Skip to main content

Posts

Showing posts from July, 2011

नक्‍सली इलाके में जवानों के लिए अंधेरे में चिराग बन गए पत्रकार

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से महज 170 किलोमीटर की दूरी पर हुई नक्सली घटना में पत्रकारों ने पुलिस के लिए अंधेरे में चिराग की तरह काम किया.. दरअसल भारी बारिश, घनघोर अंधेरा.. पहाड़ी रास्ते. और नक्सली खौफ के बीच रायपुर से निकले कुछ इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार पुलिस से पहले घटनास्थल पर पहुँच गए.. जब वे इतनी विषम परिस्थितियों में फुटेज बनाकर राजधानी की तरफ लौट रहे थे.. तभी घटनास्थल पर पहुँचने की कोशिश कर रही पुलिस की टीम ने उन मीडियाकर्मियों को रोक लिया. मीडियाकर्मियों पर पहले पुलिस ने संदेह करते हुए सवालों की झड़ी लगा दी.. पुलिस की टीम जब पूरी तरह से आश्वस्त हो गई कि उनकी कस्टडी में खड़े लोग मीडियाकर्मी हैं.. तो उन्होंने पहले तो पूरा वीडिया फुटेज देखा.. उसके बाद घटनास्थल की पूरी जानकारी लेने के बाद घटनास्थल पर चलने को कहा.. अपने सामाजिक दायित्वों को समझते हुए भारी बारिश और नक्सली खौफ के बीच मीडियाकर्मी पुलिस के साथ पैदल मार्च करते हुए घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.. पत्रकारों की इस पहले से तीन घंटे के बाद पुलिस वाले गुरुवार की सुबह मौका-ए-वारदात पर पहुँचे.. जहां का मंजर काफी भयावह था..

जिंदगी न मिलेगी दोबारा

जिंदगी क्या है..जितनी बहस की जाए..उतनी कम है.....लेकिन जोया अख्तर की फिल्म जिंदगी न मिलेगी दोबारा में जिंदगी के मायने को समेटने की कोशिश की गई है..जिंदगी ना मिलेगी दोबारा..निश्चित तौर पर किसे क्या पता..उसे यह जिंदगी दोबारा मिलेगी या नहीं..जिंदगी एक कारवां है..जिंदगी एक सफर है..इस सफर को अपने अपने अंदाज में हर कोई जीना चाहता है..लेकिन जिंदगी में इतने उतार-चढ़ाव आते हैं कि कोई जिंदगी के थपेड़ों को हंसते हंसते सह जाता है..तो कोई इन थपेड़ों का सामना नहीं कर पाता..जिंदगी ना मिलेगी दोबारा हमें जिंदगी में किसी भी बात का अफसोस न करने की सीख देती है..वह बताती है कि कैसे आप अपने आज को खुशहाल बना कर भविष्य को भी सुरक्षित और खुशियों से भरपूर बना सकते हैं..जिंदगी न मिलेगी  दोबारा  उन आजाद परिंदों के इर्द-गिर्द घूमती है, जिनकी जिंदगी में अपनी-अपनी कुछ परेशानियां हैं...लेकिन इसके बावजूद वे उसे छुपा कर नए तरीके से अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं..जिंदगी के हर स्वाद का मजा कैसे लिया जाता है..यह फिल्म के तीन किरदारों को देख कर आप अनुमान लगा सकते हैं..जिसे देखकर आप को भी एहसास होगा कि ये किरदार कहीं आप ही त

13 का घिनौना खेल...

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई बुधवार को एकबार फिर एक के बाद एक तीन धमाकों से दहल उठी.शहर के भीड़भाड़ वाले झावेरी बाजार, दादर तथा चरनी रोड के ओपरा हाउस में हुए विस्फोटों में धमाकों से कई लोग काल के गाल में समा गए..और सैकड़ों घायल हो गए..बेकसूरों की मौत का आखिर जिम्मेदार कौन है..आखिर कब तक..बेकसूरों की खून ऐसी हो कब तक बहती रहेगी..धमाके के पीछे इंडियन मुजाहिदीन के हाथ होने की आशंका जताई जा रही है..इस आशंका के पीछे पुख्ता तर्क भी हैं..जब-जब इंडियन मुजाहिदीन ने धमाके किए उसने 13 और 26 तारीख को ही इसके लिए चुना..यही नहीं, उसने अब तक धमाके के लिए शाम 6 से 7 बजे के वक्त को ही चुना..आज भी 13 तारीख है और तीनों धमाके शाम 6 से 7 के बीच हुए हैं..गौरतलब है कि इससे पहले 13 और 26 तारीख को अहमदाबाद और दिल्ली में धमाके हुए थे..बुधवार हुए धमाकों का पैटर्न भी इंडियन मुजाहिदीन द्वारा पहले कराए गए धमाकों से मिलती-जुलती है...हालांकि अभी तक किसी ने हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है.. इंडियन मुजाहिदीन अक्सर हमले के बाद हमले की जिम्मेदारी का मेल न्यूज चैनलों को भेजती है.. मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकवादी हमल

भारतीय रेल का दुर्भाग्य!

10 जुलाई रविवार का दिन रेल इतिहास के लिए सबसे काला दिन साबित हुआ..एक ही दिन हुए दो रेल हादसों ने रेलवे की पोल खोल दी...असम और उत्तर प्रदेश में इन रेल हादसों ने एक बार फिर रेलवे को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं..सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्‍या रेलवे नेताओं के लिए वोट बटोरने का जरिया बन गया है और यात्रियों की जान की चिंता किए बिना नेता अपना हित साधने के लिए रेलवे का दोहन कर रहे हैं..रेल हादसे के बाद मुसाफिरों के आंखों में आंसू भी नहीं बचे..वहीं इन आंसू पर राजनीतिक पार्टियां सियासत करती नजर आ रही है..आखिर ये रेल हादसे कब रूकेगा..इसका जवाब किसी भी सफेदपोश के पास नहीं है..आईए थोड़ा गौर फरमाते हैं..पिछले कुछ सालों में हुए रेल हादसों के बारे में.. 03 दिसम्बर 2000- पंजाब के सराय बंजारा और साधूगढ़ के बीच हावड़ा-अमृतसर एक्सप्रेस एक मालगाडी़ से जा टकराई थी। इस भिड़ंत में 46 यात्री मारे गए थे जबकि 130 से अधिक घायल हुए थे। 22 जून 2001- केरल के कोझीकोड़ के निकट मैंगलोर चेन्नई एक्सप्रेस के कादालुंडी नदी में गिर जाने से 40 रेल यात्री मौत का शिकार बने थे। 5 जनवरी 2002- सिकंदराबाद-मनमाड़ एक्सप्रेस महाराष्ट्