताती है कि कैसे आप अपने आज को खुशहाल बना कर भविष्य को भी सुरक्षित और खुशियों से भरपूर बना सकते हैं..जिंदगी न मिलेगी  दोबारा  उन आजाद परिंदों के इर्द-गिर्द घूमती है, जिनकी जिंदगी में अपनी-अपनी कुछ परेशानियां हैं...लेकिन इसके बावजूद वे उसे छुपा कर नए तरीके से अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं..जिंदगी के हर स्वाद का मजा कैसे लिया जाता है..यह फिल्म के तीन किरदारों को देख कर आप अनुमान लगा सकते हैं..जिसे देखकर आप को भी एहसास होगा कि ये किरदार कहीं आप ही त

13 का घिनौना खेल...

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई बुधवार को एकबार फिर एक के बाद एक तीन धमाकों से दहल उठी.शहर के भीड़भाड़ वाले झावेरी बाजार, दादर तथा चरनी रोड के ओपरा हाउस में हुए विस्फोटों में धमाकों से कई लोग काल के गाल में समा गए..और सैकड़ों घायल हो गए..बेकसूरों की मौत का आखिर जिम्मेदार कौन है..आखिर कब तक..बेकसूरों की खून ऐसी हो कब तक बहती रहेगी..धमाके के पीछे इंडियन मुजाहिदीन के हाथ होने की आशंका जताई जा रही है..इस आशंका के पीछे पुख्ता तर्क भी हैं..जब-जब इंडियन मुजाहिदीन ने धमाके किए उसने 13 और 26 तारीख को ही इसके लिए चुना..यही नहीं, उसने अब तक धमाके के लिए शाम 6 से 7 बजे के वक्त को ही चुना..आज भी 13 तारीख है और तीनों धमाके शाम 6 से 7 के बीच हुए हैं..गौरतलब है कि इससे पहले 13 और 26 तारीख को अहमदाबाद और दिल्ली में धमाके हुए थे..बुधवार हुए धमाकों का पैटर्न भी इंडियन मुजाहिदीन द्वारा पहले कराए गए धमाकों से मिलती-जुलती है...हालांकि अभी तक किसी ने हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है.. इंडियन मुजाहिदीन अक्सर हमले के बाद हमले की जिम्मेदारी का मेल न्यूज चैनलों को भेजती है.. मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकवादी हमल

भारतीय रेल का दुर्भाग्य!

10 जुलाई रविवार का दिन रेल इतिहास के लिए सबसे काला दिन साबित हुआ..एक ही दिन हुए दो रेल हादसों ने रेलवे की पोल खोल दी...असम और उत्तर प्रदेश में इन रेल हादसों ने एक बार फिर रेलवे को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं..सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्‍या रेलवे नेताओं के लिए वोट बटोरने का जरिया बन गया है और यात्रियों की जान की चिंता किए बिना नेता अपना हित साधने के लिए रेलवे का दोहन कर रहे हैं..रेल हादसे के बाद मुसाफिरों के आंखों में आंसू भी नहीं बचे..वहीं इन आंसू पर राजनीतिक पार्टियां सियासत करती नजर आ रही है..आखिर ये रेल हादसे कब रूकेगा..इसका जवाब किसी भी सफेदपोश के पास नहीं है..आईए थोड़ा गौर फरमाते हैं..पिछले कुछ सालों में हुए रेल हादसों के बारे में.. 03 दिसम्बर 2000- पंजाब के सराय बंजारा और साधूगढ़ के बीच हावड़ा-अमृतसर एक्सप्रेस एक मालगाडी़ से जा टकराई थी। इस भिड़ंत में 46 यात्री मारे गए थे जबकि 130 से अधिक घायल हुए थे। 22 जून 2001- केरल के कोझीकोड़ के निकट मैंगलोर चेन्नई एक्सप्रेस के कादालुंडी नदी में गिर जाने से 40 रेल यात्री मौत का शिकार बने थे। 5 जनवरी 2002- सिकंदराबाद-मनमाड़ एक्सप्रेस महाराष्ट्

रायपुर में पत्रकारों पर हमला, तीन के सिर फूटे

देश में वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे हत्याकांड में पुलिस की जांच अभी खत्म ही नहीं हुई कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में बुधवार रात पत्रकारों पर फिर से कातिलाना हमला किया गया. छत्तीसगढ़ में पत्रकारों पर हमला कोई नई बात नहीं है. पिछले छह महीने के अंदर प्रदेश में दो पत्रकारों की निर्मम हत्या की जा चुकी है, वहीं करीब दर्जन भर पत्रकारों पर कातिलाना हमला किया जा चुका है. बावजूद इसके प्रशासन इन घटनाओं से सबक नहीं ले रही. और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारों की जान आफत में है. बुधवार रात राजधानी रायपुर की घटना को ही लिया जाए. कचहरी चौक पर स्थित महिंद्रा होटल में मौजूद कुछ असामाजिक तत्वों और गुंडों आधा दर्जन पत्रकारों की बेदम पिटाई कर दी. होटल में एक कंपनी की पार्टी थी. पत्रकारों को उसी में आमंत्रित किया गया था. होटल में मौजूद असामाजिक तत्वों ने भोजन बनाने वाले लोहे के बड़े सामानों से पीटा. मारपीट में तीन पत्रकारों के सिर फूट गए. पत्रकारों का हाल देखकर राजधानी के मीडिया कर्मियों ने गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने सिविल लाइन थाने का घेराव कर दिया. पत्रकारों के उग्र प्रदर्शन को देखते

मौत के खतरे को उठाकर घटनास्थल पर पहुंची साधना की टीम

  नक्सली गढ़ से साधना न्यूज की लाइव तस्वीरें : समुद्र तल से 2500 फीट पर पहुँची साधना न्यूज की ओवी : नक्सलियों के दुर्गम इलाके गरियाबंद के आमामोरा की पहाड़ियों पर साधना न्यूज : साधना न्यूज ने छत्तीसगढ़ के दुर्गम नक्सली क्षेत्र गरियाबंद के आमामोरा के पहाड़ियों से लाइव दिखाकर अटकलों पर विराम लगाया. यह इलाका 2500 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है, जहां चारपहिया गाड़ी से पहुँचना जोखिम भरा है. पगडंडी रास्ते, पहाड़ की ऊंची-नीची राहें, नुकीले पत्थर, घुमावदार रास्ते, जहां एक छोटी सी चूक का मतलब मौत से सीधा सामना हो सकता है.ऐसे में इस रास्ते पर 42 किलोमीटर का सफर करना और घटनास्थल पर पहुँचना साधना न्यूज की टीम के लिए खतरों से कम नहीं था.ऊंची पहाड़ियों पर बढ़ते-बढ़ते कभी-कभी ऐसा लागता था कि बस अब नहीं, आगे नहीं जाया जा सकता. उस वक्त टीम का हर सदस्य एक-दूसरे का हौसलाअफजाई करते हुए ओवी को आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित कर रहा था. रात का सन्नाटा और कभी कभी अजीबोगरीब आवाजें. कहीं नक्सलियों द्वारा बिछाए गए बारूदी सुरंग की चपेट में आने की अनहोनी. ये सभी बातें मन में उमड़-घुमड़ रही थी. कहीं-कहीं तो कच्ची राह

पत्रकारों ने बचाई पुलिस अधिकारी की जान

रायपुर में पुलिस दिखी लाचार.... पुलिस को पड़ गए जान के लाले.. अपने ही पुलिस अधिकारियों को छोड़ भाग खड़े हुए पुलिसकर्मी.. भीड़ के सामने पुलिस बेबस... मीडियाकर्मियों ने बचाई पुलिस अधिकारी की जान.. राजधानी के समीप मंदिरहसौद में एक हत्या के मामले में जमकर बवाल हुआ.. गांव वालों ने आरोपी अखिलेश मिश्रा औऱ उसके परिवार वालों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर पहले उसके घर औऱ बाद में पुलिस वालों पर पथराव किया.. जिससे आरंग के थानेदार लालचंद मोहले सहित तीन पुलिसकर्मी घायल हो गए.. मंदिरहसौद में आक्रोशित भीड़ के सामने पुलिस लाचार दिखी.. लिहाजा पुलिस वाले अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागते नजर आए.. वहां मौजूद मीडियाकर्मियों ने पुलिस वालों पर बरसते पत्थर से उन्हें बचाया और उन्हें अस्पताल तक पहुँचाने में मदद की. यहां मीडिया ने अपनी जवाबदारी समझी.. लेकिन पुलिस ने 4 मई को हुई घटना के बाद से अपनी जवाबदारी से मुंह मोड़ा.. जिसकी वजह से इतना बवाल खड़ा हुआ.. दरअसल मंदिर हसौद थाना अंतर्गत बजरंग चौक इलाके से 4 मई की रात एक युवक को गंभीर रूप से घायल अवस्था में सड़क पर पाया गया.. बाद में स्थानीय लोगों की सहायता से यु

आई एम इन हांटेड

भारत में गिनी-चुनी 3-डी फिल्में बनी हैं..अब थ्री-डी फिल्मों का दौर फिर शुरू हो गया है इसलिए वर्षों बाद हांटेड नामक 3-डी फिल्म जब सामने आई..तो इसे देखे बिना मैं नहीं रह सका...लेकिन इस फिल्म के देखने के साथ ही मेरे साथ ही इस फिल्म की पटकथा जैसी कुछ घटना घटी..जिसकी वजह से मैं उसे पल को शब्दों में बांध कर सहजने की कोशिश कर रहा हूँ...दरअसल इस फिल्म में नायक नायिका को बचाने के लिए अस्सी साल पहले जाता है.और अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर नायिका की जिंदगी संवार देता है..इस फिल्म को देखने के बाद मन में उतना भय तो नहीं हुआ..लेकिन फिल्म देख कर जब मैं बाहर निकला तो आसमान में गरजते-घुमरते बादलों से जमीन पर गिर रही बूंदों ने मन में जरूर भय पैद कर दिया..बेमौसम बारिश से जहां मई की चिल्लाती धूप से राहत मिली...वहीं मुझे यह भी खराब लग रहा था कि काफी मेहनत कर आज अपने रूम की सफाई करने के बाद कपड़े, जूत्ते, चादर और गद्दे धूप में डालकर फिल्म देखने आया था..मुझे यहां हांडेट के नायक से ईर्ष्या भी हो रही थी कि मैं भी नायक की तरह कुछ पल पीछे चला जाता और अपने मेहनत को इस तरह बारिश की बूंदों में बरबाद नहीं होने देता.