देश में वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे हत्याकांड में पुलिस की जांच अभी खत्म ही नहीं हुई कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में बुधवार रात पत्रकारों पर फिर से कातिलाना हमला किया गया. छत्तीसगढ़ में पत्रकारों पर हमला कोई नई बात नहीं है. पिछले छह महीने के अंदर प्रदेश में दो पत्रकारों की निर्मम हत्या की जा चुकी है, वहीं करीब दर्जन भर पत्रकारों पर कातिलाना हमला किया जा चुका है.
बावजूद इसके प्रशासन इन घटनाओं से सबक नहीं ले रही. और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारों की जान आफत में है. बुधवार रात राजधानी रायपुर की घटना को ही लिया जाए. कचहरी चौक पर स्थित महिंद्रा होटल में मौजूद कुछ असामाजिक तत्वों और गुंडों आधा दर्जन पत्रकारों की बेदम पिटाई कर दी. होटल में एक कंपनी की पार्टी थी. पत्रकारों को उसी में आमंत्रित किया गया था. होटल में मौजूद असामाजिक तत्वों ने भोजन बनाने वाले लोहे के बड़े सामानों से पीटा. मारपीट में तीन पत्रकारों के सिर फूट गए.
पत्रकारों का हाल देखकर राजधानी के मीडिया कर्मियों ने गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने सिविल लाइन थाने का घेराव कर दिया. पत्रकारों के उग्र प्रदर्शन को देखते हुए पुलिस द्वारा आनन-फानन
में दर्जन भर आरोपियों को गिरफ्तार करना पड़ गया.और पत्रकारों पर जानलेवा हमले करने के जुर्म में आईपीसी की धारा 307 के तहत उनपर मामला दर्ज किया गया. दरअसल पेन सोल कंपनी की ओर से होटल में पार्टी का आयोजन किया गया था. इसमें मीडिया के लोग आमंत्रित थे. पार्टी के दौरान ही होटल में मौजूद असामाजिक तत्वों ने पत्रकारों को अपशब्द कह दिया. पत्रकारों ने उनकी बातों का विरोध किया. जिसके बाद होटल में मौजूद इन लोगों ने भोजन तैयार करने के सामानों से मीडिया कर्मियों पर टूट पड़े. इस काम में होटल के मालिक और उनके स्टाफ ने भी पूरा सहयोग किया.बावजूद इसके प्रशासन इन घटनाओं से सबक नहीं ले रही. और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारों की जान आफत में है. बुधवार रात राजधानी रायपुर की घटना को ही लिया जाए. कचहरी चौक पर स्थित महिंद्रा होटल में मौजूद कुछ असामाजिक तत्वों और गुंडों आधा दर्जन पत्रकारों की बेदम पिटाई कर दी. होटल में एक कंपनी की पार्टी थी. पत्रकारों को उसी में आमंत्रित किया गया था. होटल में मौजूद असामाजिक तत्वों ने भोजन बनाने वाले लोहे के बड़े सामानों से पीटा. मारपीट में तीन पत्रकारों के सिर फूट गए.
पत्रकारों का हाल देखकर राजधानी के मीडिया कर्मियों ने गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने सिविल लाइन थाने का घेराव कर दिया. पत्रकारों के उग्र प्रदर्शन को देखते हुए पुलिस द्वारा आनन-फानन
इस घटना में प्रदीप और अशोक सहित एक अन्य मीडिया कर्मी का सिर फूट गया. पूरी घटना के बाद पत्रकारों में जबरदस्त आक्रोश है. पूर्व मंत्री विधान मिश्रा भी घटना स्थल पर तत्काल वहां पहुंच गए. उन्होंने अपनी गाड़ी में ही घायलों को थाने पहुंचाया. ये घटनाएं बत्ताने के लिए काफी है कि पूरे देश खासतौर पर छत्तीसगढ़ में पत्रकार अब सुरक्षित नहीं रह गये हैं. छत्तीसगढ़ में दो पत्रकारों की हत्या के बाद इन घटनाओं से पूरी पत्रकार बिरादरी दहशत में आ गई है. करीब छह महीने पहले बिलासपुर में दैनिक भास्कर से जुड़े पत्रकार सुशील पाठक को भी दफ्तर से घर लौटते हुए कुछ अज्ञात लोगों ने गोलियों से भून दिया था. उस मामले में भी पुलिस ने आनन फानन में सुशील पाठक के पड़ोस में रहनेवाले बाबर खान को गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन जांच अभी भी अधूरी है क्योंकि मारे गये पत्रकार का मोबाइल अभी तक बरामद नहीं किया जा सका है. स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक असल में अब प्रशासन ही पत्रकारों के पीछे पड़ गया है. सुशील पाठक हत्याकांड की जांच चल ही रही थी कि रायपुर जिले के छुरा में नई दुनिया के पत्रकार उमेश राजपूत की उन्हीं के घर पर घुसकर हत्या की गई थी.
पिछले छह महीने में दो पत्रकारों की हत्या और कुछ पत्रकारों पर किए गए हमले यह बत्ताने के लिए काफी है कि रमन राज में पत्रकार सुरक्षित नहीं रह गये हैं. किसी दौर में निश्चित रूप से
पिछले छह महीने में दो पत्रकारों की हत्या और कुछ पत्रकारों पर किए गए हमले यह बत्ताने के लिए काफी है कि रमन राज में पत्रकार सुरक्षित नहीं रह गये हैं. किसी दौर में निश्चित रूप से
पत्रकारों की प्रशासन के सामने चलती थी लेकिन अब प्रशासन ने भी पत्रकारों को पटाने की बजाय सीधे मालिकों को मिलाने का काम कर लिया है, जिसके कारण अब संकट में होने पर भी पत्रकार की मदद में प्रशासन आगे नहीं आता. इन घटनाओं से आम लोग भी काफी दहशत में हैं. पत्रकारों के स्वर्ग कहे जाने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उनकी इस तरह से हत्याएं निश्चित रूप से प्रशासन की लापरवाही दर्शाता है. छत्तीसगढ़ में पत्रकारों की दशा दयनीय होती जा रही है. अखबार मालिकों के दबाव से इतर अब प्रशासन के सामने भी उनकी स्थिति लाचारों की होती जा रही है. इसी का परिणाम है कि एक महीने के अंदर दो पत्रकारों की हत्या हो जाती है और रमन सरकार सिर्फ जांच का आश्वासन देकर चुप हो जाती है. लिहाजा ये घटनाएं यह बताने के लिए काफी है कि रमन राज में किसका बोलबाला है.
आम जनता की आवाज उठाने वाले पत्रकार भी इनके निशाने पर हैं. लगातार मीडियाकर्मियों पर हमला हो रहे हैं. आदतन बादमाश मीडियाकर्मियों को निशाना बना रहे हैं. जनता की बात को रखने वाले प्रेस के लोग इनके निशाने पर हैं. मीडिया पर हुए हमले ने गुंडों की बढ़ती रंगदारी की पोल खोल कर रख दी है. जब जनता की बात रखनेवाले ही सुरक्षित नहीं हैं तो आम जनता की सुरक्षा का क्या हाल होगा...इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं.
आम जनता की आवाज उठाने वाले पत्रकार भी इनके निशाने पर हैं. लगातार मीडियाकर्मियों पर हमला हो रहे हैं. आदतन बादमाश मीडियाकर्मियों को निशाना बना रहे हैं. जनता की बात को रखने वाले प्रेस के लोग इनके निशाने पर हैं. मीडिया पर हुए हमले ने गुंडों की बढ़ती रंगदारी की पोल खोल कर रख दी है. जब जनता की बात रखनेवाले ही सुरक्षित नहीं हैं तो आम जनता की सुरक्षा का क्या हाल होगा...इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं.
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