मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना...सच्चे लगन के साथ किया गया काम जरूर सफल होता है..एवं नफरत अंदर ही अंदर किसी व्यक्ति के वजूद को खत्म करने का काम करती है...इन्हीं संदेशों को रूपले पर्दे पर सजीव करने का काम किया है...करण जौहर ने.अपनी फिल्म माई नेम इज खान के जरिए...ज्यादातर लोग धर्म के आधार पर राय बनाते हैं कि वह इंसान अच्छा है या बुरा है.9-11 के बाद इस तरह के लोगों की संख्या में जबर्दस्त इजाफा हुआ...अमेरिका और यूरोप में एशियाई लोगों के प्रति अन्य देशों के लोगों में नफरत बढ़ी....'टि्वन टॉवर्स' पर हमला करने वाले मुस्लिम थे, इसलिए सारे मुसलमानों को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा....जबकि व्यक्ति का अच्छा या बुरा होना किसी धर्म से संबंध नहीं रखता है....माई नेम इज खान में बरसों पुरानी सीधी और सादी बात कही गई है....दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं अच्छे या बुरे...इस लाइन के इर्दगिर्द निर्देशक करण जौहर और लेखिका शिबानी बाठिजा ने कहानी का तानाबाना बुना है.....उपरोक्त बातें यदि सीधी-सीधी कही जाती तो संभव है कि 'माई नेम इज खान' डॉक्यूमेंट्री बन जाती और शायद लोगों तक बात नहीं
अफसानें होते हैं... सुनने और सुनाने के.. पढ़ने और पढ़ाने के... आपका, मेरा मेरी जिंदगी का... मेरी पत्रकारिता का... यह अफसाना कहता हूँ सुनाता हूँ जो खोया है वो बताता हूँ कहां-कहां से ढूँढ़ता हूँ मिलते हैं जहाँ जहाँ से सिर्फ-सिर्फ अफसानें हमारे तुम्हारे मिलते हैं मुस्कुराते हैं अफसाने और कुछ कह जाते हैं अफसाने