पांच राज्यों में हो रहे चुनाव में सभी पार्टियों ने अपने तरकश से तीर निकाल कर कमान कस ली है..वादों और प्रतिवादों का दौर जारी है..लोकलुभावन वादों से जनता का दिल जीतने की भरपूर कोशिश की जा रही है..कोई राम के नाम पर वोट मांग रहा है..तो कोई अल्लाह के नाम पर अपनी किस्मत अजमा रहा है..चुनावी मौसम में हर रोज रंग बदलते दिख रहे हैं..कोई किसी को जमीनी हकीकत से रूबरू करा रहा है..तो कोई स्थानीय और बाहरी मुद्दों पर अपनी रोटी सेंक रहा है...हर पार्टी पांच साल के लिए सत्ता में आने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रही है..पांच राज्यों में हो रहे चुनावों की बिसात पर चालें चली जा चुकी है..सभी मोहरे अपनी-अपनी जगह पर दम भर रहे हैं.....दे-दे वोट दे दे..हर पार्टी यही अलाप कर रही है..लेकिन सबसे बड़े इस लोकतंत्र में बाजी तो जनता के हाथ में है..जो चुपचाप और खामोशी से सभी पार्टियों की दलीलें सुन रही है..धर्म के नाम पर तो वोट बटोरने की पुरजोर कोशिश की जा रही है..लेकिन जिस तरह बिहार में जात-पात की राजनीति को वहां के मुआम ने दरकिनार कर दिया...और विकास को तरजीह दी..क्या इस बार ऐसा हो पाएगा...इस पर सब की नजर है...राजनीतिज्ञ विशे
अफसानें होते हैं... सुनने और सुनाने के.. पढ़ने और पढ़ाने के... आपका, मेरा मेरी जिंदगी का... मेरी पत्रकारिता का... यह अफसाना कहता हूँ सुनाता हूँ जो खोया है वो बताता हूँ कहां-कहां से ढूँढ़ता हूँ मिलते हैं जहाँ जहाँ से सिर्फ-सिर्फ अफसानें हमारे तुम्हारे मिलते हैं मुस्कुराते हैं अफसाने और कुछ कह जाते हैं अफसाने