समाज और लोग कितना ही नाक भौंह सिकोडें, कितने ही कुढ़ लें और कितनी ही आलोचना कर लें...लिव-इन-रिलेशन रिश्ता अब एक ठोस वास्तविकता लेता जा रहा है... इसे नकारा जाना नामुमकिन हैं..समाज में ऐसे रिलेशन देखने को मिल रहे हैं..कुछ साल पहले तक समाज के लिए वर्जित रहा लिव-इन-रिलेशन रिश्ता धीरे-धीरे अर्बन सोसायटी में अपनी जगह बनाने में सफल हो गया है...बीपीओ और कॉर्परट सेक्टर में लाखों रुपये महीने कमा रहे कई यूथ कपल इस रिलेशनशिप को बुरा नहीं मानते..इस रिश्ते की चकाचौंध सिर्फ महानगरों तक ही सिमटी थी...लेकिन धीरे-धीरे इस कल्चर ने छोटे शहरों पर भी अपना असर डाला है..अब उच्चतम न्यायालय ने भी इस रिश्ते पर अपनी मुहर लगा दी है..सुप्रीम कोर्ट ने विवाह पूर्व यौन संबंध और लिव इन रिलेशन को लेकर जो टिप्पणी की है, वह बेहद महत्वपूर्ण है..उसने कहा है कि शादी के पहले सेक्स संबंध कायम करना कोई अपराध नहीं है..भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो शादी से पहले यौन संबंध की मनाही करता हो..इसी तरह अगर दो बालिग व्यक्ति आपसी रजामंदी से विवाह के बगैर भी साथ रहना चाहें तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है..दक्षिण की अभिनेत्री खुशबू की विशेष याचिका पर सुनवाई चल रही थी, जिसमें मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्ण, दीपक वर्मा और बीएच चौहान की पीठ ने कहा कि कोई भी कानून दो बालिग लोगों को एक साथ रहने या यौन संबंध बनाने से रोक नहीं सकता है..यह उनका अधिकार है..वर्ष 2005 में खुशबू ने एक पत्रिका को दिए गए बयान में कहा था, "मेरी दृष्टि में विवाह पूर्व यौन संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन इसके लिए सारी सावधानियाँ बरतनी चाहिए."इसी साक्षात्कार में उन्होंने यह भी कहा था, "किसी भी पढ़े लिखे युवक के लिए यह उम्मीद करना ठीक नहीं है कि उसकी पत्नी की कौमार्यता सुरक्षित होगी."ख़ुशबू का यह बयान परंपरागत और रुढ़िवादी भारतीय समाज को नागवार गुज़रा था और कुछ तमिल राष्ट्रवादी राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने इस बयान के विरोध में कई मुक़दमे दायर कर दिए थे.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समाज जिन गतिविधियों को अनैतिक मानता है वो ज़रूरी नहीं कि अपराध भी हों.खुशबू की लड़ाई और सुप्रीम कोर्ट का आदेश काफी मायने रखता है..जिस अधिकार की बात सुप्रीम कोर्ट कर रहा है..उस अधिकार को भी युवा पीढ़ी को समझना होगा..क्या गलत है..क्या सही...गलत और सही को परखने का एक और भी तरीका होता कि यदि जिस व्यवहार की जिम्मेदारी आप खुलकर स्वीकार नहीं कर सकते, जिसके लिए मुंह छिपाना पड़े वह निश्चित ही गलत है..अगर आप अपने रिश्ते को स्वीकारते हैं..तो वह गलत नहीं है..जवाबदेही और जिम्मेदारी इंसान के महत्वपूर्ण मूल्य होने चाहिए..जिसका आकलन करना स्वयं को भलीभाँति करते आना चाहिए.
मीडिया का व्यवसायीकरण होता जा रहा है..व्यासायी घराने अपना हित साधने के लिए मीडिया और उसके संसाधनों का जबरदस्त दोहन कर रहे हैं...उनके हित के आगे खबरों की कोई अहमियत नही..चाहे वह खबर सामाजिक सारोकार से ही जुड़ा हुआ मुद्दा क्यों न हो...जब हम लोगों को एक पत्रकार के रूप में दायित्वों को बताया गया तब हमने सोचा था कि हम अपने दायित्वों के लिए किसी से समझौता नहीं करेंगे...लेकिन दायित्वों का पढ़ाया गया पाठ अब किताबों तक ही सीमित रह गया है...कौन सी खबर को प्रमुखता से दिखाना है..और कौन सी खबर को गिराना है...ये वे लोग निर्धारित करने लगे हैं..जिनका पत्रकारिता से कोई सारोकार नहीं है...आज का पत्रकार सिर्फ कठपुलती बन कर रह गया है...डमी पत्रकार..इन्हें वहीं करना है...जो व्यसायी घराने के कर्ता-धर्ता कहें..मीडिया के व्यवसायीकरण ने एक सच्चे पत्रकार का गला घोंट दिया है..घुटन भरे माहौल में काम की आजादी छीन सी गई है..व्यवसायी घरानों ने मीडिया को एक जरिया बनाया है..जिसके जरिए वह सरकार तक अपनी पहुँच बना सके..और अपना उल्लू सीधा कर सके..अपना हित साधने के लिए इन्होंने मीडिया को आसान जरिया चुना है...मीडिया के इस
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