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Showing posts from December, 2009

गुम हुई खबरों की बेमिसाल आवाज...

जान फूंकती हर उस खबर मैं..जिसमें मिली एक आवाज...वह आवाज खामोश सी हो गई..खामोशी भी ऐसी...जिसे पाट पाना काफी मुश्किल है..उस आवाज के न रहने के गम में मेरे आंसूओं से भरी श्रद्धांजलि है..उनको...जिन्होंने खबर को अपनी आवाज देकर उसमें जान डालने की निरंतर कोशिश की...खबरों की दुनिया में हरफनमौला और  आवाज के जादूगर अशोक उपाध्याय सर..आज भी उनकी आवाज मेरे कानों में गूंज रही है...मैं उन लम्हों में खो गया...जब अशोक उपाध्याय जी से मेरी पहली मुलाकात हुई थी... ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में चयन के बाद मैं अपने कुछ साथियों के साथ हैदराबाद स्थित रामोजी फिल्मसिटी पहुंचा....मन में कौतुहल था...वहां से वरिष्ठ पत्रकारों से मिलने का...मेरी सबसे पहली मुलाकात कराई गई..नेशनल हिन्दी डेस्क के हेड अशोक उपाध्याय जी से...अशोक जी को देखने की सबसे ज्यादा उमंग थी. क्योंकि मैं जिस शहर से था..वे भी उसी शहर से थे..मैंने उनके बारे में काफी कुछ सुन रखा था..रोबदार आवाज़, घनी मूंछें और धीर गंभीर व्यक्तित्व के अशोक जी से उस समय पहली मुलाकात कुछ खास नहीं रही. बड़े जोश से मैंने अपना परिचय दिया और सामने से बहुत ही सहज और हलकी-सी प्

नौनिहालों की दास्तां

बाल श्रम को रोकने के लिए सरकार ने न जाने कितने कानून बनाए...कितनी योजनाएं शुरू हुई..अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर न जाने कितने सम्मेलन किए गए...लेकिन आज भी बाल श्रम की हकीकत किसी से छिपी नहीं है...जिन बच्चों की दुनिया कॉपी-किताबों की बीच होनी चाहिए थी..जिनके हाथों में कलम होने चाहिए थे...आज वे बच्चें काम के बोझ तले दबे जा रहे हैं..मैं इन दिनों तीन प्रदेशों के दौरे पर हूँ..जहां बाल मजदूरों की रोकथाम के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं की असलियत साफ झलक रही है...ये तस्वीरें साफ बयां कर रही है कि हमारे नौनिहालों का भविष्य किस तरह अधर में लटका हुआ है... बच्चों के भविष्य के लिए सपने संजोने वाले चाचा नेहरू के आत्मा को कितना आघात पहुँचेगा कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी बाल प्रशासन पर रोक लगा पाने में शासन औऱ प्रशासन कोई कारगर कदम नहीं उठा पाया हैं....बाल श्रम को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर कई कानूनों को अमली-जामा पहनाया गया...लेकिन आज भी बाल श्रम के नजारे राहे-बिगाहे देखने को मिल जाते हैं..आज भी चाचा नेहरू के इस देश में लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं..जो चाय

.....जिंदगी.....

जिंदगी की राहों पर मेरे कदमों की दास्तां                        मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर.. इस एक पल जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ जाती.. मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और.. जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती.. युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और.. जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती... ये सिलसिला यहीं चलता रहता.. फिर एक दिन मुझे हंसता देख नीलांचल ने मुझसे पूछा " तुम हार कर भी मुस्कुराते हो ! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का ? " तब मैंनें कहा... मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ पायेगी, तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं.. तब भी यूँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ पहचुँगा. एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराउगा.. बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा.. ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा.. मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी.. मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी ना रो पायेगी..

रेड रिबन इन विलेज

एड्स एक जानलेवा रोग...इस रोग को लेकर एक खास दिन मुकर्रर किया गया है..एक दिसंबर...जिस दिन एड्स को लेकर जागरूकता के कई कार्यक्रम सुनने और देखने को मिलते हैं..पिछले कई सालों से विश्व एड्स दिवस पर मैं रिपोर्टिंग करता आ रहा हूँ..लेकिन इस बार एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने के कारण वंचित रह गया..खैर जो भी हो...लिहाजा मैंने अपने ब्लाग पर ही लिखने की ठानी...लेकिन सोचता रहा..क्या लिखूँ..हमेशा की तरह वही घिसी-पिट्टी कहानी..या...एड्स को लेकर सामाजिक संगठनों की बखान जो वे आज के दिन करते हैं...लेकिन इतना सब होने के बावजूद भी इस पर कोई खास लगाम नहीं लगाया जा सका..ब्लाग पर कुछ नया देने के लिए मैंने घुमने का प्लान बनाया..ग्रामीण इलाकों की और निकला...जहां लोगों से बातों-बातों में एड्स के बारे में जानने की कोशिश की....लेकिन कोई भी सीधे मुंह इस बारे में बात करने से हिचकते रहे..एड्स को लेकर आज भी लोगों में कई भ्रांतियां व्याप्त हैं...जिसकी कमी इन ग्रामीण इलाकों में दिखी...स्वंय सेवी संगठन तो लाख ढिंढोरे पिटते हैं कि वे एड्स के लिए कई जागरूक कार्यक्रम चला रहे हैं...लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है... विश्