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मीडिया ने मिलाया बिछुड़ों को, अगवा जवान हुए रिहा


 अग्निवेश की मध्यस्थता और मीडिया की पहल रंग लाई : छत्तीसगढ़ में मीडिया ने सराहनीय कदम उठाया है. मीडिया ने स्वामी अग्निवेश की मदद से उन चेहरे पर खुशियां लौटाई है जिनके चेहरे मुरझा चुके थे. जिन्होंने अपनों को पाने का आस छोड़ दिया था. जिन्हें सभी तरफ से मायूसी हाथ लगी थी. जिन्होंने अपना माथा हर उस चौखट पर टेका जहां से उन्हें उम्मीद की किरण नजर आ सकती थी. लेकिन यह किरण भी उनकी आंखों से ओझल होती जा रही थी.
ऐसे में मीडिया की पहल से स्वामी अग्निवेश वह उम्मीद की किरण बन कर आए जिसकी तलाश सभी को थी. लिहाजा 18 दिनों से नक्सलियों के चंगुल में रहे जवानों की रिहाई संभव हो सकी. 26 जनवरी के ठीक एक दिन पहले नक्सलियों ने नारायणपुर से पांच जवानों को अगवा कर लिया था. इन जवानों को छुड़ा पाने में जहां सरकार बेबस नजर आई वहीं अगवा जवानों के परिजन लाचार भटकते रहे. ऐसे में मीडिया उन परिजनों का सहारा बना जो असहाय और लाचार थे. मीडिया की मेहनत रंग लाई औऱ 18 दिन बाद आखिरकार नक्सलियों ने अपहृत जवानों को रिहा कर दिया. रिहाई के बाद जब अपहृत जवान अपने परिजनों से मिले तो दोनों के आखों से खुशी के आंसू छलक पड़े.
करियामेटला में उक्त पांचो जवानों की रिहाई जनअदालत में की गई. अगवा किए गए पुलिसकर्मियों में तीन हेडकांस्टेबल हैं- रघुनंदन ध्रुव, रामाधार पटेल, टी.एक्का और दो कांस्टेबल हैं- रंजन दुबे एवं मणिशंकर. ये सभी छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल (सीएएफ) के सदस्य हैं. इन्हें नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ इलाके के घने जंगली इलाके में रिहा किया गया. सशस्त्र नक्सलियों ने 25 जनवरी को नारायणपुर जिले के भीतरी इलाके में एक यात्री बस पर धावा बोलकर पांच पुलिसकर्मियों और एक आम नागरिक को अगवा कर लिया था. उन्होंने आम नागरिक को कुछ दिन बाद छोड़ दिया, लेकिन सुरक्षाकर्मियों को अपने कब्जे में रखा. ये पुलिसकर्मी बिना हथियार और वर्दी के थे. उनकी तैनाती एक भीतरी इलाके में की गई थी और वे छुट्टी मिलने पर जिला मुख्यालय नारायणपुर शहर जा रहे थे. रिहाई के समय अग्निवेश के दल के साथ भारी संख्या में मीडियाकर्मी मौजूद थे. मीडियाकर्मियों की मौजदूगी में इन सभी जवानों को रिहा किया गया.
इसके पहले माओवादी प्रवक्ता प्रभात ने मीडिया से फोन पर कहा कि कोंडागांव ब्लाक के करियामेटा गांव में एक जनअदालत के बाद जवानों को रिहा करने का फैसला लिया गया है. जंगलों के बीच बसे इस इलाके में पूरी तरह माओवादियों की जनताना सरकार का प्रभाव है. प्रभात ने 10 फरवरी से 12 फरवरी की मध्यरात्रि तक एक तरह से युद्ध विराम की बात कही. नारायणपुर-ओरछा मार्ग पर जगह-जगह पंप्लेट-पोस्टर व बैनर आदि लगाए गए थे. इसमें इस इलाके से सेना की ट्रेनिंग कैम्प को वापस भेजने सहित अन्य कई बातें लिखीं हुई थी. अपहृत जवानों में से हेड कांस्टेबल रघुनंदन ध्रुव, रामाधार पटेल और कांस्टेबल मणिशंकर दुबे के परिजन कई दिनों तक जंगलों की खाक छानते रहे लेकिन न तो जवानों का सुराग मिला और न ही माओवादियों ने उनसे संपर्क किया. मीडिया के जरिए नक्सलियों ने स्वामी अग्निवेश को मध्यस्ता के लिए कहा.
माओवादियों के संदेश के बाद स्वामी अग्निवेश, मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, पीयूसीएल के वी सुरेश, कविता श्रीवास्तव और पीयूडीआर के मनु सिंह शुक्रवार की सुबह साढ़े छह बजे जगदलपुर से कोंडागांव के लिए रवाना हुए थे. उनके साथ दस वाहनों का काफिला चला. कोंडागांव से नारायणपुर जाने के लिए भाटपाल से वे बयानार मार्ग पर की ओर गए. बाद में उन्हें गलत रास्ते पर जाने का अहसास हुआ और वे फिर से भाटपाल आकर नारायणपुर की ओर निकल पड़े. यह काफिला करीब सुबह 11 बजे गढ़बेंगाल के बाद झाराघाटी होते हुए धौड़ाई की ओर रवाना हुआ. वहां इनकी मुलाकात नक्सलियों से हुई और ये सभी जवान रिहा हो सके. इस पूरे अभियान में छत्तीसगढ़ सरकार ने मीडिया की खासी प्रशंसा की है. मीडिया की बदौलत ही ये सभी जवान आज आजाद हैं. मीडिया से बातचीत में इन अगवा जवानों ने कबूला कि अगर मीडिया की पहल न हुई होती तो शायद ये आज अपने परिजनों से न मिल पाते.

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