पूर्वोत्तर की मिलजुली संस्कृति के अनोखे संगम के साथ लोगों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से रायपुर में सांस्कृतिक कार्यक्रम ऑक्टेव 2011 की बेमिसाल शुरूआत हुई..खुले आसमां तले तीन स्तरीय मंच पर पूर्वोत्तर का खनकदार नृत्य..अंग-अंग की खास भाव-भंगिमा का मोहक असर..मृदंग की थाप, बांसुरी की तान और झाल की झनक..नृत्यप्रेमियों का हुजूम..साथ में गुलाबी ठंड का सुहाना मौसम..मानो संध्या की धड़कन में पावों की थिरकन हो रही हो रवां..ऑक्टेव 2011 में पुलिस लाईन ग्राउंड में रंग-बिरंगी रोशनी के बीच जीवंत हो रहा था यह नजारा..
कार्यक्रम का आकर्षण पारंपरिक फैशन शो के रूप में सामने आई..इसमें आठों राज्य के लोगों ने अपने-अपने राज्य के परिधानों के साथ कैटवाक किया..नगालैंड, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय आदि प्रदेशों के कलाकारों ने भी अपने परिधानों से दर्शकों पर छाप छोड़ी..इसके बाद इन राज्यों के लोकनृत्यों की बारी थी..मणिपुर के थांग ता व ढोल ढोलक चोलम की प्रस्तुति..मणिपुर में याओशांग यानी होली के मौके पर इसकी प्रस्तुति की जाती है..भक्तिरस से परिपूर्ण इस नृत्य का प्रमुख वाद्य ढोलक होता है..थांग इनकी युद्धकला दर्शाता है..कार्यक्रम में सिक्किम का सिंघी छाम एवं घांटु भी पेश किया गया..घांटु गुरंग समुदाय का लोकनृत्य है..
इन लोकनृतयों की प्रस्तुति
अरुणांचल प्रदेश ईराप, पोनुंग
असाम बिहु नृत्य, ढाल थुंगरी
मणिपुर लाई हरोबा, ढोल, पुंग चोलम और थांग ता
मेघालय वांगला, का शाद मसतिह्
मिजोरम चेरांव नृत्य
नागालैंड रोईना (झिलीयंग नागा), मुंग्यंता (खेतीहर नृत्य)
त्रिपुरा होजागीरी नृत्य, बिझू नृत्य
ईराप नृत्य अरूणाचल प्रदेश
ईराप नृत्य गालों जनजाति का प्रमुख नृत्य है..जो अरूणाचल प्रदेश के पश्चिम सियॉग जिले में किया जाता है..यह नृत्य दूरदराज के गांव में पुरूषों द्वारा किया जाता है..बारात में पधारे बारातियों को लड़की की घर आनेपर यह नृत्य स्वागत स्वागत नृत्य के तौर पर किया जाता है..थोकसा हाथ में लिए नर्तक इसे जमीन पर ठोकते हैं..ऐसा करने में बुरे शक्तियों को या आत्माओं को रोका जा सकता है..इस भावना से यह नृत्य किया जाता है..दूल्हे के घर दुल्हन आने पर मेहमानों के मनोरंजन के लिए यह नृत्य किया जाता है..जलद गती से चलनेवाला यह नृत्य शारीरिक हलचल से मन को मोह लेता है..
पोनुंग नृत्य (अरूणाचल प्रदेश)
अरूणाचल प्रदेश के आदिवासी द्वारा पोनुंग नृत्य त्योहारों के समय धान कटाई के पश्चात समाज के खुशहाली के लिए किया जाता है..मिरी के नेतृत्व में शादीशुदा युवा महिलाएं और लड़कियां इस नृत्य में सहभाग लेती हैं..गाए जानेवाले गीत धान और खेती पर आधारित होते हैं..तलावर में लगी लोहे की गोल चक्री का आवाज निकालकर महिलाएँ लयताल पर समूह गीत गाकर नृत्य करते हैं..
बिहू नृत्य (असम)
बसन्त ऋतु के आगमन के साथ ही रंगोली बिहू का पर्व नृत्य गीत के साथ प्रारम्भ होता है..जब युवा स्त्री की भांति प्रकृति कान्ति, सौन्दर्य एवं रंगों से परिपूर्ण हो उठती हैं..उस समय का वातावरण ऐसा होता है कि युवा लड़के एवं लड़कियां एक दूसरे को प्रेम के संसार में पर्दापण हेतु आमंत्रित करते हुए बिहू नृत्य प्रस्तुत करते हैं..इसके अलावा विवाह तथा बीजारोपण के समय भी प्रस्तुत किया जाता है..वास्तव में इस उत्सव की जड़ कृषि उत्पादन संस्कृति में ही समाई हुई है..बिहू नृत्य बसन्त के हर्षोल्लास एवं युवाओं के उमंग एवं उत्साह को अभिव्यक्त करता है..प्रकृति के शुद्ध सौंदर्य की सराहना में युवा लड़के एवं लड़कियां ढोल की पौऱूशेय थाप, भैंस के सींग से निर्मित पेपा की मधुर धुन एवं अन्य लोक वाद्य यंत्रों के साथ श्रृंगारिक भावनाओं के गीत पर नृत्य प्रस्तुत करते हैं..
ढाल थुंगरी (असम)
बोडो जनजाति की महिलाएं स्वयं को बड़े अभिमान से विरांगनाएं समझती हैं..और हाथों में ढाल तलवार लेकर इस नृत्य को बाथोऊ बोडो धर्म की पूजा करती है..और ईश्वर से अपने सामाजिक उन्नति एवं सुरक्षा के लिए ईश्वर से प्रार्था करती है..
लाई हरोबा (मणिपुर)
यह मणिपुर का एक प्रसिद्ध लोकनृत्य है...जो पर्वो एवं त्यौहारों के अवसर पर इश्ट देवी एवं देवाताओं के समक्ष किया जाता है..मणिपुर के प्राचीन संस्कृति की झलक इस नृत्य में दिखाई पड़ती है..देवी को प्रसन्न करने के लिए पुजारिनें इस परम्परा को अत्यन्त जसाथ सम्पादित करते हैं..इस नृत्य के माध्यम से सृष्टि की संरचना एवं सभ्यता के विकास को प्रदर्शित किया जाता है...लाई-हरोबा नृत्य समारोह कई दिनों तक चलता रहता है..मैबी, पुजारिनें इस नृत्य में प्रमुख भूमिका का निर्वाह करती है..
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