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माओवादियों का सबसे बड़ा लाल सलाम...

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सुरक्षाकर्मियों पर भयावह नक्सली हमले ने केन्द्र और राज्य सरकारों की नक्सल विरोधी रणनीति पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं. साधना न्यूज की सशक्त रिपोर्टिंग और कवरेज से केन्द्र और राज्य सरकार की खामियां सामने आईं हैं.
पिछले काफी समय से मैं नक्सल मामलों पर कवरेज करता आ रहा हूँ लेकिन जिस तरह से चिंतलनार में नक्सलियों ने खूनी खेल खेला....वह दिल को दहला देने वाला है. बस्तर का पूरा इलाका इस बड़ी त्रासदी के बाद स्तब्ध है. सभी यही सवाल कर रहे हैं कि कब तक हम सपूतों की मौत को शहीद बताकर माताओं की गोद सूनी करते रहेंगे...मासूमों के सिर से पिता क प्यार एवं सुहागिनों का सिंदूर उजड़ता देखेंगे..खुफिया तंत्र की निकम्मेपन के कारण आज इतनी बड़ी वारदात करने में नक्सली कामयाब हो गए..इसमें चूक कहां हो गई..
परत-दर-परत से साधना की टीम ने वह खबर सामने लाई.जिसकी दरकार लोगों को थी..साधना की पूरी टीम ने इस पूरे घटनाक्रम पर पैनी नजर रखी..एवं सरकार और पुलिस प्रशासन से कहां-कहां भूल हुई..उसको सामने लाया.घटनास्थल का दर्दनाक विजुअल सामने लाने से लेकर लाइव कवरेज तक में हमने प्रशासन को हिला कर रख दिया..केन्द्रीय गृह मंत्री पी.चिदम्बरम साहब तो कुछ बोल ही नहीं पाए..जब जगदलपुर में उनपर प्रश्नों की बौछार हुई तो चिदम्बरम साहब का यह कहना कि जो जवान जंगलों में गए थे..वह वहां की भौगोलिक स्थिति की जानकारी इकट्ठी करने गए थे..जब भौगोलिक हालात जानने में ही इतनी बड़ी त्रासदी हो सकती है..तो नक्सलियों के गढ़ अबूझमाड़ में घुसकर उनसे लोहा लेने में कितनी बड़ी त्रासदी होगी..इसका आकलन लगाया जा सकता है.
खैर...साधना की टीम ने पत्रकारिता के दायित्व का निर्वहन किया..और जान जोखिम में डालकर पूरे जोश-खरोस के साथ एक के बाद सभी खामियों को सामने रखा...पूरी सच्चाई हमने सामने लाई..दो रात हमारी ओवी टीम सो नहीं पाई...रह-रह कर नक्सलियों द्वारा दिया दंश टिस मारता रहा..हमारे ओवी इंजीनियर से लेकर कैमरामन ड्राइवर तक ने ठान लिया था कि हमें बहुत कुछ करना है...हमें यह एहसास था कि जब देर रात हमारे बॉस और डेस्क के लोग इस त्रासदी को लेकर गंभीर हैं..तो हम भी पूरी हिम्मत के साथ काम करें.. घटना वाले दिन मंगलवार की सुबह से लेकर गुरूवार दोपहर तक हमने नन-स्टॉप काम करते रहें..दिन हो या रात...हम चलते रहें.लगातार चलते रहें.न सोए.न थके...
जब हमें कहा गया...लाइव.तो मैंने भी पूरे जोश के साथ पूरे घटनाक्रम को सामने रखा.प्रदेश के गृहमंत्री से लेकर पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों की इस घटना पर प्रतिक्रिया सबसे पहले हमने दी..रायपुर से लेकर बस्तर पहुँचना..न सोने की फिक्र..न खाने की..यह फिक्र सिर्फ ओवी की टीम को नहीं थी...बल्कि साधना के इनपुट से लेकर आऊटपुट तक फिक्रमंद था...ऐसी ही एक रोचक घटना हुई. चिंतलनार की घटना की बाद नक्सलियों ने पोलमपल्ली कैंप पर फायरिंग कर दी. देर रात का यह वाक्या था.साधना न्यूज में देर रात लाइव नहीं हो पाता है.लेकिन उस रात जब नक्सलियों ने फायरिंग की तो इनपुट से फोन आया...औऱ हमें तैयार रहने के लिए कहा गया..आनन फानन में दिल्ली डेस्क पर कई लोग पहुँचे..
बस्तर के वीरान जंगल में एक ढाबे पर खाना खाने की तैयारी कर रहे थे..खाने की टेबल सज चुकी थी..दिल्ली से आदेश आने के बाद हमारी टीम ने मुस्तैदी दिखाई....और हमने धुर नक्सली क्षेत्र से लाइव किया...जहां से लाइव करना नामुमकिन है..साधना की टीम पूरे घटनाक्रम पर जी-जान से लगी थी..जिसका नतीजा हुआ..लगातार दो दिनों तक हम नेशनल मीडिया पर छाए रहें..

रिपोर्टिंग में मैंने जो बातें नक्सल इलाकों की देखी उसमें जंगल में छापामार युद्ध करने में बेहद दक्ष नक्सलियों का हर हमला सुरक्षा बलों को भौचक कर देता है..गुरिल्ला युद्ध में सरप्राइज एलिमेंट ही हैं, जो कुछ मिनटों में हार या जीत तय कर देता है...नक्सलियों और पुलिस के बीच अब तक हुए मुकाबलों को देखें तो 70 फीसदी से ज्यादा मामलों में नक्सली ही चौंकाते रहे हैं...इसकी प्रमुख वजह ट्रेनिंग, उम्दा सूचना तंत्र के अलावा इलाके के भूगोल की जबर्दस्त जानकारी है..कई सालों से नक्सली अभियान से जुड़े अधिकारी भी मानते हैं कि नक्सलियों का इलाके के बारे में ज्ञान पुलिस से बेहतर होता है...अंदरूनी इलाकों में उनको जनसमर्थन भी मिल जाता है...वे जंगल के रास्तों से चलते हुए पुलिस पार्टी से कहीं पहले पहुंच जाते हैं...चिंतलनार में हुई वारदात की एक वजह भी यही थी कि नक्सलियों ने इलाके को जितनी बारीकी से देखा, वह दृष्टि सीआरपीएफ नहीं ला पाई..हर हमले या मूवमेंट के समय नक्सली स्थानीय जन और संघम सदस्यों को शामिल करते हैं....हमला करने के पहले नक्सली उस इलाके के बारे में एक-एक चीज ध्यान से देखते हैं...अभियान से जुड़े अधिकारी भी मानते हैं कि  नक्सली पेड़ों तक को गिन लेते हैं..इस खामी को एसटीएफ और जिला पुलिस ने सुधारा है..दंतेवाड़ा, बीजापुर में उनके हर ऑपरेशन में एसपीओ या कोया कमांडो के दस्तों को साथ लेना पुलिस नहीं भूलत..ये सभी स्थानीय हैं और उनको स्थानीय बोली के अलावा क्षेत्र का अच्छा ज्ञान होता है...बस्तर से लेकर लालगढ़ तक हर नक्सली हमले के पैटर्न को देखें, तो वे लगातार खुद को सुधार रहे हैं..
2005 के आसपास बस्तर में पुलिस को माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल (एमपीवी) दिया गया था..नारायणपुर में नक्सलियों ने बारूदी सुरंग से उसे उड़ाने की कोशिश की, लेकिन स्टील प्लेटों वाले वाहन को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ..बमुश्किल डेढ़ महीने बाद बीजापुर के पास पोंजेर में नक्सलियों ने बारूद की मात्रा बढ़ाकर एमपीवी को उड़ाया..इसमें गाड़ी में बैठे 29 में से 28 लोग शहीद हो गए थे..उड़ीसा, झारखंड में नक्सलियों ने ऐसे वाहनों को उड़ाने में 75 से 100 किलो विस्फोटक का इस्तेमाल किया...बस्तर में एर्राबोर सलवा जुडू़म कैंप, रानीबोदली के स्कूल में संचालित पुलिस शिविर से लेकर राजनांदगांव के मदनवाड़ा इलाके में एसपी वीके चौबे पर हमले तक हर बड़ी या छोटी वारदात की नक्सली केस स्टडी तैयार करते हैं..इसमें हमले की साइट के स्कैच के अलावा पुलिस जवानों, नक्सलियों की पोजीशन से लेकर दोनों पक्षों द्वारा इस्तेमाल किए गए हथियारों, नुकसान का भी जिक्र होता है...ऑपरेशन के दौरान चूक या सही फैसलों की समीक्षा होती है...ये सारे संदर्भ पूरे देश में स्थानीय भाषा-बोलियों में काडर में बांटे जाते हैं, ताकि वे भी इससे सीखें..मदनवाड़ा हमले के ऐसे ही दस्तावेज हाल में पुलिस को छापे के दौरान मिले...

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