भ्रष्टाचार..एक ऐसी समस्या जिसका हल ढूंढते नजर आ रहे हैं..वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं गांधीवादी नेता अन्ना हजारे..लेकिन क्या दीमक की तरह खोखला कर रहे इस देश को भ्रष्टाचार रूपी कीड़े से बचाया जा सकता है..जिसने अपना पैर पुरजोर तरीके से लोकतंत्र के सभी स्तंभों में जमा लिया है..हमारा देश लोकतांत्रिक देश है..लोकतंत्र..एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जनता अपना शासक खुद चुनती है..और जहां लोगों को जीने की आजादी हो और लोगों के अधिकारों का हनन न हो...
लोकतंत्र के तीन मुख्य स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में सर्वजन ने प्रेस अर्थात मीडिया को स्वीकार किया है..लेकिन क्या भारत में ये सारे स्तंभ सही रूप से काम कर रहे हैं..क्या भ्रष्टाचार ने सिर्फ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को ही जकड़ा है..मीडिया क्या इससे अछूता है..शायद नहीं..मीडिया में भी भ्रष्टाचार उतना ही व्यापत है..जितना लोकतंत्र के बाकी स्तंभों में..ऐसे में पुरजोर तरीके से भ्रष्टाचार की आवाज उठाने वाले तथाकथित लोकतंत्र के इस स्तंभ के लिए भी एक ड्राफ की जरूरत है..जिसके जरिए भ्रष्टाचार में गोते लगा रहे इस तंत्र को रोका जा सके..इस और काफी कम लोगों का ध्यान है..क्योंकि मीडिया दूसरों की बातों को तो पुरजोर और सशक्त तरीके से उठा देता है..लेकिन मीडिया के अंदर छिपे भ्रष्टचार कभी-कभार ही सामने आ पाते हैं..लिहाजा सारे देश में अन्ना के भ्रष्टतंत्र के खिलाफ हल्ला बोल आंदोलन में इस और भी ध्यान देने की जरूरत है..
भ्रष्टाचार ने लोकतंत्र के किस तंत्र को कितना प्रभावित किया है..ये किसी से छिपा नहीं है..लोकतंत्र के सभी संस्थाएं पारदर्शिता और जवाबदेही के मापदंडों का पालन कितना करती है..यह भी सबको मालूम है..क्य़ोंकि इससे एक विशेष वर्ग आहत नहीं है..समाज का हर तबका इससे जूझ रहा है..ऐसे में अन्ना ने जब इसके खिलाफ आवाज उठाई तो..पूरे देश से उन्हें व्यापक समर्थन मिला..लेकिन अन्ना को विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की तरह मीडिया को भी आईना दिखाना जरूरत है..मीडिया में बुद्धिजीवी और संवेदनशील लोगों की कमी नहीं है..लेकिन ये सभी सिस्टम के आगे मजबूर है..ऐसे में मीडिया को भी एक ऐसे अन्नागीरी की जरूरत है..जिसकी वजह से इस तंत्र में भी बदलाव की ब्यार को महसूस किया जा सके..
मीडिया में भ्रष्टाचार को लेकर चिंतित कर देने वाले माहौल पर सबको सोचने की जरूरत है..समाज के हर हिस्से में कुछ भ्रष्ट लोग हैं तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि मीडिया के अंदर भी भ्रष्टाचार है..मीडिया का काम है कि जो सत्ता में है, जो ठीक से अपना काम नहीं कर रहा है, जो भ्रष्ट है, जो गलत काम कर रहा है, उनकी कहानी सबके सामने लाए..लोगों ने खोजपूर्ण खबरों के जरिए सबको बताए कि हमारे राजनेता क्या कर रहे हैं..वे कहते क्या हैं और करते क्या हैं..लेकिन कितनी खबरें ऐसी होती हैं कि जिसे पैसों के बल पर खरीद लिया जाता है.पेड न्यूज का किस तरह बोलबाला है..यह किसी भी मिडियाकर्मी से छिपा नहीं है..राज्य और केन्द्र सरकार की बजट में मीडिया के लिए हर साल एक भारी-भरकम रकम होती है..जिसके जरिए वे अपना उल्लू साधते नजर आते हैं..मीडिया के अंदर के भ्रष्टतंत्र पर कैसे लगाम लगाया जा सके..ये अन्ना की चली आंधी के बीच सबसे बड़ा सवाल है.
मीडिया जगत के आकार में पिछले सालों के दौरान हुई अप्रत्याशित वृद्घि उसकी गुणवत्ता पर हावी हो गई है..इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि लगातार सुधरती वित्तीय स्थिति ने मीडिया जगत के पेशेवरों की धार कुंद कर दी है.. बहरहाल, इन समस्याओं की तुलना अगर मीडिया के क्षेत्र में बढ़ रहे कारोबारी और राजनीतिक हस्तक्षेप तथा नियंत्रण से की जाए तो ये एकदम गौण नजर आती हैं..देश में समाचार चैनलों, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की संख्या में दिन-प्रतिदिन इजाफा हो रहा है..इनमें से अधिकांश का मालिकाना हक या तो ऐसे राजनीतिज्ञों के पास है जिनके कारोबारी हित भी हैं या फिर ऐसे कारोबारियों के पास जिनका राजनीति से जुड़ाव है..इनके अलावा विज्ञापनों से होने वाली आय पर मीडिया की बढ़ती निर्भरता भी लोकतंत्र के इस चौथे खंभे की स्वतंत्रता को सीमित कर रही है..कोई भी मीडिया समूह एक निजी संस्था है, इनके मालिक का एक लक्ष्य है, एक उद्देश्य है कि मुनाफा कमाएं..जितना ज्यादा मुनाफा हो, उसके लिए अच्छा है..कई बार दबाव बनाया जाता है कि विज्ञापनदाता के बारे में कुछ ना लिखो..तुम्हारी नौकरी चली जाएगी..यानी इन्हीं के पैसे में तुम्हारी तनख्वाह आ रही है..चाहे वह विज्ञापनदाता कितना ही भ्रष्टाचार के गोते क्यों नहीं लगा रहा है..उसे उजागर नहीं होने दिया जाएगा..और आपकी कलम की धार पर ब्रेक लगा दी जाएगी..
केंद्र एवं राज्य सरकारों के भ्रष्ट तंत्र से जनता कितनी खफा है,इसका नजारा इस समय पूरे देश में अन्ना को मिल रहे जनसमर्थन से अंदाजा लगाया जा सकता है..आखिर भ्रष्टाचार कब तक..यह सबका सवाल है..ऐसे में मीडिया को भी एक ऐसे अन्नागीरी की जरूरत है..जो इस तंत्र के अंदर के भ्रष्टाचार को खत्म कर सके..
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