मेरा अंतर्मन हमेशा कई संवेदनशील मुद्दों को लेकर मंथन करता रहता है..चाहे वह राजनीतिक से जुड़ा मसला हो...या अपराधिक घटनाक्रमों से संबंधित...मैं अपनी रिपोर्टिंग में उन सारे किरदारों को जीता हो...जिसका कव्हरेज मैंने किया है..मैं उसके परिणाम को लेकर भी सोचता हूँ...जिससे उस पूरे घटनाक्रम में सजीवता ला सकूँ...एक ऐसा ही मसला है...जिसको लेकर मैं कई बार गहन-चिंतन में डूब जाता हूँ....वह है...जिस्मफरोशी का धंधा...इससे संबंधित करीब दर्जन भर खबरों पर मैनें रिपोर्टिंग की है..लिहाजा इससे संबंधित बार-बार कई सवाल मेरे मन को कुरेदते रहते हैं...जिनके पक्ष को तो मैं अपने रिपोर्टिंग में रख देता हूँ....लेकिन कई अनछुए पहलू छूट भी जाते हैं....जिनको न रख पाने की कशिश रह सी जाती है...उन्हीं कुछ अनछुए पहलुओं को यहां रखने जा रहा हूँ...जिस्मफरोशी का धंधा...और इसमें जुड़े युवती और महिलाएं...यहां एक बात और लिखना जरूरी है..मैं एक पुरूष हूँ...जिससे मेरी भी कुछ शारिरीक इच्छाएं होंगी...मैं भी जवानी के दहलीज पर भटका हूँगा...लेकिन इन सबके बावजूद मैं अपनी बात को यहां बेबाक तरीके से रखना चाहता हूँ..ऐसा नहीं कि हर मामले में पुरूष ही दोषी है..कई मामले में औरतों की सहभागिता भी बढ़-चढ़ कर रहती है...लेकिन कुछ मामलों में पुरूष दोषी करार दिए जाते हैं...तो कुछ में महिलाएं...लेकिन देह की भूख जब सार्वजनिक होती है...तो लोग इसे हेय दृष्टि से ही देखते हैं..कोई इसे अच्छा नहीं बोलता..अभी हाल में रायपुर में पकड़े गए गए सेक्स रैक्ट के भंडोफोड़ में जब कुछ युवतियों से मैंने बात की...तो मेरे मन को काफी धक्का सा लगा..ये वे युवतियां थी...जिन्होंने अपनी जवानी के दहलीज पर कदम रखा था..और इस पेशे से जुड़ गई थे...इनमें से कुछ तो हालात की मारी हुई थी..तो कुछ प्रोफेशनल कॉल गर्ल..जो पकड़े जाने के बाद अपनी अलग ही कहानी बयां कर रही थी....
आदिम काल से नारी शोषण का शिकार रही है...नारी की नारी सुलभ संवेदनाओं की हर युग में उपेक्षा हुई है...समाज का कोई भी वर्ग रहा हो, वह नारी देह के भूगोल की ही व्याख्या करता रहा है...समाज का कोई भी रिश्ता स्त्री को सुरक्षा–कवच प्रदान नहीं कर पाया है...सुरक्षा का नाजुक घेरा टूटते ही नारी केवल शरीर नज़र आती है और पुरुष उपभोक्ता मात्र..स्त्री के देह–व्यापार के कारणों में आर्थिक कारण सर्वोपरि है...गरीबी के कारण जीवन की न्यूनतम दैनिक आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं हो पाती...इनमें पति या परिवार के पुरुष सदस्यों का निकम्मापन भी शामिल है...अर्थ प्राप्ति का तब एक मात्र साधन नज़र आती है घर की स्त्री–बहिन–पत्नी जो कोई भी हो...दूसरा वर्ग वह है जो पैसे की हवस से पीडि़त है...पैसा ही उसकी आवश्यकता बन गया है...वह पैसा ऊँचे पद के कारण मिले या अन्य किसी व्यापारिक होड़ के कारण प्राप्त हो.. औरत की विवशता को फायदा उठाने में पुरुष सदैव तत्पर है... दाम्पत्य जीवन की सफलता जहाँ नारी को सुरक्षा प्रदान करती है, असफलता उसे गहरे गर्त में धकेल सकती है..अनमेल विवाह के कारण तनावग्रस्त होकर स्त्री को घर छोड़ना पड़ सकता है...उसके बाद का रास्ता कोठे पर ही जाकर खत्म होता है..बीमारी या दुर्घटना के कारण पति के असमर्थ होने पर पत्नी को यदि आर्थिक सुरक्षा प्राप्त नहीं है तो उसे घर चलाने के लिए अपना शरीर बेचना पड़ता है...शरीर की माँग एक जैव आवश्यकता है....विवाह इसकी पूर्ति का आदर्श एवं संतुलित रूप् है..इस आदर्श के खण्डित होने पर नारी देह केवल देह रह जाती है, जिसकी नितान्त निजी जरूरत की उपेक्षा नहीं की जा सकती....विलासिता चाहे पुरुष की हो चाहे स्त्री की, सबसे अधिक घाटे में स्त्री ही रहती है....कुछ के लिए कैरियर ही सब कुछ है, नैतिकता कुछ नहीं...ऊँचा पद प्राप्त करने के पीछे है प्रतिष्ठा के साथ–साथ अधिक धन अर्जित करना...औरत चाहे वेश्या हो चाहे किसी की पत्नी, उसके सम्पर्क में चाहे पुलिस आए चाहे पुरोहित, उसके शरीर के लिए सभी गिद्ध बन जाते हैं....
Comments