फिल्म बॉडीगार्ड एक प्रेम कहानी है..और इसका क्लाइमैक्स काफी दमदार है..इस फिल्म को सलमान की एक्टिंग और एक बेहतरीन क्लाइमैक्स के लिए जाना जाएगा..फिल्म में लवली सिंह एक बॉडीगार्ड है और वह एक ही एहसान चाहता है कि उस पर किसी किस्म का एहसान ना किया जाए..उसे दिव्या की रक्षा का जिम्मा सौंपा जाता है..परछाई की तरह लवली उसके साथ लग जाता है और इससे दिव्या परेशान हो जाती है..लवली से छुटकारा पाने के लिए दिव्या फोन पर छाया बनकर लवली सिंह को प्रेम जाल में फांसती है..लवली भी धीरे-धीरे छाया को बिना देखे ही चाहने लगता है..किस तरह से दिव्या अपने ही बुने हुए जाल में फंस जाती है यह फिल्म का सार है..कुछ बढ़िया एक्शन दृश्यों के बाद प्रेम कहानी शुरू हो जाती है..फर्स्ट हाफ तक तो ठीक लगता है, लेकिन इसके बाद यह खींची हुई लगने लगती है..लेकिन क्लाइमेक्स में कई उतार-चढ़ाव आते हैं जिससे दर्शक एक बार फिर फिल्म से बंध जाता है..फिल्म के अंत में कई संयोग देखने को मिलते हैं, और एक सुखद क्लाइमैक्स भी..कहानी कई सवाल उठाती हैं, जिसमें सबसे अहम ये है कि दिव्या जब सचमुच में लवली को चाहने लगती है तो वह असलियत बताने में इतना वक्त क्यों लेती है..छाया बनकर दिव्या हमेशा लवली सिंह से बात करते समय दिव्या की बुराई क्यों करती है...रंजन म्हात्रे, दिव्या के खून का क्यों प्यासा है, ये भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है..फिल्म में विलेन वाला ट्रेक ठीक से स्थापित नहीं किया गया है..यदि इस ट्रेक को दमदार बनाया जाता तो बॉडीगार्ड का चरित्र और उभर कर सामने आता..कमियों के बावजूद फिल्म में मनोरंजन का स्तर बना रहता है..दिव्या का लवली सिंह के प्रति प्यार कई जगह दिल को छूता है..लवली की मासूमियत और कॉमेडी अच्छी लगती है..एक्शन फिल्म का प्लस पाइंट है और इसमें नयापन भी है..सुनामी बने रजत रवैल कभी हंसाते हैं तो कभी बोर करते हैं..उनके टी-शर्ट पर लिखे स्लोगन बड़े मजेदार हैं...लवली सिंह यानी सलमान खान और दिव्या की पर्दे पर दिव्या का रोल करीना कपूर ने किया है..लवली को दिव्या की सेफ्टी की जिम्मेदारी दी जाती है और तब से लवली साये की तरह दिव्या के साथ रहता है..दिव्या को रास नहीं आता कि कोई भी उसकी पर्सनल लाईफ में दखल दे..वह लवली को अपनी लाईफ से दूर करने का लिए छाया बनकर लवली को अपने प्यार के जाल में फांसती है लेकिन खुद ही इस जाल में फंस कर रह जाती है और यहां से शुरू होती है फिल्म की असली कहानी..फिल्म का फर्स्ट हाफ कब गुज़रता है पता नहीं चलता लेकिन सेकंड हॉफ में कहानी में थोड़ी सी ढील आ गयी है..पर क्लाईमेक्स तक फिल्म में काफी बदलाव आते है जो दर्शकों को अंत तक बांधे रखता है..दिव्या का लवली सिंह के लिए प्यार कई जगहों पर दिल की गहराई में उतर जाता है..सलमान हमेशा से ही दर्शकों को हंसाने में कामयाब रहें हैं..इस फिल्म में उनकी मासूमियत और कॉमेडी दोनो ही साथ साथ देखने को मिली है..सिद्दकी ने इस फिल्म की कहानी बस खत्म करने के हिसाब से लिखी हो ऐसा जान पड़ता है..ओवरऑल इस फिल्म की टीआरपी सलमान खान है वो ना केवल हैंडसम हंक लगे हैं साथ वो अपनी मासूमियत के चलते दर्शकों के दिल में घर करने में कामयाब भी रहेते हैं..एक्शन में सलमान का कोई तोड़ नहीं है साथ करीना ने भी अपने किरदार के साथ न्याय क किया है..छाया के रूप में जब वह लवली को फोन करती है तब वहां करिश्मा कपूर की आवाज़ सुनाई देती है...आखिरी आधे घंटे में जान है..क्लाइमैक्स इमोशनल और घुमावदार है जिसमें सलमान और करीना सारी सहानुभूति लूट ले जाते हैं..फिल्म डायहार्ड सलमान फैन्स के लिए है...
मीडिया का व्यवसायीकरण होता जा रहा है..व्यासायी घराने अपना हित साधने के लिए मीडिया और उसके संसाधनों का जबरदस्त दोहन कर रहे हैं...उनके हित के आगे खबरों की कोई अहमियत नही..चाहे वह खबर सामाजिक सारोकार से ही जुड़ा हुआ मुद्दा क्यों न हो...जब हम लोगों को एक पत्रकार के रूप में दायित्वों को बताया गया तब हमने सोचा था कि हम अपने दायित्वों के लिए किसी से समझौता नहीं करेंगे...लेकिन दायित्वों का पढ़ाया गया पाठ अब किताबों तक ही सीमित रह गया है...कौन सी खबर को प्रमुखता से दिखाना है..और कौन सी खबर को गिराना है...ये वे लोग निर्धारित करने लगे हैं..जिनका पत्रकारिता से कोई सारोकार नहीं है...आज का पत्रकार सिर्फ कठपुलती बन कर रह गया है...डमी पत्रकार..इन्हें वहीं करना है...जो व्यसायी घराने के कर्ता-धर्ता कहें..मीडिया के व्यवसायीकरण ने एक सच्चे पत्रकार का गला घोंट दिया है..घुटन भरे माहौल में काम की आजादी छीन सी गई है..व्यवसायी घरानों ने मीडिया को एक जरिया बनाया है..जिसके जरिए वह सरकार तक अपनी पहुँच बना सके..और अपना उल्लू सीधा कर सके..अपना हित साधने के लिए इन्होंने मीडिया को आसान जरिया चुना है...मीडिया के इस
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