किसी को इच्छा मृत्यु कैसे दी जा सकती है..सुप्रीम कोर्ट ने बेहोशी की हालत में चल रही बलात्कार पीड़िता अरुणा शानबाग मामले में दया याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट के मुताबिक अरुणा को दया-मृत्यु की इजाजत नहीं दी जा सकती है. इसके साथ ही जब ज़िंदगी मौत से भी बदतर हो जाए, तो क्या इंसान को मरने की इजाज़त मिलनी चाहिए, इस सवाल पर छिड़ी बहस को एक मुकाम मिल गया है..मुंबई के केईएम अस्पताल में 37 साल से एक बिस्तर पर बेसुध होकर जिंदगी काट रही अरुणा शानबाग को इच्छा मृत्यु पर छिड़ी लंबी बहस पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाकर विराम लगा दिया..सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में अपना फैसला सुना दिया है..इस मामले में सु्प्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था..अरुणा शानबाग की जिंदगी पर किताब लिखने वाली पिंकी विरानी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दया मृत्यु देने की मांग की थी...लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ परिस्थितियों में पैसिव यूथनेशिया की इजाजत दी जा सकती है..अदालत ने पैसिव यूथनेशिया के लिए कुछ दिशानिर्देश भी तय किए..इसके साथ ही, पहली बार देश में इच्छा मृत्यु के मामले में एक कानूनी दिशा तय हो गई है..जस्टिस मार्केंडेय काटजू और जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा की बेंच ने फैसला देते हुए कहा कि कुछ असाध्य रोग से पीडि़त मरीजों के मामले में कानूनी तौर पर लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाया जा सकता है..अदालत ने कहा कि शानबाग के मामले में तथ्य, परिस्थिति, डॉक्टरों की राय आदि को ध्यान में रखकर यह इजाजत नहीं दी जा सकती..बेंच ने कहा कि वर्तमान में इच्छा मृत्यु के संबंध में कोई कानून मौजूद नहीं है, लेकिन कुछ मामलों के लिए कानून बनाया जा सकता है..अदालत ने कहा कि इस मामले में पैसिव यूथनेशिया की इजाजत इसलिए नहीं दी जा रही है क्योंकि याचिकाकर्ता का शानबाग से खून का रिश्ता नहीं है और उन्हें अधिकार नहीं है कि वे उनके लिए मौत मांगें..अदालत ने यह भी कहा कि जब तक संसद में इस बारे में कोई कानून नहीं बन जाता, तब तक सुप्रीम कोर्ट का वर्तमान निर्णय लागू रहेगा.. यह फैसला पहली बार देश में पैसिव यूथनेशिया का रास्ता साफ करेगा..अरुणा रामचंद्रन शानबाग ने सन्1966 में मुंबई के किंग्स एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल में नर्स की नौकरी से करियर की शुरुआत की थी..हॉस्पिटल में ही एक सफाई कर्मचारी ने 27 नवंबर 1973 को अरुणा के साथ दुष्कर्म किया था, जिसके बाद से वह कोमा में हैं..याचिका में पिंकी वीरानी की ओर से भोजन बंद करने का आदेश मांगा गया था, ताकि अरुणा को नारकीय जीवन से छुटकारा मिल सके.. पिंकी ने अरुणा की ओर से याचिका दाखिल कर संविधान में दिए गए जीवन के अधिकार की ही दुहाई दी है..उन्होंने कहा है कि जीवन के अधिकार में सम्मान सहित जीने का अधिकार शामिल है और अरुणा जो जीवन जी रही है उसे मानव जीवन नहीं माना जा सकता..पिंकी विरानी ने अरुणा शानबाग की मार्मिक कहानी को किताब का रूप दिया..27 नवंबर 1973 के दिन नर्स अरुणा शानबाग को वहीं के कर्मचारी सोहनलाल ने कुत्ते की जंजीर से बांधकर उसके साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म किया..याचिका में कहा गया कि अरुणा की गर्दन में कुत्ते की चेन लपेटे जाने से वह कोमा में चली गईं..सोहनलाल ने बलात्कार करने की कोशिश की लेकिन यह जानने के बाद कि वह मासिक धर्म से है उसने नर्स के साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म किया..जघन्य अपराध को अंजाम देने के बाद अरुणा को मरा समझने के बाद वह मौके से फरार हो गया..विरानी ने कहा कि गला घोंटे जाने से अरुणा के दिमाग को ऑक्सीजन की सप्लाई बंद हो गई और उसका कॉर्टेक्स क्षतिग्रस्त हो गया..इस वारदात में अरुणा के सर्वाइकल कॉर्ड के साथ ही मस्तिष्क नलिकाओं में भी अंदरुनी चोट पहुंची..अरुणा तबसे अस्पताल में ही भर्ती हैं..बाद में हत्या की कोशिश के जुर्म में सोनेलाल को 7 साल कैद की सजा हुई और उसके बाद वह रिहा भी हो गया..लेकिन अब भी अरूणा अस्पताल की बेड पर जिंदगी औऱ मौत के बीच झूल रही है..
मीडिया का व्यवसायीकरण होता जा रहा है..व्यासायी घराने अपना हित साधने के लिए मीडिया और उसके संसाधनों का जबरदस्त दोहन कर रहे हैं...उनके हित के आगे खबरों की कोई अहमियत नही..चाहे वह खबर सामाजिक सारोकार से ही जुड़ा हुआ मुद्दा क्यों न हो...जब हम लोगों को एक पत्रकार के रूप में दायित्वों को बताया गया तब हमने सोचा था कि हम अपने दायित्वों के लिए किसी से समझौता नहीं करेंगे...लेकिन दायित्वों का पढ़ाया गया पाठ अब किताबों तक ही सीमित रह गया है...कौन सी खबर को प्रमुखता से दिखाना है..और कौन सी खबर को गिराना है...ये वे लोग निर्धारित करने लगे हैं..जिनका पत्रकारिता से कोई सारोकार नहीं है...आज का पत्रकार सिर्फ कठपुलती बन कर रह गया है...डमी पत्रकार..इन्हें वहीं करना है...जो व्यसायी घराने के कर्ता-धर्ता कहें..मीडिया के व्यवसायीकरण ने एक सच्चे पत्रकार का गला घोंट दिया है..घुटन भरे माहौल में काम की आजादी छीन सी गई है..व्यवसायी घरानों ने मीडिया को एक जरिया बनाया है..जिसके जरिए वह सरकार तक अपनी पहुँच बना सके..और अपना उल्लू सीधा कर सके..अपना हित साधने के लिए इन्होंने मीडिया को आसान जरिया चुना है...मीडिया के इस
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