काफी दिनों के बाद एक अच्छी फिल्म आई है...जिसने जिंदगी के उन तारों को छेड़ दिया..जिससे हर कोई गुजरता है..थ्री इडियटस..नाम और विवाद..इस फिल्म के साथ जुड़ा हुआ है..लेकिन जिन शब्दों को चेतन भगत ने कागज पर उकरने का काम किया...उसे रूपहले पर्दे पर सजीव करने का काम किया..राजकुमार हिरानी और विधु विनोद चोपड़ा ने..विवाद जो भी है..लेकिन इस रस्साकस्सी में दर्शकों को एक अच्छी फिल्म देखने को मिली...फिल्म एक भी सेकेंड छोड़ने लायक नहीं है..फिल्म के हर किरदार के साथ हम अपने-आप को पाते हैं..कहीं-न-कहीं हम भी फिल्म के किसी किरदार में जुड़ाव महसूस करते हैं..जैसे मानो ये अपना बीता हुआ पल है..जहां हमे भी अपनी जिंदगी से समझौता करना पड़ा....औऱ जिन्होंने समझौता नहीं किया..वे बन गए इडियटस..काश मैं भी इडियटस हो पाता....इडियटस के मायने अंग्रेसी शब्दकोश में जो भी है...लेकिन बालीवुड में इस शब्द को एक नई पहचान दी है...पहले इडियटस सुनकर काफी गुस्सा आता था....लेकिन फिल्म देखने के बाद लगता है..इफ आई वर इडियटस..थ्री इडियटस सभी को भाने वाली फिल्म है...भाए भी क्यूं न, आखिर इसने सुपरहिट फिल्मों के लिए वीरान नजारे वाले बाल
अफसानें होते हैं... सुनने और सुनाने के.. पढ़ने और पढ़ाने के... आपका, मेरा मेरी जिंदगी का... मेरी पत्रकारिता का... यह अफसाना कहता हूँ सुनाता हूँ जो खोया है वो बताता हूँ कहां-कहां से ढूँढ़ता हूँ मिलते हैं जहाँ जहाँ से सिर्फ-सिर्फ अफसानें हमारे तुम्हारे मिलते हैं मुस्कुराते हैं अफसाने और कुछ कह जाते हैं अफसाने