10 जुलाई रविवार का दिन रेल इतिहास के लिए सबसे काला दिन साबित हुआ..एक ही दिन हुए दो रेल हादसों ने रेलवे की पोल खोल दी...असम और उत्तर प्रदेश में इन रेल हादसों ने एक बार फिर रेलवे को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं..सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या रेलवे नेताओं के लिए वोट बटोरने का जरिया बन गया है और यात्रियों की जान की चिंता किए बिना नेता अपना हित साधने के लिए रेलवे का दोहन कर रहे हैं..रेल हादसे के बाद मुसाफिरों के आंखों में आंसू भी नहीं बचे..वहीं इन आंसू पर राजनीतिक पार्टियां सियासत करती नजर आ रही है..आखिर ये रेल हादसे कब रूकेगा..इसका जवाब किसी भी सफेदपोश के पास नहीं है..आईए थोड़ा गौर फरमाते हैं..पिछले कुछ सालों में हुए रेल हादसों के बारे में..
03 दिसम्बर 2000- पंजाब के सराय बंजारा और साधूगढ़ के बीच हावड़ा-अमृतसर एक्सप्रेस एक मालगाडी़ से जा टकराई थी। इस भिड़ंत में 46 यात्री मारे गए थे जबकि 130 से अधिक घायल हुए थे।
22 जून 2001- केरल के कोझीकोड़ के निकट मैंगलोर चेन्नई एक्सप्रेस के कादालुंडी नदी में गिर जाने से 40 रेल यात्री मौत का शिकार बने थे।
5 जनवरी 2002- सिकंदराबाद-मनमाड़ एक्सप्रेस महाराष्ट्र के घाटनंदूर स्टेशन पर खड़ी़ एक मालगाड़ी से जा टकराई थी। इस हादसे में 21 रेल यात्रियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी जबकि 41 लोग घायल हुए थे।
23 मार्च 2002- मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर के निकट पटना से मुबंई जा रही लोकमान्य तिलक सुपरफास्ट एक्सप्रेस की 13 बोगियों के पटरी से उतर जाने से सात यात्री घायल हुए थे।
12 मई 2002- उत्तर प्रदेश के जौनपुर रेलवे स्टेशन पर नई दिल्ली से पटना जा रही श्रमजीवी एक्सप्रेस के पटरी से उतर जाने से 12 यात्री मौत की आगोश में समा गए थे।
04 जून 2002- उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद में एक रेल क्रॉसिंग पर कासगंज एक्सप्रेस एक बस से जा टकराई थी। इस हादसे में 34 लोगों की जान गई थी।
09 सितम्बर 2002- बिहार के औरंगाबाद जिले में हावड़ा दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस की बोगी के धावी नदी में गिर जाने से 100 यात्रियों की मृत्यु हुई थी जबकि 50 यात्री घायल हुए थे।
10 सितम्बर 2002- कोलकाता-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस के बिहार में पटरी से उतर जाने से 120 से अधिक यात्रियों की मौत हो गई थी।
15 मई 2003- अमृतसर जा रही फ्रंटरियर मेल की तीन बोगियों में आग लगने से रेल में सवार 38 यात्रियों को जान से हाथ धोना पड़ा था। इस हादसे में 13 लोग घायल हुए थे।
22 जून 2003- महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के वैभववाडी़ रेलवे स्टेशन को पार करते समय करवार-मुबंई सेंट्रल होलीडे स्पेशल रेलगाड़ी के पटरी से उतर जाने से 53 यात्रियों की मौत हुई थी जबकि 25 यात्री गंभीर रूप से घायल हुए थे।
2 जुलाई 2003- कर्नाटक के वारंगल में एक ट्रेन का इंजन और दो डिब्बे पुल से गिर गए जिसमें 18 लोगों की मृत्यु हो गई थी।
27 फरवरी 2004- पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर में गुवाहाटी जा रही कंचनजंघा एक्सप्रेस से मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग पर एक ट्रक को टक्कर मार दी जिसमें जिसमें 24 लोगों की मौत हो गई थी।
15 दिसम्बर 2004- पंजाब के जालंधर में अहमदाबाद जा रही जम्मू तवी एक्सप्रेस के एक लोकल ट्रेन से टक्कर होने से 11 महिलाओं समेत 34 लोग मरे और 50 घायल हुए।
18 अगस्त 2006- सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन पर चेन्नई हैदराबाद एक्सप्रेस के दो डिब्बों में आग लग गई।
09 नवम्बर 2006- पश्चिम बंगाल में हुई रेल दुर्घटना में 40 मरे और 15 घायल हुए।
01 दिसम्बर 2006- बिहार के भागलपुर में करीब डेढ़ सौ साल पुराना पुल गिरने से गुजर रही एक ट्रेन के 35 यात्री मरे और 70 घायल हुए।
14 नवम्बर 2009- जयपुर के बस्सी इलाके में दिल्ली आ रही मंडोर एक्सप्रेस के पटरी से उतर जाने से सात यात्रियों की मौत हो गई और 36 घायल हुए।
21 अक्तूबर 2009- उत्तर प्रदेश में मथुरा वृन्दावन रेल खंड पर बंजारा स्टेशन के पास मेवाड़ और गोवा एक्सप्रेस की टक्कर में 22 लोगों की मृत्यु हुई और 26 घायल हुए।
02 जनवरी 2010- घने कोहरे के कारण उत्तर प्रदेश में हुई तीन ट्रेन दुर्घटनाओं में 15 लोगों की मृत्यु हुई।
16 जनवरी 2010- उत्तर प्रदेश में ही घने कोहरे के कारण श्रमशक्ति एक्सप्रेस और कालिंदी एक्सप्रेस टकरा गई जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई और एक दर्जन से अधिक घायल हो गए।
22 मई, 2010। बिहार के मधुबनी जिले में एक मानव रहित रेलवे क्रासिंग पर हुए रेल हादसे में 16 लोगों की मौत हो गई।
28 मई 2010- नक्सलियों के फिश प्लेट हटाने से पश्चिम बंगाल और उडी़सा की सीमा पर ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने से 148 लोगों की मृत्यु हो गई थी।
3 जून, 2010। तमिलनाडु में एक मिनी बस और रेलगाड़ी के बीच टक्कर हो जाने से पांच लोगों की मौत हो गई।
19 जुलाई 2010- पश्चिम बंगाल के बीरभूम इलाके में सियालदह जा रही उत्तरबंगा एक्सप्रेस और वनांचल एक्सप्रेस की टक्कर में 60 यात्रियों की मृत्यु हुई।
20 सितम्बर, 2010 । एक रेलगाड़ी और एक मालगाड़ी के बीच टक्कर हो जाने से 21 लोगों की मौत हो गई और 53 घायल हो गए। यह हादसा मध्य प्रदेश के भदरवाह रेलवे स्टेशन पर हुआ था।
29 जनवरी, 2011 । कानपुर के भोगनीपुर तहसील में एक मानवरहित रेलवे क्रासिंग के पास जनसाधारण एक्सप्रेस ने एक ट्रैक्टर-ट्रॉली को टक्कर मार दी इससे दो लोगों की मौत हो गई।
22.06 यूपी के ही कांशीराम नगर जिले में पिछले बुधवार रात को एक मानवरहित रेलवे क्रासिंग पर बस और ट्रेन की टक्कर में 38 लोग मारे गए।
10 जुलाई2011....उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में हुई साल की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना में रविवार को हावड़ा-नई दिल्ली कालका एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से करीब 100 लोगों की मौत हो गई और 200 से अधिक लोग घायल हो गए.वहीं इसी दिन हुए एक विस्फोट असम में भी एक रेल हादसा हुआ..जिसमें 100 से अधिक यात्री घायल हो गए..
इन हादसों ने भारतीय रेलवे की कमजोरियों को उजागर कर दिया है..कालका बनी काल के बारे में तो सरकार भी अपना निकम्मापन नहीं छुपा पाई..वजह थी रेल विभाग को देखने वाला कोई नहीं था..यूपीए2 में रेलवे की बागडोर ममता बनर्जी को सौंपी गई थी..पश्चिम बंगाल में उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया..गठबंधन का दबाव झेल रही यूपीए सरकार इतना साहत नहीं जुटा पाई कि किसी और को इसकी जिम्मेदारी जुटा पाई...हावड़ा से दिल्ली जा रही कालका एक्सप्रेस में हुए हादसे के बाद किसी की तरफ से कोई बयान नहीं आया..आता भी कैसे क्योंकि रेलवे का कोई अगुआ ही नहीं है इस समय...हालात यह थे कि हादसे के 2 दिन बाद तक यह नहीं पता चला कि इसमे कितने लोगों की जान गई है और कितने लोग घायल हुए हैं..सेना कह रही है कि मरने वालों की संख्या 100 से ज्यादा है जबकि प्रशासन 70 लोगों के मारे जाने का दावा कर रहा है....रेलवे का यह हाल आज से ही नहीं है..दरअसल रेलवे का यह हाल गठबंधन में बनने वाली सरकारों ने किया है..इस विभाग के साथ हमेशा ही सौतेला व्यवहार किया जाता है..कभी भी गठबंधन की मजबूत पार्टी ने इसे अपने हाथ में नहीं रखा है..इसे हमेशा उन पार्टियों के हाथों में सौंप दिया जाता है जो सरकार बनाने के लिए जरूरी सीटों का जुगाड़ करती हैं..हमारे देश में जब से गठबंधन की सरकारों ने जोर पकड़ा है तब से रेलवे की हालत बद से बदतर होती गई..1996 में जब एनडीए ने कांग्रेस को पटखनी देते हुए केंद्र की सत्ता हासिल की थी तो प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने रेलवे की बागडोर अपने हाथ में ली थी..तब लगा था कि अब रेलवे की तकदीर बदल जाएगी..अटल बिहारी की सत्ता ज्यादा दिन टिक न सकी और 13 दिन बाद ही उनसे प्रधानमंत्री की कुर्सी भी गई और रेलवे फिर बेसहारा हो गया..इसके बाद जनता दल ने गठबंधन में अपनी सरकार बनाई..इसमें रामबिलास पासवान को रेलवे की बागडोर सौंपी गई..इसके बाद जब एनडीए ने जब 1998 में केंद्र में वापसी की तो उनसे भी रेलवे छिन गया..इसके बाद से रेलवे के साथ असली सौतेलापन शुरू हुआ..मंत्रिमंडल के गठबंधन के समय ऐसी बंदर बांट मचती थी कि जिसको जिस विभाग में फायदा नजर आता था वह उस विभाग पर अपना हाथ्ा रख देता था..रेलवे को कभी लीडिंग पार्टी का साथ ही नसीब नहीं हुआ..1998 में एनडीए की वापसी के समय भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी थी..इस बार रेलवे चला गया गठबंधन में शामिल पार्टी जनता दल यूनाइटेड के पास..नीतिश कुमार ने रेलवे की बागडोर संभाली..1 साल बाद ही गठबंधन में शामिल दीदी यानि कि ममता बनर्जी की नजर रेलवे पर पड़ गई..गठबंधन की मजबूरियों की वजह से एनडीए ने रेलवे विभाग तृणमूल कांग्रेस को दे दिया और ममता बनर्जी बन गईं रेलवे की अगुआ..वे 1999-2000 तक रेलवे मंत्री रहीं..एकबार फिर मंत्रिमंडल में फेरबदल हुआ और फिर से रेलवे की बागडोर नीतीश कुमार के पास फिर से रेलवे विभाग चला गया...इस बार वे 2001 से लेकर 2004 तक रेल मंत्री रहे..इस दौरान उन पर रेलवे को बदहाली की तरफ ले जाने का आरोप लगता रहा..इसके साथ यह भी बातें सामने आई थीं कि उन्होंने रेलवे को घाटे वाला विभाग बना दिया है...2004 में हुए लोकसभा चुनावों में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की..सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को कई पार्टियों से हाथ मिलाना पड़ा..सरकार बनी और एक गठबंधन भी बन गया जो कहलाया यूपीए..अब रेलवे विभाग को लेकर फिर से माथापच्ची हुई..इस बार रेलवे विभाग बिहार के पास यानि कि लालू प्रसाद यादव के पास चला गया...घाटे में चल रहे रेलवे को लालू प्रसाद यादव ने मुनाफा कमाने वाला विभाग बना दिया..लेकिन इस मुनाफे ने ट्रेनों का हाल बुरा कर दिया..इसके बावजूद लालू की इस दौरान खासी तारीफ हुई..इसके बाद यूपीए 2009 में दोबारा चुनकर लोकसभा पहुंची..पिछले शासनकाल में रेलवे की बागडोर संभालने वाले लालू प्रसाद यादव इस बार गठबंधन में शामिल नहीं थे..ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस रेलवे विभाग अपने पास ही रखेगा...तृणमूल कांग्रेस ने दबाव बनाकर रेलवे हथिया लिया और ममता बनर्जी एक बार फिर रेल मंत्री बन बैठी..इस शासनकाल में सबसे ज्यादा रेल डिरेल के मामले सामने आए...इसके बावजूद भी इस ओर ध्यान नहीं दिया गया..यहां तक कि नक्सिलियों ने रेल पर कब्जा भी कर लिया था..इसकी सुरक्षा में कोई चौकसी नहीं की गई...जब रेलवे मंत्री ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बन गई तो रेलवे लावारिस हो गया..दुनिया के सबसे बड़े रेलवे को चलाने वाला कोई भी नहीं था...अब जब कालका मेल हादसा हुआ है तो सरकार की नींद खुली है..लेकिन फिर से दबाव में आते हुए कांग्रेस रेलवे के साथ सौतेला व्यवहार कर रहा है..क्योंकि संभावनाएं जताई जा रही हैं कि किसी गठबंधन की पार्टी के पास जाने वाली है...
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