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लंबी लड़ाई...मिला कुछ नहीं !

दो दशक बाद आया दुनिया की सबसे विनाशकारी औद्योगिक दुर्घटना पर फैसला..23 साल तक चली सुनवाई, 178 लोगों की गवाही और तीन हज़ार से ज्यादा पन्नों के दस्तावेजों से गुजरने के बाद स्थानीय अदालत ने दोषियों को दो-दो साल की सजा का फैसला सुनाया.गैस त्राषदी के लिए जिम्मेदार बताए जाने वाले नौ आरोपियों में से एक की तो मौत भी हो चुकी है, लिहाजा बाकी के आठ को दोषी करार दिया गया.मामूली धाराएं होने के कारण सभी आरोपियों को जमानत भी मिल गई.जो चोरी-छिपे भोपाल कोर्ट से निकल गए...दोषियों में यूनियन कारबाइड इंडिया के हेड केशब महेंद्रा समेत विजय गोखले, किशोर कामदार, जे मुकुंद, एसपी चौधरी, केवी शेट्टी और एसआई कुरैशी शामिल हैं. अदालत ने माना कि इन लोगों की लापरवाही के चलते ही गैस कांड जैसा विनाशकारी हादसा हुआ. यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के प्लांट के डिजायन में भारी कमियां थीं, दुर्घटना इसी के चलते हुई. हादसे से दो साल पहले अमेरिकी विशेषज्ञों की एक टीम ने सुरक्षा संबंधी कई कमियां बताई थीं लेकिन उन पर ध्यान नहीं दिया गया. लापरवाही और अनदेखी की वजह दो दिसबंर 1984 की रात भोपाल गैस हादसा हुआ. यूनियन कारबाइड इंडिया लिमिटेड के खाद बनाने वाले कारखाने से रात में 40 मीट्रिक टन जहरीली गैस रिसी. टॉक्सिक मेथाइल आइसोसाइनट नाम की इस गैस ने रातों रात हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया. हादसे की चपेट में आए एक लाख से ज्यादा लोग आज भी कई तरह की बीमारियों से लड़ रहे हैं..भोपाल गैस कांड को 25 बरस बीत चुके हैं..यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री में दो दिसंबर की रात और 3 दिसंबर की अलसुबह क्या हुआ जिसका दर्द भोपालवासी आज भी झेल रहे हैं...दुर्घटना के तीन सालों की जांच के बाद सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि डिजाइन की त्रुटि के कारण प्लांट का रेफ्रीजरेशन सिस्टम ठीक तरह से काम नहीं कर पाया था..सीबीआई का कहना था कि टैंक का प्रेशर हर दो घंटे में जांचने के बजाए आठ घंटे में जांचा जाता था..2 दिसंबर को जब टैंक 610 में प्रेशर ज्यादा दिखाई दिया तो उसे 611 और 619 में खाली कराने की कोई गुंजाइश नहीं बची थी..क्योंकि टैंक पहले से ही फुल थे..610 मिथाइल आइसोसाइनेट को तैयार करने के लिए बनाए गए तीन टैंकों में से एक था..यूनियन कार्बाइड कारखाने का यह वही टैंक था जिससे दो दिसम्बर 1984 की रात जहरीली मिथाइल आइसोनेट गैस का रिसाव हुआ था..इस दुर्घटना में तत्काल 3,500 लोगों की मौत हुई थी..दुर्घटना के प्रभाव से हजारों लोग बीमार और विकलांग हुए...स्वयंसेवी संगठनों के अनुसार दुर्घटना के 72 घंटों के भीतर दस हजार लोगों की मौत हुई और अब तक 35 हजार लोगों की मौत हो चुकी है..1984 से शुरू हुए इन पच्चीस सालों में पूरी एक शताब्दी, 20 वीं का अंत हुआ है औऱ एक नई शताब्दी का आगाज हुआ..दुनिया के इतिहास में जब इन 25 सालों का जिक्र होगा तो इसमें यकीनन बहुत सारी बातें होंगी..कुछ सफेद-कुछ काली..मगर इनमें सबसे स्याह लफ्जों में होगी भोपाल की कहानी..दुनिया की सबसे विकराल मानवीय त्रासदी की कहानी-1984 की कहानी..एक रात की कहानी..2-3 दिसंबर की आधी रात की कहानी..जिस रात अपने-अपने घरों में सोए हजारों बेगुनाए लोगों को बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड ने जहर सुंघाकर मार डाला गया औऱ लाखों लोगों को धीमे जहर की सजा दे डाली गई..इसके बाद शुरू हुआ..दोषियों को सजा दिलाने की मुहिम..भोपाल का थाना हनुमानगंज..एफआईआर नंबर1104/84..धारा 304 ए, 304,278, 429, 426..यह वही एफआईआर है, जिसमें दुनिया की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैस कांड को एक अपराध के रूप में दर्ज किया गया..हजारों लोगों की जान लेने और लाखों लोगों को उम्रभर के लिए दर्द देने वाले इस मामले की एफआईआर करीब 25 साल का सफर तय कर निर्णायक मुकाम पर पहुंचा.भोपाल गैस कांड..दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी..यानी वह त्रासदी..जिसकी याद आते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं..हादसे को हुए 25 बरस बीत चुके हैं..लेकिन इसके जख्म अभी भी हरे हैं..जिसकी टिस रहकर रहकर दंश मारती रहती है..यह दंश सिर्फ उन्हें नहीं सालती..जो इससे प्रभावति हैं..या जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया..यह दर्द उनके भी जुबां पर हैं..जिन्होंने अपनी आंखों से उस भयावह मंजर को देखा..जो दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक त्रासदी के गवाह बने.इस त्रासदी की 20वीं वर्षगांठ पर मैंने भी भोपाल के उनलोगों से मुलाकात की थी.जो गैस कांड के पीड़ित थे..जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया था..उनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे..ये आंसू ये बताने के लिए काफी थे..उनके साथ क्या हुआ..हर साल इस त्रासदी की वर्षगांठ मनाई गई...25 हजार से ज्यादा लोगों की मौत को याद किया गया..लेकिन लंबी लड़ाई के बाद भी क्या हुआ...सिर्फ दो साल की सजा..यानी 35 हजार लोगों की मौत और दोषियों को सिर्फ दो साल की सजा..इससे क्या पीड़ितों के जख्म भर पाएंगे..शायद नहीं..उनके लिए तो हरगिज नहीं जिन्होंने ताउम्र इस लड़ाई में अपना सारा कुछ छोंक दिया..जिन्होंने भोपाल शहर को लाशों से पटा देखा..अपनों को कफन में लिपटा देखा.पूरे भोपाल को शवों के टीले में बदलता देखा..मुर्दो में तब्दील होते शहर को देखा.

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