छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से महज 170 किलोमीटर की दूरी पर हुई नक्सली घटना में पत्रकारों ने पुलिस के लिए अंधेरे में चिराग की तरह काम किया.. दरअसल भारी बारिश, घनघोर अंधेरा.. पहाड़ी रास्ते. और नक्सली खौफ के बीच रायपुर से निकले कुछ इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार पुलिस से पहले घटनास्थल पर पहुँच गए.. जब वे इतनी विषम परिस्थितियों में फुटेज बनाकर राजधानी की तरफ लौट रहे थे.. तभी घटनास्थल पर पहुँचने की कोशिश कर रही पुलिस की टीम ने उन मीडियाकर्मियों को रोक लिया. मीडियाकर्मियों पर पहले पुलिस ने संदेह करते हुए सवालों की झड़ी लगा दी.. पुलिस की टीम जब पूरी तरह से आश्वस्त हो गई कि उनकी कस्टडी में खड़े लोग मीडियाकर्मी हैं.. तो उन्होंने पहले तो पूरा वीडिया फुटेज देखा.. उसके बाद घटनास्थल की पूरी जानकारी लेने के बाद घटनास्थल पर चलने को कहा.. अपने सामाजिक दायित्वों को समझते हुए भारी बारिश और नक्सली खौफ के बीच मीडियाकर्मी पुलिस के साथ पैदल मार्च करते हुए घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.. पत्रकारों की इस पहले से तीन घंटे के बाद पुलिस वाले गुरुवार की सुबह मौका-ए-वारदात पर पहुँचे.. जहां का मंजर काफी भयावह था..
अफसानें होते हैं... सुनने और सुनाने के.. पढ़ने और पढ़ाने के... आपका, मेरा मेरी जिंदगी का... मेरी पत्रकारिता का... यह अफसाना कहता हूँ सुनाता हूँ जो खोया है वो बताता हूँ कहां-कहां से ढूँढ़ता हूँ मिलते हैं जहाँ जहाँ से सिर्फ-सिर्फ अफसानें हमारे तुम्हारे मिलते हैं मुस्कुराते हैं अफसाने और कुछ कह जाते हैं अफसाने