राजनीतिक हस्तियां ये मान कर चलती हैं कि वे मनमानी करते रहेंगे.और इसका खामियाज उन्हें नहीं भुगतना पड़ेगा..छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर में कुछ राजनीतिक लोगों ने कुछ ऐसा ही सोच लिया..लिहाजा उन्होंने मीडिया के सामने ही राष्ट्रीय अखंडता को तार-तार करने का काम किया...लेकिन मीडिया ने जब अपने दायित्वों को समझते हुए इस घटना को सामने लाया तो अपने आपको जनता की हितैषी बत्ताने वाले इन सफेदपोश लोगों की पोल खुल गई...हुआ यूँ कि वाराणसी में हुए धमाके के बाद संवेदनशीलता दिखाते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नौ दिसंबर को अपना जन्मदिन नहीं मनाने की घोषणा के बावजूद छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों थोड़ा ज्यादा उत्साह दिखाया और उन्होंने इस अवसर पर जो केक काटा वह तिरंगे के रूप में...इस दौरान ये सफेदपोश भूल गए कि वे छूरा किस पर चला रहे हैं.तीन रंगों वाला राष्ट्रीय ध्वज और उसमें बीच में अशोक चक्र..कांग्रेस पदाधिकारियों ने केक काटते समय इसे नजरअंदाज कर दिया..तिरंगे वाले केक को चाकू से टुकड़ों-टुकड़ों में काँटा और स्वाद लेकर कहा वाह-वाह...इससे पहले भी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष धन्नेद्र साहू पर एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता के निधन पर तिरंगा लपेट कर श्रध्दजंलि दिए जाने पर हंगामा हुआ था.इस मामले में न्यायालय के आदेश पर कोतवाली पुलिस ने राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने के मामले में अपराध कायम कर लिया था..इस गिरफ्तारी को लेकर कांग्रेस ने कोतवाली सीएसपी मनीषा ठाकुर के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था..बहारहाल इस मामले में दोषी कांग्रेस नेताओं की अब तक गिरफ्तारी तो नहीं हो पाई.इस बीच शहर कांग्रेस अध्यक्ष इंदरचंद धाड़ीवाल ने एक बार फिर तिरंगा का अपमान कर दिया है..तिरंगे के साथ सोनिया गांधी के जन्मदिन पर इतना अपमानजनक व्यवहार करने के बाद भी कांग्रेसी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है.शहर कांग्रेस अध्यक्ष इंदरचंद धाड़ीवाल कहते हैं "हो ही नहीं सकता, केक में चक्र है ही नहीं जिसने बनवाकर लाया है वो भी कह रहा है कि नहीं है..अगर चक्र होगा तो मैं पांच लाख रुपए देने को तैयार हूं..अगर चक्र है भी तो आप फोटो में से उसे डिलीट करवा दीजिए" प्रदेश कांग्रेस महामंत्री सुभाष शर्मा ने भी कहा है कि "इस बारे में मैं कुछ नहीं जानता..केक आया, हमने काटा और खा गए, बस..केक शहर कांग्रेस अध्यक्ष धाड़ीवाल ने मंगवाया था...
मीडिया का व्यवसायीकरण होता जा रहा है..व्यासायी घराने अपना हित साधने के लिए मीडिया और उसके संसाधनों का जबरदस्त दोहन कर रहे हैं...उनके हित के आगे खबरों की कोई अहमियत नही..चाहे वह खबर सामाजिक सारोकार से ही जुड़ा हुआ मुद्दा क्यों न हो...जब हम लोगों को एक पत्रकार के रूप में दायित्वों को बताया गया तब हमने सोचा था कि हम अपने दायित्वों के लिए किसी से समझौता नहीं करेंगे...लेकिन दायित्वों का पढ़ाया गया पाठ अब किताबों तक ही सीमित रह गया है...कौन सी खबर को प्रमुखता से दिखाना है..और कौन सी खबर को गिराना है...ये वे लोग निर्धारित करने लगे हैं..जिनका पत्रकारिता से कोई सारोकार नहीं है...आज का पत्रकार सिर्फ कठपुलती बन कर रह गया है...डमी पत्रकार..इन्हें वहीं करना है...जो व्यसायी घराने के कर्ता-धर्ता कहें..मीडिया के व्यवसायीकरण ने एक सच्चे पत्रकार का गला घोंट दिया है..घुटन भरे माहौल में काम की आजादी छीन सी गई है..व्यवसायी घरानों ने मीडिया को एक जरिया बनाया है..जिसके जरिए वह सरकार तक अपनी पहुँच बना सके..और अपना उल्लू सीधा कर सके..अपना हित साधने के लिए इन्होंने मीडिया को आसान जरिया चुना है...मीडिया के इस
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