नक्सलियों की एक बाद एक खौफनाक और दिल को दहला देनेवाली वारदातें..जो देश के दिल पर एक ऐसा घाव छोड़ गया है...जिसको भर पाना काफी मुश्किल हैं...लेकिन हमारे राजनेता न जाने क्यों..अपने बयानबाजी से बाज नहीं आते..जो मन में आ रहा है..बोले जा रहे हैं...लेकिन कोई भी नक्सली समस्या के हल के बारे में सार्थक बात नहीं करता..नक्सली समस्या..हमारे सामने ऐसा विकराल रूप लेगा..ऐसा किसी ने सोचा न होगा..लेकिन इस समस्या ने न सिर्फ विकराल रूप लिया है..बल्कि यह एक ऐसी चुनौती बन गई है..जिसे निपट पाना हमारे सरकारों के लिए मुश्किल भरा है...एक के बाद एक नक्सली अपनी वारदातों को अंजाम देते जा रहे हैं.और हमारे पास इसका कोई ठोस जवाब नहीं..नक्सलियों की रणनीति सफल होती जा रही है..और हमारी असफल..आखिर हमारी रणनीति में चूक कहां है..जिसके कारण मुठ्ठी भर नक्सली हमारी सुरक्षा तंत्र पर भारी पड़ रहे हैं...यह सच है कि उन्हें पहाड़, जंगल, झरने और स्थानीय लोगों का सहयोग मिलता है...इसका मतलब यह कि नहीं हम नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब नहीं दे सकते...पश्चिम बंगाल के झारग्राम में हुए ताजा नक्सली हमले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है..नक्सलियों के संगठन पीसीपीए यानी पीपुल्स कमेटी अगेन्स्ट पुलिस एट्रोसिटी ने एक योजना बनाकर झारग्राम में इतनी बड़ी घटना को अंजाम दिया.बाकायदा हमले को अंजाम देने के लिए पूरी स्क्रिप्ट लिखी गई.इतना ही नहीं हादसे को अपनी आंखों से देखने के लिए हत्यारे घटनास्थल पर ही मौजूद रहे..घटना को अंजाम देने के लिए पूरी योजना बनायी गई थी. कमेटी के नेता उमाकांत महतो और बापी महतो ने घटना की साजिश रची. दोनों ने सारदिया स्टेशन पर तैनात लाइन मैन दयाराम महतो को उसके घर से उठाया. उसे और उसके परिवार को जान से मारने की धमकी दी. इसके बाद उससे जबरदस्ती फिश प्लेट खुलवाई...जिसे कोई जानकारी व्यक्ति ही खोल सकता है..उमाकांत महतो घटनास्थल पर ही मौजूद रहा..जबकि बापी महतो ने सारदिया स्टेशन पर जाकर मालगाड़ी रेड सिग्नल के जरिए रोके रखा..ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के पलटते ही उसने मालगाड़ी को ग्रीन सिग्नल के जरिए आगे बढ़ने दिया...इसके बाद मालगाड़ी ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस की कुछ बोगियों से टकरा गई..यानी सोची समझी और तयशुदा रणनीति..यह सारी बातें यह दर्शाती हैं कि नक्सली किस तरह बेखौफ हो गए हैं..वे जहां चाहे..जब चाहे अपनी वारदात को अंजाम दे सकते हैं..और हमारा सुरक्षा तंत्र लाचार और मूकदर्शक बना यह सब देखते रहने के सिवाए उनके पास कोई काम बचा ही नहीं है..घटना के बाद रेसक्यू आपरेशन चलाए जाएंगे...लेकिन घटना को होने देने से रोकने के लिए कोई खास इंतजाम नहीं किया जाएगा...जब भी नक्सली किसी वारदात को अंजाम देते हैं...इसकी भनक पहले से ही हमारे सूचना तंत्र को रहती है..लेकिन उसे रोकने के लिए शासन और प्रशासन में बैठे लोग कुछ नहीं कर पातें.पूरी घटना के होने के बाद फिर शुरू होता है..सियासी दावपेंच..जो अक्सर ही देखा जाता है..इस बार भी देखने को मिला..यह कोई नई बात नहीं..हर घटना के बाद आम लोगों के नुमाइंदे कहे जाने लोग अनाप-सनाप बोल जाते हैं..झारग्राम हादसे के बाद त्रिणमूल कांग्रेस नेता और रेल मंत्री ममता बनर्जी, पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता, केंद्र में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और केंद्र में सत्ता में मौजूद कांग्रेस पार्टी, सभी एक दूसरे के रुख़ में खामियाँ ढूँढ़ने में लगे हुए थे.पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने विपक्षी दल त्रिणमूल कांग्रेस की नेता और रेल मंत्री ममता बनर्जी को निशाना बनाया.वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि ममता बनर्जी तो ये कहती आई हैं कि राज्य में माओवादी हैं ही नहीं. सीपीएम के राज्य सचिव बिमन बोस ने कहा कि रेल मंत्री को ज़िम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए.उनका कहना था कि माओवादियों ने उस इलाक़े में रेलवे लाइन को पहले भी निशाना बनाया है इसलिए रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था और सतर्कता अधिक होनी चाहिए थी.इधर ममता बनर्जी ने कहा कि केंद्र सरकार को इस पूरे घटना की जाँच करानी चाहिए.उनके खिलाफ षड़यंत्र रचा गया है..उनका कहना था कि राज्य सरकार की जाँच से बात नहीं बनेगी.दूसरी ओर मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने कहा है कि केंद्र सरकार में नक्सलियों से लड़ने की इच्छाशक्ति का अभाव है.पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद का कहना था कि केंद्र माओवादियों से लड़ने की रणनीति के बारे में रुख़ स्पष्ट करे और इससे जुड़े विभिन्न विवादों को विराम दें..माओवादी जिस प्रकार अब निरपराध लोगो का खून बहा रहे हैं, वह कायराना हरकत है और इससे निंदनीय कार्य कुछ नहीं हो सकता...यह लोगों में भय एवं आतंक पैदा कर अपना लक्ष्य साधने की रणनीति है..जिसके तहत नक्सली लगातार भोल-भाले और बेकसूर लोगों को अपना निशाना बना रहे हैं..लेकिन सत्ता में बैठे राजनेताओं से इससे क्या..वे एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहेंगे.
मीडिया का व्यवसायीकरण होता जा रहा है..व्यासायी घराने अपना हित साधने के लिए मीडिया और उसके संसाधनों का जबरदस्त दोहन कर रहे हैं...उनके हित के आगे खबरों की कोई अहमियत नही..चाहे वह खबर सामाजिक सारोकार से ही जुड़ा हुआ मुद्दा क्यों न हो...जब हम लोगों को एक पत्रकार के रूप में दायित्वों को बताया गया तब हमने सोचा था कि हम अपने दायित्वों के लिए किसी से समझौता नहीं करेंगे...लेकिन दायित्वों का पढ़ाया गया पाठ अब किताबों तक ही सीमित रह गया है...कौन सी खबर को प्रमुखता से दिखाना है..और कौन सी खबर को गिराना है...ये वे लोग निर्धारित करने लगे हैं..जिनका पत्रकारिता से कोई सारोकार नहीं है...आज का पत्रकार सिर्फ कठपुलती बन कर रह गया है...डमी पत्रकार..इन्हें वहीं करना है...जो व्यसायी घराने के कर्ता-धर्ता कहें..मीडिया के व्यवसायीकरण ने एक सच्चे पत्रकार का गला घोंट दिया है..घुटन भरे माहौल में काम की आजादी छीन सी गई है..व्यवसायी घरानों ने मीडिया को एक जरिया बनाया है..जिसके जरिए वह सरकार तक अपनी पहुँच बना सके..और अपना उल्लू सीधा कर सके..अपना हित साधने के लिए इन्होंने मीडिया को आसान जरिया चुना है...मीडिया के इस
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