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नक्सल समस्या: राजनीतिक हस्तियों के साथ दिग्गज पत्रकारों में छिड़ी बहस..


नक्सलवाद पर हर जगह तीखी बहस छिड़ी हुई है..हर कोई इस समस्या के निदान के लिए हल खोज रहा है..छत्तीसगढ़ में तो जैसे वाक्युद्ध की रणभेरी बज चुकी है..जिसमें सभी रणबांकुरों की तरह शब्दों से एक-दूसरे पर वार कर रहे हैं..लेकिन अभी तक कोई सार्थक पहल नक्सल समस्या का होता नहीं दिख रहा..ऐसे में साधना न्यूज ने सामाजिक दायित्वों के प्रति गंभीरता जताते हुए प्रदेश के ज्वलंत मुद्दे पर परिचर्चा का आयोजन किया..अपनी तरह की पहली राष्ट्रीय परिचर्चा में गृहमंत्री ननकीराम कंवर,लोक निर्माण मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, राज्यसभा सांसद नंद कुमार साय सहित नक्सली मुद्दों पर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ शामिल हुए..इस परिचर्चा में विशेषज्ञों के तौर पर बीएसएफ के पूर्व डी़जी और नक्सल मामलों के विशेषज्ञ पद्मश्री प्रकाश सिंह, नक्सल मामलों के जानकार और प्रभात खबर के समूह संपादक श्री हरिवंश, वर्तमान में नक्सली और केंद्र सरकार के बीच वार्ताकार की भूमिका निभा रहे सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश, आईबीएन 7 के प्रबंध संपादक आशुतोष,अमर उजाला के वरिष्ठ संपादक आनंद मोहन, इंडियन ब्रॉडकास्ट एसोसियशन के महासचिव एन.के.सिंह, भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली के प्रोफेसर आनंद प्रधान ने अपनी-अपनी बातों को रखा..
सभी ने एक स्वर में नक्सली हिंसा की जमकर भतर्सना की..नक्सली विशेषज्ञों के मुताबिक किसी भी हिंसा का रास्ता गलत होता है..और ऐसे किसी भी हिंसा का लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं..इसलिए नक्सलियों को वार्ता की मेज पर आना होगा..बातचीत ही नक्सली समस्या का हल है..सरकार की असफलता के कारण के कारण ही नक्सली समस्या ने इतना बड़ा विकराल रूप लिया है..लिहाजा इस मामले पर सरकार को गंभीरता से सोचने की जरूरत है... नक्सलियों और सरकार के बीच शांति वार्ता की पहल में लगे सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेशका कहना है कि सरकार से जुड़े कुछ लोग नहीं चाहते कि यह बातचीत सफल हो..वार्ता के प्रयास के बीच नक्सलियों के नेता आजाद की मुठभेड़ में हत्या कर दिए जाने से उनकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया..नक्सल वार्ताकर स्वामी अग्निवेश ने नक्सलियों से बातचीत का समर्थन किया.. उन्होंने कहा केन्द्र सरकार व नक्सली बातचीत करने के पक्ष में है..इसके लिए माहौल नहीं बन पा रहे हैं..दुनिया की हर समस्या बात से ही सुलझी है, गोली चलाने से किसी भी समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता है..इससे केवल हिंसा की प्रवृति बढ़ती है.. नक्सल समस्या पर लंबे समय तक काम कर चुके बीएसएफ के पूर्व डीजी प्रकाश सिंह शासन औऱ प्रशासन में बैठे लोगों पर आरोप लगाया है कि शासन औऱ प्रशासन की असफलता के कारण ही दशक हर दशक कोई समस्या हमारे सामने चुनौती के रूप में खड़ी रही..चाहे नार्थ-इस्ट का मामला हो..या साठ के दशक में उपजा नक्सली समस्या.प्लानिंग कमीशन को सौपे रिपोर्ट का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जब सरकार नागा विद्रोहियों, उल्फा से बातचीत के तैयार है..तो नक्सलियों के साथ भी सार्थक बहस होनी चाहिए..लेकिन इसके लिए पहले सरकार को नक्सलियों पर हावी होना पड़ेगा..जब तक नक्सलियों पर सरकार होवी नहीं होगी.तब तक बातचीत भी कोई मायने नहीं रखेगा.इंडियन ब्रोडकास्ट एसोसिएशन के महासचिव एनके सिंह ने कहा कि हमारे देश में विकास का गलत मॉडल चल रहा है..लगभग 84 करोड़ लोग 20 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से अपना गुजारा करते हैं, वहीं 25 हजार लोग ऐसे भी हैं जिनके पास 2 करोड़ की गाड़ियाँ हैं..इस तरह के असमान विकास से नक्सली समस्या पैदा होना लाजिमी है.साहित्यकार रमेश नैयर ने कहा कि आदिवासी अंचलों का शोषण पहले पुलिस व फॉरेस्ट रेंजरों ने किया अब नक्सली उन्हें लूट रहे है..यह व्यवस्था बदलनी होगी..हमें विकास का कोई दूसरा उपाय ढूँढ़ने की जरूरत है..भारतीय जनसंचार संस्थान दिल्ली के प्रोफेसर आनंद प्रधान ने कहा कि हिंसा सिर्फ नक्सली हिंसा नहीं है, लोगों को उनके हक से, रोजी-रोटी से मरहूम रखना भी हिंसा है..इसे अब बदलने की आवश्यकता है.इस अवसर पर प्रभात खबर के समूह संपादक हरिवंश ने इस परिचर्चा में शामिल होते हुए कहा कि नक्सली समस्या कोई आज की समस्या नहीं है.इस समस्या को खड़े करने में सरकार की असफलता सबसे प्रमुख मुद्दा है...जिसके कारण यह समस्या विकराल रूप लिए हैं..हिंसा का रास्ता सदैव गलत है. आईबीएन 7 के प्रबंध संपादक आशुतोष ने कहा कि नक्सली समर्थक कभी किसी के हितैषी नहीं हो सकते..इतिहास गवाह है कि उन्होंने अपने परिवार के लोगों को ही नहीं बख्शा, तो देश का क्या भला करेंगे..समाज की सोच परिवर्तन में मीडिया की अहम भूमिका है..जनता मीडिया से इन्स पार हो समाज की कुरीतियों को खत्म करने के अभियान में संलग्न हैं..देश के लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत है.अमर उजाला के संपादक अरविंद मोहन ने कहा कि मीडिया से लोग काफी अपेक्षा रखते हैं, लेकिन नक्सली या सरकार मीडिया से दोहरा व्यवहार करते हैं..युद्ध क्षेत्र में सेना बल अपनी कस्टडी में पत्रकारों को लेकर जाते हैं..वे वही छपवाते हैं, जो चाहते हैं..उस पर कोई सवालिया निशान खड़ा नहीं करता, लेकिन यदि नक्सली पत्रकारों को अपने साथ ले जाते हैं और पत्रकार कुछ लिखता है तो उसके चरित्र एवं मंशा पर सवाल खड़े किए जाते हैं..इतनी स्वतंत्रता होनी चाहिए कि पत्रकार खुद जाकर सच जाने या पत्रकार पर आरोप लगाना बंद करें..सभी ने एक स्वर में कहा कि शासन औऱ प्रशासन में बैठे लोगों का नाकारापन नक्सलियों के लिए किसी लाइसेंस से कम नहीं...जो दूसरों पर छीटाकंशी करकर अपना दामन बचाते रहते हैं..और अपने दामन को पाक साफ बताते हैं.. 

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