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मौत के खतरे को उठाकर घटनास्थल पर पहुंची साधना की टीम






 

नक्सली गढ़ से साधना न्यूज की लाइव तस्वीरें : समुद्र तल से 2500 फीट पर पहुँची साधना न्यूज की ओवी : नक्सलियों के दुर्गम इलाके गरियाबंद के आमामोरा की पहाड़ियों पर साधना न्यूज : साधना न्यूज ने छत्तीसगढ़ के दुर्गम नक्सली क्षेत्र गरियाबंद के आमामोरा के पहाड़ियों से लाइव दिखाकर अटकलों पर विराम लगाया.
यह इलाका 2500 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है, जहां चारपहिया गाड़ी से पहुँचना जोखिम भरा है. पगडंडी रास्ते, पहाड़ की ऊंची-नीची राहें, नुकीले पत्थर, घुमावदार रास्ते, जहां एक छोटी सी चूक का मतलब मौत से सीधा सामना हो सकता है.ऐसे में इस रास्ते पर 42 किलोमीटर का सफर करना और घटनास्थल पर पहुँचना साधना न्यूज की टीम के लिए खतरों से कम नहीं था.ऊंची पहाड़ियों पर बढ़ते-बढ़ते कभी-कभी ऐसा लागता था कि बस अब नहीं, आगे नहीं जाया जा सकता. उस वक्त टीम का हर सदस्य एक-दूसरे का हौसलाअफजाई करते हुए ओवी को आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित कर रहा था.
रात का सन्नाटा और कभी कभी अजीबोगरीब आवाजें. कहीं नक्सलियों द्वारा बिछाए गए बारूदी सुरंग की चपेट में आने की अनहोनी. ये सभी बातें मन में उमड़-घुमड़ रही थी. कहीं-कहीं तो कच्ची राहों में हुए गडढों ने आधी जान भी निकाली. लेकिन टीम का हर सदस्य ओवी से उतर कर रास्ते का मुआयना करते हुए आगे बढ़ता जा रहा था. ऐसा हो भी क्यों ना, क्योंकि अक्सर नक्सली बड़ी वारदात के बाद घटनास्थल तक पहुँचने की कोशिश करते जवानों पर हमला करने की फिराक में रहते हैं. जवानों को बारूदी सुरंग में फंसाने की कोशिश की जाती है. उन पर हमला किया जाता है. ऐसा साधना न्यूज की टीम के साथ भी हो सकता था क्योंकि किसी की गोली पर किसी का नाम नहीं लिखा होता. कोई भी कभी भी चपेट में आ सकता था. घुप अंधेरे में किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि कौन कहां से गुजर रहा है. साधना न्यूज की टीम उस बीहड़ जंगल में अकेले बढ़ी जा रही थी.
बीहड़ जंगल से सच्चाई को सामने लाने का दृढ़ निश्चय साधना न्यूज के हर सदस्य ने कर रखा था, चाहे वह दिल्ली में बैठा शख्स हो या फील्ड में काम कर रहा रिपोर्टर. हर किसी की आंखों से नींद ओझल हो चुकी थी. हर कोई पल पल की जानकारी इकट्ठा कर रहा था क्योंकि मीडिया की खबरें अटकलों पर चल रही थी. किसी के पास कोई पुख्ता जानकारी नहीं थी कि आखिर उन जवानों के साथ क्या हुआ जो आमामोरा के जंगलों के लिए निकले थे. इन जवानों के साथ जुड़ी जिंदगियां मीडिया के भरोसे थी क्योंकि शासन और प्रशासन के पास भी कोई पुख्ता जानकारी नहीं थी. लिहाजा रायपुर से 155 किलोमीटर दूर इस बीहड़ जंगल की सच्चाई को सामने लाने का बीड़ा साधना न्यूज ने उठा रखा था. उस जंगल से जहां जवानों के लहू बहे थे. जहां नक्सलियों ने गोलियां बरसाई थी. और जहां सिर्फ और सिर्फ नक्सलियों का तांडव था. उस इलाके में पहुँचना और वहां से विजुअल लाकर आम लोगों तक पहुँचाना बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी. और इस जिम्मेदारी पर साधना न्यूज खरा उतरा.
कहीं-कहीं जंगल के रास्ते दिशा भ्रम भी पैदा कर रहे थे. कब किस और जाएं. ये समझ में ही नहीं आ रहा था. सिर्फ एक जुनून था दिलो-दिमाग पर. हमें एएसपी सहित उन जवानों के साथ हुई उस अनहोनी को सामने लाना है जिसके बारे में मीडिया में इस समय अटकलों का बाजार गर्म है. जिन राहों पर जाने से कई मीडिया हाउसेस ने अपने हाथ खड़े कर दिए. सभी स्थानीय चैनल सिर्फ कुछ अनहोनी और अंदेशा की खबरों पर टिके थे. इन सबके बीच सबसे पहले साधना न्यूज की ओवी रात के सन्नाटे को चीरती हुई  उस स्थान पर पहुँची जहां गोलियों से छलनी 9 जवानों के शव क्षत-विक्षित स्थिति में पड़े हुए थे. वहां के हालाता रोंगटे खड़े कर देने के लिए काफी थे. गरियाबंद, मैनपुर समेत आसपास के इलाकों से रवाना हुई पुलिस की सर्चिग पार्टियां मंगलवार सुबह करीब 6.30 बजे मौके पर पहुंचीं.
सोमवार आधी रात तक यही खबर थी कि नक्सलियों ने बारूदी सुरंग में विस्फोट कर घटना को अंजाम दिया. बिगड़ी सूमो को ट्रैक्टर से टोचन कर लाने की बात भी हो रही थी. लेकिन दोनों बातें गलत निकलीं. पुलिस पार्टी के पहुँचते-पहुँचते साधना न्यूज की टीम भी मौके पर पहुँच चुकी थी. मौके पर शहीदों के शव ही शव थे. एएसपी पवार के अलावा सिपाही फनेश्वर कुमार सिन्हा, होमेश्वर कुमार ठाकुर, कृष्ण कुमार निर्मलकर, संतोष कुमार धु्रव, भीष्म कुमार यदु तथा एसपीओ किशोर कुमार पांडे, देवलाल नेताम और गौरव मरकाम के गोलियों से छलनी शवों को दोपहर करीब 2 बजे तक वहीं रखा गया. नक्सलियों ने मारे गए सभी लोगों के हथियार लूट लिए. घटनास्थल के पास एक नक्सली टोपी व गोलियों के सैकड़ों खोखे मिले. नक्सलियों ने यहां "यू" आकार का एम्बुश लगाया था. जिसमें जवान आ फंसे. और नक्सलियों के अंधाधुंध फायरिंग के बीच उन्हें संभलने का मौका नहीं मिला. धुआंधार फायरिंग के बीच किसी जवान ने नक्सलियों की तरफ एक हथगोला भी फेंका था, जो नहीं फटा. नक्सलियों ने लाइट मशीनगन, एसएलआर और एके-47 जैसे हथियारों से दनादन गोलियां दागी. जिससे एएसपी सहित जवानों को संभलने का मौका नहीं मिला.
यह इलाका राज्य के अंतिम छोर के गांव आमामोरा से करीब 15 किमी दूर ओडिशा में है. सुनाबेड़ा सेंचुरी के इस इलाके में नक्सलियों की तलाश में एएसपी राजेश पवार कई बार सर्चिंग में जा चुके थे. सोमवार को पवार के नेतृत्व में निकली टीम में गौरव मरकाम भी था. उड़ीसा के सीमाई गांव छुआपानी का निवासी गौरव और उसके पिता दोनों ही कभी नक्सली रहे थे. मुठभेड़ में पिता की मौत के बाद वह गांव आ गया था. पवार ने उसे सरेंडर करवाकर एसपीओ बनवाया था. उसकी मदद से इलाके में पुलिस ने लगातार कई सफल ऑपरेशन किए थे.
और इस बार भी पवार कुछ नक्सलियों के सरेंडर करवाने के लिए ही निकले थे. जिसकी जानकारी नक्सलियों ने पहुँचाई थी. एएसपी राजेश पवार इस जानकारी के बाद अपने दल बल के साथ उस गांव में पहुँचे. लेकिन यह जानकारी गलत निकली और वापसी में नक्सलियों ने एंबुश लगाकर पवार और उनके साथियों को अपना निशाना बनाया. इस हमले के बाद नक्सली एक आरक्षक होलाराम साहू को अपने साथ ले गए हैं जो घायल अवस्था में नक्सलियों के चंगुल में है. साधना न्यूज ने उस समय परत-दर-परत घटना के हरेक पहलुओं को सामना रखा जिस समय बाकी चैनल सिर्फ अंदेशा और अनहोनी की खबरों तक सिमटे थे. किसी के पास कोई जानकारी नहीं थी. ऐसे में साधना न्यूज सटीक और पुख्ता जानकारियों के साथ-साथ ह्रदय विदारक विजुअल के साथ दर्शकों के बीच पहुँचा.
23 मई सुबह 9 बजे...एएसपी पवार समेत दस जवान ओमामोका के लिए रवाना
23 मई दोपहर चार बजे पुलिस ओमामारा के जंगलों में पहुँची
23 मई शाम 6 बजे पुलिस दल से संपर्क टूटा
23 मई शाम 8 बजे मीडिया में दस जवानों के शहीद होने की खबर
किसी के पास कोई पुख्ता जानकारी नहीं..सभी अनहोनी और अंदेशा पर  टिके
24 मई सुबह 6.30 मिनट पर साधना न्यूज की ओवी घटनास्थल पर

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