छठ की छटा....जो पहले कुछ प्रदेशों तक ही सिमटी हुई थी...लेकिन जैसे-जैसे इन प्रदेशों के लोग बाहर निकले...इस पर्व की छटा भी काफी बिखरी...सौभाग्य से मैं भी इसी प्रदेश से ताल्लुक रखता हूँ...लेकिन काम की व्यस्ता के कारण पिछले चार सालों से इस पर्व पर अपने घर नहीं जा सका..इस पर्व पर कोई कितना दूर क्यों ने हो..वह सारे काम छोड़ कर अपने घर जरूर पहुँचता है..घर के बड़े-बुजुर्ग भी यही सलाह देते हैं....लेकिन समय को कुछ और ही मंजूर होता है...लेकिन आज जब मैं घर से दूर रायपुर में हूँ...मुझे इस पर्व पर थोड़ा भी यह एहसास नहीं हुआ कि मैं अपने प्रदेश से कटा हुआ हूँ...छठ की वैसी ही छटा यहां देखने को मिली... छठ - दो अक्षरों का चार दिनी त्योहार..लोक आस्था का महापर्व..कोई आडंबर नहीं...साफ-सफाई का खास ख्याल...दिवाली में जहां घरों की सफाई होती है, छठ में उससे आगे बढ़कर गलियों, सड़कों और नदियों-तालाबों के किनारों की...कहीं कोई गंदगी नहीं हो - यह ख्याल पूजा के पकवान बनाने से लेकर सूर्य को अर्घ्य देते समय खास रखा जाता है...नदियों-जलाशयों-सूर्य-फलफूल यानी पूरी प्रकृति की आराधना का अवसर..उदीयमान के साथ-साथ अस्ताचलग
अफसानें होते हैं... सुनने और सुनाने के.. पढ़ने और पढ़ाने के... आपका, मेरा मेरी जिंदगी का... मेरी पत्रकारिता का... यह अफसाना कहता हूँ सुनाता हूँ जो खोया है वो बताता हूँ कहां-कहां से ढूँढ़ता हूँ मिलते हैं जहाँ जहाँ से सिर्फ-सिर्फ अफसानें हमारे तुम्हारे मिलते हैं मुस्कुराते हैं अफसाने और कुछ कह जाते हैं अफसाने