मीडिया के वे दिग्गज जिन्होंने कई मिसालें कायम की.अगर उनके तरफ से किसी प्रकार का दोयम दर्जे का काम किया जाता है..तो वह काफी झकझोरने वाला होता है..ऐसे ही दो दिग्गज इस समय सवालों के घेरे में हैं..बरखा दत्त और वीर सांघवी..केंद्रीय संचार मंत्री पद पर ए.राजा को काबिज कराने व संचार मंत्रालय से कारपोरेट घरानों को लाभ दिलाने के मामले में जिस माडर्न दलाल नीरा राडिया का नाम उछला है, उसकी फोन टेपिंग से पता चला है कि उसकी तरफ से बरखा दत्त और वीर सांघवी ने भी राजा को मंत्री बनाने के लिए शीर्ष कांग्रेसियों के बीच लाबिंग की.बरखा दत्त और वीर सांघवी पर आरोप लग रहे हैं कि साल 2009 में डीएमके नेता ए राजा के लिए संचार मंत्री बनाने के लिए कांग्रेसी नेताओं से लॉबिंग करने का,और वो भी एक दलाल नीरा राडिया के कहने पर. दरअसल इस पूरे प्रकरण में आयकर महानिदेशक के द्वारा जांच के बाद ये तथ्य सामने आये हैं की इन दोनों दिग्गज पत्रकारों के सम्बन्ध नीरा राडिया से रहे हैं.और नीरा के कहने पर इन लोगों ने लोकसभा चुनाव के बाद ए राजा के लिए लॉबिंग की..यूपीए सरकार का पहला कार्यकाल काफी पाक-साफ समझा गया था, जिसमें सिर्फ स्पेक्ट्रम घोटाले ही काफी सुर्खियों में रहा.ए. राजा पर वापस लौटें तो वह शायद ऐसा मानकर चल रहे थे कि स्पेक्ट्रम घोटाला अब बीते जमाने की बात बन चुका है...लेकिन इनकम टैक्स डिपार्टमेंट द्वारा टैप किए गए एक फोन ने इस पूरे मामले को हवा देने का काम किया...कई कंपनियों के लिए पीआर का काम देखने वाली नीरा राडिया नाम की दलाल की बातचीत से यह पता चला है कि ए. राजा के जरिए सरकार को चूना लगाकर उसने कई कंपनियों को हजारों करोड़ का फायदा पहुंचाया...जिसमें मीडिया के दिग्गज लोगों ने भी काफी सहयोग किया...शुरू में जब राजा पर्यावरण मंत्री थे तो राडिया ने उनसे दो बड़ी कंपनियों के विवादास्पद हाउसिंग प्रॉजेक्ट क्लीयर कराए और दयानिधि मारन की विदाई के बाद जब वे दूरसंचार मंत्री बने तो चार टेलिकॉम कंपनियों को कौड़ियों के भाव में 2जी लाइसेंस दिलवा दिए..प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इच्छा के विपरीत 22 मई 2009 को ए. राजा को केंद्रीय मंत्री पद की शपथ दिलाई गई. उन्हें लाने वाले कौन लोग थे, इसका खुलासा अब हो रहा है. जिन लोगों ने ए. राजा को मंत्रिमंडल में शामिल कराने के लिए लाबिंग की, उन्हीं लोगों ने ए. राजा को संचार व सूचना तकनीक मंत्री पद भी दिलाने की कोशिश की और इसमें सफलता हासिल की. ऐसा करने वाले लोग देश के ताकतवर कारपोरेट घराने से जुड़े थे और इनके बिचौलिए, दूत, सलाहकार, मैनेजर...जो कह लीजिए, के रूप में नीरा राडिया काम कर रहीं थीं.नीरा राडिया, जिन्हें मीडिया, नौकरशाही और राजनीति, तीनों को मैनेज करने में महारत हासिल है, टाटा समेत कई बड़े घरानों के लिए मीडिया मैनेज करने का भी काम करती हैं. नीरा राडिया के पास कई कंपनियां हैं. इन कंपनियों की सफलता का राज क्या है, इसके बारे में इससे समझा जा सकता है कि इनमें करोड़ों के पैकेज पर रिटायर हो चुके ढेर सारे बड़े नौकरशाह काम करते हैं. ये अधिकारी सत्ता को मैनेज करने का गुर जानते हैं. नीरा राडिया टाटा के अलावा यूनीटेक, मुकेश अंबानी की कंपनियों और कुछ मीडिया समूहों के लिए काम करती हैं. नीरा राडिया की कंपनियों में काम करने वाले अधिकारी इन घरानों के हित में नीतियां बनवाने, निर्णय कराने के लिए शीर्ष स्तर पर लगे रहते हैं.जिसके लिए मीडिया को भी मेनेज करना होता है..इस पूरे मामले में अब मीडिया के दो दिग्गज भी घेरे में हैं....जिसके कारण लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सवालिया निशान उठने लगा है...
मीडिया का व्यवसायीकरण होता जा रहा है..व्यासायी घराने अपना हित साधने के लिए मीडिया और उसके संसाधनों का जबरदस्त दोहन कर रहे हैं...उनके हित के आगे खबरों की कोई अहमियत नही..चाहे वह खबर सामाजिक सारोकार से ही जुड़ा हुआ मुद्दा क्यों न हो...जब हम लोगों को एक पत्रकार के रूप में दायित्वों को बताया गया तब हमने सोचा था कि हम अपने दायित्वों के लिए किसी से समझौता नहीं करेंगे...लेकिन दायित्वों का पढ़ाया गया पाठ अब किताबों तक ही सीमित रह गया है...कौन सी खबर को प्रमुखता से दिखाना है..और कौन सी खबर को गिराना है...ये वे लोग निर्धारित करने लगे हैं..जिनका पत्रकारिता से कोई सारोकार नहीं है...आज का पत्रकार सिर्फ कठपुलती बन कर रह गया है...डमी पत्रकार..इन्हें वहीं करना है...जो व्यसायी घराने के कर्ता-धर्ता कहें..मीडिया के व्यवसायीकरण ने एक सच्चे पत्रकार का गला घोंट दिया है..घुटन भरे माहौल में काम की आजादी छीन सी गई है..व्यवसायी घरानों ने मीडिया को एक जरिया बनाया है..जिसके जरिए वह सरकार तक अपनी पहुँच बना सके..और अपना उल्लू सीधा कर सके..अपना हित साधने के लिए इन्होंने मीडिया को आसान जरिया चुना है...मीडिया के इस
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