बहुप्रतीक्षित रावण दर्शकों के बीच पहुंच गई है...महाभारत का आऊटपुट लिए रावण इस साल की दूसरी वैसी फिल्म है जो किसी महाकाव्य से प्रेरित है..मणिरत्नम ने अपनी इस फिल्म के द्वारा रामायण को नए ज़माने के कलेवर में रंग कर एक नए रूप में प्रस्तुत किया है..पांचों मुख्य पात्रों बीरा ( अभिषेक बच्चन ) रावण या रॉबिन हुड , देव ( विक्रम ) राम , रागिनी ( ऐश्वर्या राय ) सीता , मंगल ( रवि किशन ) लक्ष्मण और फॉरेस्ट गार्ड ( गोविंदा ) हनुमान रामायण के पात्रों की भूमिका में है..यहां बीरा की कैद में होने के बावजूद रागिनी रावण की और आकर्षित होने लगती है तो रागिनी के पति बने देव फिल्म में स्टार्ट टु लास्ट विलेन नजर आते हैं.....बाकी पात्रों में भी रामायण के चरित्रों की समानताएं रखी गई हैं...मणि रत्नम इस फिल्म के अनेक दृश्यों में रामायण के निर्णायक प्रसंग ले आते हैं..मणिरत्नम एक ऐसे फिल्मकार हैं जो अपनी फिल्मों में सिर्फ कलाकारों से ही बढ़िया अभिनय करवाने की क्षमता नहीं रखते बल्कि उनकी फिल्म के दृश्य भी संवाद पैदा करते हैं..मणि रत्नम देश के शिल्पी फिल्मकार हैं..उनकी फिल्में खूबसूरत होती हैं और देश के अन देखे लोकेशन से दर्शकों का मनोरम मनोरंजन करती हैं...रावण में भी उनकी पुरानी खूबियां मौजूद हैं..दर्शक साउथ के जंगलों, मलसेज घाट और ओरछा के किले का भव्य दर्शन करते हैं..पूरी फिल्म में प्रकृति के पंचतत्वों में से एक जल विभिन्न रूपों में मौजूद है..पहाड़, नदी और झरने कोहरे में डूबे हैं..प्राचीन इमारतों पर काई जमी है..मणि रत्नम इन सभी के जरिए फिल्म का भाव और वातावरण तैयार करते हैं..सब कुछ अद्भुत रूप से नयनाभिरामी है...लचर कहानी के बावजूद फिल्म बांधे रखने में कामयाब होती है और ये कमाल है ऐसी लोकेशन्स का जो पहले शायद ही किसी फिल्म में इतनी खूबसूरती से फिल्माए गए हों..मणिरत्नम की फिल्मों में बरसते मेघा खूब दिखाई पड़ते हैं और रावण तो पूरी तरह से पानी में भीगी हुई लगती है..बेहद खूबसूरती से फिल्माए गए लोकोशन्स के लिए मणि और उनकी पूरी टीम को दाद देनी चाहिए...राम के किरदार में विक्रम ने वाकई रावण के ऊपर जीत हासिल की है, उनका अभिनय बेहद सधा हुआ है....ऐश्वर्या सिर्फ खूबसूरत दिखी ही नहीं हैं बल्कि वो खूबसूरत अभिनय भी कर लेती हैं...संतोष सिवान ने अपने कैमरे का खूबसूरती से इस्तेमाल कर फिल्म में जान डालने का काम किया है....गुलज़ार के गीत और रहमान का संगीत दिलचस्प जुगलबंदी पैदा करता है...फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है कि इसके साथ मणिरत्नम का नाम जुड़ा है मगर सबसे बड़ी खा़मी है इसकी कमजोर कहानी...फिर भी मणि ने कला की दृष्टि से फिल्म को देखने लायक बनाया है...
मीडिया का व्यवसायीकरण होता जा रहा है..व्यासायी घराने अपना हित साधने के लिए मीडिया और उसके संसाधनों का जबरदस्त दोहन कर रहे हैं...उनके हित के आगे खबरों की कोई अहमियत नही..चाहे वह खबर सामाजिक सारोकार से ही जुड़ा हुआ मुद्दा क्यों न हो...जब हम लोगों को एक पत्रकार के रूप में दायित्वों को बताया गया तब हमने सोचा था कि हम अपने दायित्वों के लिए किसी से समझौता नहीं करेंगे...लेकिन दायित्वों का पढ़ाया गया पाठ अब किताबों तक ही सीमित रह गया है...कौन सी खबर को प्रमुखता से दिखाना है..और कौन सी खबर को गिराना है...ये वे लोग निर्धारित करने लगे हैं..जिनका पत्रकारिता से कोई सारोकार नहीं है...आज का पत्रकार सिर्फ कठपुलती बन कर रह गया है...डमी पत्रकार..इन्हें वहीं करना है...जो व्यसायी घराने के कर्ता-धर्ता कहें..मीडिया के व्यवसायीकरण ने एक सच्चे पत्रकार का गला घोंट दिया है..घुटन भरे माहौल में काम की आजादी छीन सी गई है..व्यवसायी घरानों ने मीडिया को एक जरिया बनाया है..जिसके जरिए वह सरकार तक अपनी पहुँच बना सके..और अपना उल्लू सीधा कर सके..अपना हित साधने के लिए इन्होंने मीडिया को आसान जरिया चुना है...मीडिया के इस
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