Skip to main content

जिंदगी न मिलेगी दोबारा



जिंदगी क्या है..जितनी बहस की जाए..उतनी कम है.....लेकिन जोया अख्तर की फिल्म जिंदगी न मिलेगी दोबारा में जिंदगी के मायने को समेटने की कोशिश की गई है..जिंदगी ना मिलेगी दोबारा..निश्चित तौर पर किसे क्या पता..उसे यह जिंदगी दोबारा मिलेगी या नहीं..जिंदगी एक कारवां है..जिंदगी एक सफर है..इस सफर को अपने अपने अंदाज में हर कोई जीना चाहता है..लेकिन जिंदगी में इतने उतार-चढ़ाव आते हैं कि कोई जिंदगी के थपेड़ों को हंसते हंसते सह जाता है..तो कोई इन थपेड़ों का सामना नहीं कर पाता..जिंदगी ना मिलेगी दोबारा हमें जिंदगी में किसी भी बात का अफसोस न करने की सीख देती है..वह बताती है कि कैसे आप अपने आज को खुशहाल बना कर भविष्य को भी सुरक्षित और खुशियों से भरपूर बना सकते हैं..जिंदगी न मिलेगी दोबारा उन आजाद परिंदों के इर्द-गिर्द घूमती है, जिनकी जिंदगी में अपनी-अपनी कुछ परेशानियां हैं...लेकिन इसके बावजूद वे उसे छुपा कर नए तरीके से अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं..जिंदगी के हर स्वाद का मजा कैसे लिया जाता है..यह फिल्म के तीन किरदारों को देख कर आप अनुमान लगा सकते हैं..जिसे देखकर आप को भी एहसास होगा कि ये किरदार कहीं आप ही तो नहीं हैं..एक तरह से कहा जाए तो फिल्म जिंदगी न मिलेगी दोबारा जिंदगी में दोस्ती, प्यार एवं परिवार की अहमियत की कहानी है.. दोस्ती की अहमियत जिंदगी में क्या होती है..फिल्म दर्शाती है...आप भले ही कितनी भी दूर रहें..लेकिन सच्चे दोस्त आपकी परेशानी समझ लेते हैं..और उन्हें सुलझाने की कोशिश भी करते हैं..एक बिंदास, बेफिक्र दोस्ती की भी कहानी है जिंदगी..कोई दिखावापन नहीं, इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है..फिल्म में दो दोस्तों के बीच हुई गलतफहमियों की वजह से आए दो दोस्तों के खटास को केवल संवादों के हवाले से ही समझाने की कोशिश की गई है..कुल मिलाकर कहा जाए तो निर्देशक जोया अख्तर की फिल्म जिंदगी न मिलेगी दोबारा एक खूबसूरत फिल्म है..इस फिल्म को कोई भी किसी नजरिए से देखेगा..खूबसूरत ही नजर आएगी..फिल्म में कबीर (अभय देओल) की शादी होने वाली है..वह अपने दो पुराने दोस्तों के साथ स्पेन की बैचलर ट्रिप पर जाना चाहता है..दूसरे दोस्त हैं कॉपी राइटर और कवि इमरान (फरहान अख्तर) और फाइनेंशियल ब्राकर अर्जुन (रितिक रोशन)..इमरान के पास भी स्पेन जाने का मिशन है लेकिन हरदम पैसे कमाने में लगे हुए और चालीस के बाद रिटायर होने की प्लानिंग कर चुके अर्जुन को मनाने में ट्रिप से जोड़ा जाता है. तीनों दोस्त ट्रिप पर निकलते हैं..यह यात्रा उनके बीते हुए दिन लौटाती है और जब वापस लौटते हैं तो उनकी जिंदगी एकदम से बदल गई है..असल में यह केवल इन तीन दोस्तों की नहीं, बल्कि हमलोगों के लिए भी एक तरह से स्पेन की यात्रा है..करीब पौने तीन घंटे की इस यात्रा में स्पेन की अनछुई लोकेशन्स का आनंद लेते हैं और एक जीवन दर्शन तो साथ चलता ही है..जिंदगी से उठाए किस्से और कुछ जिंदगी में वांछित रोमांच सिनेमा के पर्दे पर है..दरअसल पूरी कहानी में प्यार, पैसा और खुद की तलाश में सारे पात्रों का एक समानांतर संघर्ष है लेकिन वह ऊबाऊ नहीं लगता और सारे पात्र युवा पीढ़ी के प्रतिनिधि चरित्रों की तरह उभरकर आए हैं..कबीर ( अभय देओल ) की अपनी दोस्त नताशा ( कल्कि कोचलीन ) के साथ सगाई हो चुकी है , कबीर की सगाई किन हालात में और कैसे हुई इस बारे में कबीर बात करना नहीं चाहता..सगाई के बाद कबीर का सपना अपने कालेज के खास दोस्तों इमरान ( फरहान अख्तर ) और अर्जुन ( रितिक रोशन ) के साथ लंबी जर्नी पर जाकर बैचलर पार्टी करने का है..स्टडी पूरी होने के बाद तीनों ने यही सपना देखा , लेकिन कॉपी राइटर के काम में लगे इमरान और बैंकिंग बिजनेस में बिजी हो चुके अर्जुन के पास इसे पूरा करने के लिए वक्त नहीं बचा..खैर , कबीर पहली बार इमरान को तो इस जर्नी में साथ चलने को राजी कर लेता है..वहीं , अर्जुन वक्त न होने की बात कहकर बचना चाहता है..आखिरकार , कबीर और इमरान , अर्जुन को अपनी पुरानी दोस्ती का वास्ता देकर साथ चलने को राजी करते हैं...बार्सिलोना से जर्नी की शुरुआत में तीनों अपने अंदर छिपी खामियों और डर को खत्म करने का फैसला करते हैं..उनकी मुलाकात लैला ( कटरीना कैफ ) से होती है , जिंदगी के हर पल को इन्जॉय करने वाली बिंदास लैला से मिलने के बाद अर्जुन लैला को चाहने लगता है..वहीं , इमरान को इस दौरान किसी से मिलना है तो कबीर को उस डर पर भी जीत हासिल करनी है , जो उसे अनचाहे अपनी मंगेतर बनी नताशा और उसकी फैमिली के सामने कबूल करनी है..इस दौरान कई बार मतभेद भी उभरते हैं जो अगले पल खत्म हो जाते हैं तो इनको अपने अंदर छिपे मौत के डर को निकालने का मौका मिलता है..ऐसे में इस रोमांचक जर्नी को इन्जॉय करने के बाद जब तीनों दोस्त वापस लौटते हैं तो जिंदगी के प्रति उनका नजरिया पूरी तरह से बदल चुका होता है....फिल्म के भीतर इस्तेमाल जावेद अख्तर की कविताएं अच्छी लगती हैं..एक तरह पूरी फिल्म की कविता की तरह बहती है..अंत में थोड़ी देर के लिए ही सही, फिल्म जिंदगी जीने का एक नया नजरिया देती है..जिंदगी ना मिलेगी दोबारा जिंदगी के प्रति सोच को सकारात्मक करने में मददगार साबित होती है..मैच्योर ट्रीटमेंट है, जो इंडस्ट्री में एक नए सिनेमा की स्थापना करता है....

Comments

Popular posts from this blog

मीडिया का व्यवसायीकरण

  मीडिया का व्यवसायीकरण होता जा रहा है..व्यासायी घराने अपना हित साधने के लिए मीडिया और उसके संसाधनों का जबरदस्त दोहन कर रहे हैं...उनके हित के आगे खबरों की कोई अहमियत नही..चाहे वह खबर सामाजिक सारोकार से ही जुड़ा हुआ मुद्दा क्यों न हो...जब हम लोगों को एक पत्रकार के रूप में दायित्वों को बताया गया तब हमने सोचा  था कि हम अपने दायित्वों के लिए किसी से समझौता नहीं करेंगे...लेकिन दायित्वों का पढ़ाया गया पाठ अब किताबों तक ही सीमित रह गया है...कौन सी खबर को प्रमुखता से दिखाना है..और कौन सी खबर को गिराना है...ये वे लोग निर्धारित करने लगे हैं..जिनका पत्रकारिता से कोई सारोकार नहीं है...आज का पत्रकार सिर्फ कठपुलती बन कर रह गया है...डमी पत्रकार..इन्हें वहीं करना है...जो व्यसायी घराने के कर्ता-धर्ता कहें..मीडिया के व्यवसायीकरण ने एक सच्चे पत्रकार का गला घोंट दिया है..घुटन भरे माहौल में काम की आजादी छीन सी गई है..व्यवसायी घरानों ने मीडिया को एक जरिया बनाया है..जिसके जरिए वह सरकार तक अपनी पहुँच बना सके..और अपना उल्लू सीधा कर सके..अपना हित साधने के लिए इन्होंने मीडिया को आसान जरिया चुना है...मीडिया के इस

लाइव एनकाउंटर ऑन द टेलीविजन !

आज की नई पीढ़ी कल्पना में जी रही है...फेंटेसी में यह नई-नई कहानियां बुनते रहते हैं...कभी स्पाइडर मैन...कभी सुपर मैन बनकर यह दूसरों से लड़ते हुए अपने-आप को सपने में देखते हैं..लेकिन जब सपना टूटता है..तो इन्हें अपने हकीकत का एहसास होता है....लेकिन कभी-कभी सपनों को यह हकीकत का अमलीजामा पहनाने की कोशिश करते हैं...जिसके कारण ये सलाखों के पीछे भी पहुँच जाते हैं...ऐसा ही कुछ हुआ है..रायपुर के स्कूली छात्र सुमेर सिंह के साथ...जो इसी फेंटेंसी करेक्टर की चक्कर में आज पुलिस की गिरफ्त में पहुँच चुका है..दरअसल यह महोदय एक न्यूज चैनल दफ्तर पहुँचकर खुद को सीबीआई एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बता रहे थे..इनके मुताबिक अब तक 28 एनकाउंटर करने के बाद इन्हें कोलकाता से छत्तीसगढ़ में नक्सली एनकाउंटर करने के लिए भेजा गया है...पुलिस को जब इसकी सूचना मिली तो उनके होश गुम हो गए..गिरफ्तारी के बाद सारा माजरा समझ में आया...पुलिस ने मीडिया बनकर इस सीबीआई एनकाउंटर स्पेशलिस्ट को पकड़ा... अब तक छप्पन, शूटआऊट एट लोखणंडवाला....जैसी फिल्मों से इंस्पायर यह जनाब खुद को सीबीआई एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बताते हैं..इन्हें नक्सलियों का लाइव

पूर्वोत्तर की अनोखी शमां

  पूर्वोत्तर की मिलजुली संस्कृति के अनोखे संगम के साथ लोगों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से रायपुर में सांस्कृतिक कार्यक्रम ऑक्टेव 2011 की बेमिसाल शुरूआत हुई..खुले आसमां तले तीन स्तरीय मंच पर पूर्वोत्तर का खनकदार नृत्य..अंग-अंग की खास भाव-भंगिमा का मोहक असर..मृदंग की थाप, बांसुरी की तान और झाल की झनक..नृत्यप्रेमियों का हुजूम..साथ में गुलाबी ठंड का सुहाना मौसम..मानो संध्या की धड़कन में पावों की थिरकन हो रही हो रवां..ऑक्टेव 2011 में पुलिस लाईन ग्राउंड में रंग-बिरंगी रोशनी के बीच जीवंत हो रहा था यह नजारा.. कार्यक्रम का आकर्षण पारंपरिक फैशन शो के रूप में सामने आई..इसमें आठों राज्य के लोगों ने अपने-अपने राज्य के परिधानों के साथ कैटवाक किया..नगालैंड, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय आदि प्रदेशों के कलाकारों ने भी अपने परिधानों से दर्शकों पर छाप छोड़ी..इसके बाद इन राज्यों के लोकनृत्यों की बारी थी..मणिपुर के थांग ता व ढोल ढोलक चोलम की प्रस्तुति..मणिपुर में याओशांग यानी होली के मौके पर इसकी प्रस्तुति की जाती है..भक्तिरस से परिपूर्ण इस नृत्य का प्रमुख