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Showing posts from March, 2010

लिव com रिलेशन

समाज और लोग कितना ही नाक भौंह सिकोडें, कितने ही कुढ़ लें और कितनी ही आलोचना कर लें...लिव-इन-रिलेशन रिश्ता अब एक ठोस वास्तविकता लेता जा रहा है... इसे नकारा जाना नामुमकिन हैं..समाज में ऐसे रिलेशन देखने को मिल रहे हैं..कुछ साल पहले तक समाज के लिए वर्जित रहा लिव-इन-रिलेशन रिश्ता धीरे-धीरे अर्बन सोसायटी में अपनी जगह बनाने में सफल हो गया है...बीपीओ और कॉर्परट सेक्टर में लाखों रुपये महीने कमा रहे कई यूथ कपल इस रिलेशनशिप को बुरा नहीं मानते..इस रिश्ते की चकाचौंध सिर्फ महानगरों तक ही सिमटी थी...लेकिन धीरे-धीरे इस कल्चर ने छोटे शहरों पर भी अपना असर डाला है..अब उच्चतम न्यायालय ने भी इस रिश्ते पर अपनी मुहर लगा दी है..सुप्रीम कोर्ट ने विवाह पूर्व यौन संबंध और लिव इन रिलेशन को लेकर जो टिप्पणी की है, वह बेहद महत्वपूर्ण है..उसने कहा है कि शादी के पहले सेक्स संबंध कायम करना कोई अपराध नहीं है..भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो शादी से पहले यौन संबंध की मनाही करता हो..इसी तरह अगर दो बालिग व्यक्ति आपसी रजामंदी से विवाह के बगैर भी साथ रहना चाहें तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है..दक्षिण की अभिनेत्री खुशबू की विशे

आंदोलन का भटकाव और कानू दा की मौत

नक्सली जो कर रहे हैं.वह सही है.या गलत..यह भारत में नक्सलवादी आंदोलन के जनक कहे जाने वाले बुजुर्ग माओवादी नेता कानू सान्याल की मौत से समझा जा सकता है..कानू सान्याल की खुदकुशी माओवादियों के लिए आंख खोलने वाली साबित हो सकती है..सान्याल के साथ काम कर चुके कई वरिष्ठ नक्सलवादी नेताओं के मुताबिक अतिवादी कदम उठाकर सान्याल ने हिंसा में लगे माओवादियों को इशारा दिया कि वे जो कर रहे हैं, गलत है..उनकी मौत खुदकुशी का साधारण मामला नहीं है..यह जन्मजात क्रांतिकारी का विरोध है..नए जमाने के माओवादियों को उनका यह संदेश है कि वे जो कर रहे हैं वह अंतत: उसी तबके पर असर कर रहा है, जिसके लिए उन्होंने हथियार उठाए हैं..अपने अंतिम दिनों में कानू दा बार-बार कहते थे कि माओवादी रेड कॉरिडोर पर कब्जा बनाए रखने के लिए उनसे इत्तेफाक नहीं रखने वाले गरीबों को मार रहे हैं..फिर सुरक्षा बलों की कार्रवाई का भी गरीब ही शिकार बन रहे हैं..यह विचार उन्हें बेचैन करता था और अंतत: विरोध में उन्होंने खुदकुशी जैसा अतिवादी कदम उठा लिया.करीब चार दशक पहले पिछली सदी के सत्तर के दशक के आखिरी वर्षो में उन्होंने चारू मजूमदार के साथ मिलकर पश्

मीडिया का व्यवसायीकरण

  मीडिया का व्यवसायीकरण होता जा रहा है..व्यासायी घराने अपना हित साधने के लिए मीडिया और उसके संसाधनों का जबरदस्त दोहन कर रहे हैं...उनके हित के आगे खबरों की कोई अहमियत नही..चाहे वह खबर सामाजिक सारोकार से ही जुड़ा हुआ मुद्दा क्यों न हो...जब हम लोगों को एक पत्रकार के रूप में दायित्वों को बताया गया तब हमने सोचा  था कि हम अपने दायित्वों के लिए किसी से समझौता नहीं करेंगे...लेकिन दायित्वों का पढ़ाया गया पाठ अब किताबों तक ही सीमित रह गया है...कौन सी खबर को प्रमुखता से दिखाना है..और कौन सी खबर को गिराना है...ये वे लोग निर्धारित करने लगे हैं..जिनका पत्रकारिता से कोई सारोकार नहीं है...आज का पत्रकार सिर्फ कठपुलती बन कर रह गया है...डमी पत्रकार..इन्हें वहीं करना है...जो व्यसायी घराने के कर्ता-धर्ता कहें..मीडिया के व्यवसायीकरण ने एक सच्चे पत्रकार का गला घोंट दिया है..घुटन भरे माहौल में काम की आजादी छीन सी गई है..व्यवसायी घरानों ने मीडिया को एक जरिया बनाया है..जिसके जरिए वह सरकार तक अपनी पहुँच बना सके..और अपना उल्लू सीधा कर सके..अपना हित साधने के लिए इन्होंने मीडिया को आसान जरिया चुना है...मीडिया के इस