मीडिया का व्यवसायीकरण होता जा रहा है..व्यासायी घराने अपना हित साधने के लिए मीडिया और उसके संसाधनों का जबरदस्त दोहन कर रहे हैं...उनके हित के आगे खबरों की कोई अहमियत नही..चाहे वह खबर सामाजिक सारोकार से ही जुड़ा हुआ मुद्दा क्यों न हो...जब हम लोगों को एक पत्रकार के रूप में दायित्वों को बताया गया तब हमने सोचा था कि हम अपने दायित्वों के लिए किसी से समझौता नहीं करेंगे...लेकिन दायित्वों का पढ़ाया गया पाठ अब किताबों तक ही सीमित रह गया है...कौन सी खबर को प्रमुखता से दिखाना है..और कौन सी खबर को गिराना है...ये वे लोग निर्धारित करने लगे हैं..जिनका पत्रकारिता से कोई सारोकार नहीं है...आज का पत्रकार सिर्फ कठपुलती बन कर रह गया है...डमी पत्रकार..इन्हें वहीं करना है...जो व्यसायी घराने के कर्ता-धर्ता कहें..मीडिया के व्यवसायीकरण ने एक सच्चे पत्रकार का गला घोंट दिया है..घुटन भरे माहौल में काम की आजादी छीन सी गई है..व्यवसायी घरानों ने मीडिया को एक जरिया बनाया है..जिसके जरिए वह सरकार तक अपनी पहुँच बना सके..और अपना उल्लू सीधा कर सके..अपना हित साधने के लिए इन्होंने मीडिया को आसान जरिया चुना है...मीडिया के इस स्वरूप में व्यवसायीकरण होने के कारण मीडिया अपने नियमों से हटकर काम करने लगा है, जिससे इसके प्रति विश्वास पर चोट पहुँच रही है...जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए...लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ को अपनी नैतिक, सामाजिक ज़िम्मेदारी समझनी चाहिए...मीडिया को सिर्फ़ अपने व्यावसायिक हित ही नहीं साधने चाहिए...कुछ क्षेत्र प्रोफ़ेशन नहीं मिशन होते हैं....पत्रकारिता इसका उदाहरण हैं...आज की दुनिया में हर प्रोफ़ेशन धंधा बनने को मजबूर है तो पत्रकारिता भी महज़ एक कारोबार बन कर रह गया है...जिसमें ख़बरें बिकने के लिए हैं... जो न बिके उसे बाहर कर दिया जाता है. यथार्थ की दुनिया में निष्पक्षता का कोई सवाल ही नहीं है. समस्या अब कॉरपोरेटिया समाज की मीडिया में घुसने से खड़ी हो रही है. आंतरिक आज़ादी ही नहीं होगी तो पत्रकारिता का भविष्य संकट में है...आज मीडिया का व्यवसायीकरण हो चुका है और वह अपने लाभ के लिये समाज के नैतिक मूल्यो की अनदेखी तथा पक्षपाती व्यवहार करने से भी नहीं हिचकिचाता...व्यवसायीकरण के इस युग में मीडिया की समाज व राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी और जवाबदेही सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है..कुल मिलाकर मीडिया को बाजार की वस्तु बना दी गई और मीडिया के संसाधनों का व्यवसायीकरण हुआ और इसे बता दिया गया कि पत्रकारिता व्यवसायिक हो गई....मीडिया को निष्पक्ष होना बहुत जरुरी है, और समाज के प्रति इनका दायित्व है..लोगों की समस्याओं को सामने लाने वाला उसका जज्बा अब लुप्त होता दिख रहा है..मीडिया, लोकतंत्र का चौथा आधार है और इसको पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए. लेकिन मीडिया को भी चाहिए कि वो इसका व्यवसायीकरण करने की बजाए जनहित में काम करे...हम पत्रकारों को भी चौथे स्तंभ के तले अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होना चाहिए.
आज की नई पीढ़ी कल्पना में जी रही है...फेंटेसी में यह नई-नई कहानियां बुनते रहते हैं...कभी स्पाइडर मैन...कभी सुपर मैन बनकर यह दूसरों से लड़ते हुए अपने-आप को सपने में देखते हैं..लेकिन जब सपना टूटता है..तो इन्हें अपने हकीकत का एहसास होता है....लेकिन कभी-कभी सपनों को यह हकीकत का अमलीजामा पहनाने की कोशिश करते हैं...जिसके कारण ये सलाखों के पीछे भी पहुँच जाते हैं...ऐसा ही कुछ हुआ है..रायपुर के स्कूली छात्र सुमेर सिंह के साथ...जो इसी फेंटेंसी करेक्टर की चक्कर में आज पुलिस की गिरफ्त में पहुँच चुका है..दरअसल यह महोदय एक न्यूज चैनल दफ्तर पहुँचकर खुद को सीबीआई एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बता रहे थे..इनके मुताबिक अब तक 28 एनकाउंटर करने के बाद इन्हें कोलकाता से छत्तीसगढ़ में नक्सली एनकाउंटर करने के लिए भेजा गया है...पुलिस को जब इसकी सूचना मिली तो उनके होश गुम हो गए..गिरफ्तारी के बाद सारा माजरा समझ में आया...पुलिस ने मीडिया बनकर इस सीबीआई एनकाउंटर स्पेशलिस्ट को पकड़ा... अब तक छप्पन, शूटआऊट एट लोखणंडवाला....जैसी फिल्मों से इंस्पायर यह जनाब खुद को सीबीआई एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बताते हैं..इन्हें नक्सलियों का लाइव
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