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Showing posts from April, 2010

माओवादियों का सबसे बड़ा लाल सलाम...

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सुरक्षाकर्मियों पर भयावह नक्सली हमले ने केन्द्र और राज्य सरकारों की नक्सल विरोधी रणनीति पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं. साधना न्यूज की सशक्त रिपोर्टिंग और कवरेज से केन्द्र और राज्य सरकार की खामियां सामने आईं हैं. पिछले काफी समय से मैं नक्सल मामलों पर कवरेज करता आ रहा हूँ लेकिन जिस तरह से चिंतलनार में नक्सलियों ने खूनी खेल खेला....वह दिल को दहला देने वाला है. बस्तर का पूरा इलाका इस बड़ी त्रासदी के बाद स्तब्ध है. सभी यही सवाल कर रहे हैं कि कब तक हम सपूतों की मौत को शहीद बताकर माताओं की गोद सूनी करते रहेंगे...मासूमों के सिर से पिता क प्यार एवं सुहागिनों का सिंदूर उजड़ता देखेंगे..खुफिया तंत्र की निकम्मेपन के कारण आज इतनी बड़ी वारदात करने में नक्सली कामयाब हो गए..इसमें चूक कहां हो गई.. परत-दर-परत से साधना की टीम ने वह खबर सामने लाई.जिसकी दरकार लोगों को थी..साधना की पूरी टीम ने इस पूरे घटनाक्रम पर पैनी नजर रखी..एवं सरकार और पुलिस प्रशासन से कहां-कहां भूल हुई..उसको सामने लाया.घटनास्थल का दर्दनाक विजुअल सामने लाने से लेकर लाइव कवरेज तक में हमने प्रशासन को हिला कर र

कहां गए मानवाधिकार कार्यकर्ता ?

नक्सली हिंसा...शहीद होते हमारे जवान..और शहादत को सलाम करते हम लोग..यह क्रम कब तक चलता रहेगा..यह समझ से परे हैं...जब-जब हमारे जवान कोई बड़ी कार्रवाई करते हैं..तब-तब आदिवासियों का हितैषी बत्ताने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता खड़े हो जाते हैं..लेकिन जवानों के शहीद होने के बाद यही मानवाधिकार कार्यकर्ता चुप्पी साध लेते हैं..आखिर ऐसा क्यों...क्या जवानों का कोई अधिकार नहीं..नक्सली देश के प्रथम शत्रु हैं,लेकिन यह जानना कठिन है कि उन कथित बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार समर्थकों के खिलाफ कड़ाई क्यों नहीं की जा रही जो नक्सलियों की खुली वकालत करने में लगे हुए हैं...ऐसे तत्व नक्सलियों का पक्ष लेने और यहां तक कि उनकी हिंसा जायज ठहराने के लिए नित-नए कुतर्क गढ़ रहे हैं और ऐसे गुमराह करने वाले सवाल भी उछाल रहे हैं...देश के लिए दंतेवाड़ा की घटना से लगे सदमे से उबरना आसान नहीं है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अक्सर कहते रहे हैं कि माओवादी देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं.दंतेवाड़ा जिले के मुकराना जंगल में जिस घातक ढंग से माओवादियों ने सीआरपीएफ़ के 76 जवानों की हत्या की, उससे इस बात का मतलब लोगों को अब

हम भी पढ़ेंगे...

आओ स्कूल चले हम..ये स्लोगन अब तक बड़े-बड़े होर्डिंग और सार्वजनिक स्थानों की दीवारों की शोभा बढ़ाया करते थे.और इस स्लोगन को कोरा साबित करता..वहीं पर कचरा उठाते मासूम और नन्हें वे बच्चे..जो स्कूल तो जाना चाहते हैं...लेकिन कुछ मजबूरी वश नहीं जा पाते...देश में गरीब वर्ग के बच्चों को भी अच्छी शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से शिक्षा का मौलिक अधिकार कानून लागू किया गया है..जो ऐसे बच्चों के लिए मील का पत्थऱ साबित हो सकता है..संविधान का 86वां संशोधन वर्ष 2002 में पास हुआ और कानून 2009 में बनकर एक अप्रैल 2010से लागू हुआ.... भारत अब उन कुछ चुनिंदा देशों में आ गया, जहां शिक्षा सभी के लिए मूलभूत अधिकार है और 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त अनिवार्य शिक्षा दिया जाएगा..लेकिन लोगों का इससे जुड़ाव तभी बनेगा जब सरकारी तंत्र सबको शिक्षा दिलाने के प्रति अपनी इच्छाशक्ति और ईमानदारी दिखाएगा..प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने राष्ट्र को संबोधित कर यह संदेश देने को कोशिश की है कि सरकार इसे लेकर बेहद गंभीर है..गौरतलब है कि इस कानून के जरिए मुफ्त और अनिवार्य बुनियादी शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दे दिया गया है..इ