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मेड फॉर इच अदर...

वैलेंटाइन डे प्यार के गीत गाने का दिन..मुहब्बत में डूबकर गुनगुनाने का दिन...वैलेंटाइन डे को प्यार, मोहब्बत का इजहार करने का दिन माना जाता है..इस दिन जहां प्यार करने वाले एक दूसरे को अपने प्यार का एहसास दिलाते हैं,वहीं कुछ लोगों के लिए अपने प्यार का इजहार करने का यह सबसे खूबसूरत समय होता है...पश्चिमी सभ्यता से इस तरफ आए वेलेंटाईन डे को कोई प्यार का पर्व कहता है तो कोई इसे टीन एजर्स व भारत की युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट करने का मायाजाल..कोई कहता है कि प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए कोई स्पेशल दिन मुकर्र करने की भला क्या आवश्यकता है तो कोई तर्क देता है कि अन्य उत्सव मनाए जाने के लिए एक दिन सुनिश्चित किया गया है तो प्रेम पर्व वैलेंटाईन डे को एक खास दिन मनाए जाने में हर्ज ही क्या है..ऐसे में 2010 का वैलेंटाइन डे मेरे लिए कई मायनों में इन्हीं सब बातों को जानने का दिन रहा.......जिसे मैंने काफी गहराई से समझा...मैं शारीरिक रूप से असमर्थ युवक-युवतियों की शादी में पहुँचा...जहां इस दिन ये शारीरिक अपंग अपने जीवन साथी को चुन रहे थे..और उनके हौंसले देखकर मैं खुद दंग रह गया...जिस तरह से संत वैलेंटाइन ने प्रेमी युगल की शादी कराकर अपनी कुर्बानी दी...संत वैलेंटाइन की भूमिका में आय़ोजन मंडल दिखा..जिन्होंने उन सपनों को पूरा कर दिखाया...जिन लोगों ने कभी अपने सपने में अपनी शादी के बारे में नहीं सोचा होगा....वैंलेटाइन की सर्थकता इस मायने में काफी अहम लगी...
वो अपने पैरों के सहारे अग्नि के सात फेरे भी नहीं ले सकते..लेकिन हौसला इतना है कि अपनी पत्नी के साथ सात जनम तक साथ-साथ जीने का वायदा करते हुए..उनके मांग में सिंदूर भरते हैं..और गले में मंगलसूत्र पहनाते वे लोग थे..जो वक्त के हालात के मारे थे..विकलांग जोड़े हमेशा-हमेशा के लिए शादी के अटूट रिश्ते में बंधकर एक हो गए..वैलेंटाइन डे पर आयोजित इस शादी समारोह में कई प्रेमी युगल भी शारीरिक अपंगता को दरकिनार करते हुए एक हुए...एवं उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि प्यार और शादी में अपंगता कोई मायने नहीं रखती..चाहिए सिर्फ जज्बा...जिसके जरिए विकलांग होकर भी पूरी जिंदगी खुश रहा जा सकता है...
हमें सहारे की जरूरत है सही...लेकिन ऐसा नहीं कि हम सहारा न बने..जिंदगी बहुत लम्बी है...आओ तेरे साथ मैं चलूं मेरे साथ तू चले.....कुछ ऐसे ही अंदाजें बयां थे..इन विकलांग युवक-युवतियों..के जिन्होंने अपने एक साथी के साथ हमेशा-हमेशा के लिए जीवन के अटूट बंधन में बंधकर अपना घऱ बसाने की हकीकत से दो चार हुए...सामूहिक विकलांग शादी समारोह में पति-पत्नी के रूप में अटूट बंधन में बंधे 56 जोड़े में अधिकांश ऐसे थे..जिन्होंने अपनी अपंगता की वजह से कभी शादी का सपना भी नहीं देखा था...जाहिर है..ऐसे हालात में परिणय़ सूत्र में बंधना उनके लिए अनुपम खुशी का मौका था....यह शादी समारोह इस मायने में भी अनोखा था कि यहां शादी के लिए वर वधुओं ने खुद से खुद...न ही किसी दबाव में...इन्होंने अपना जीवन साथी चुना...विकलांग जोड़े की शादी इस मिथक को भी तोड़ता है कि शारीरिक और आर्थिक रूप से विकलांग युवक-युवतियां की शादी संभव नहीं है....क्योंकि यहां कुछ ऐसे युवक-युवतियां वैवाहिक बंधन में बंधे जो अपने पैरों के सहारे अग्नि के सात फेरे भी नहीं ले सकते..लेकिन हौसला इतना कि अपनी पत्नी के साथ सात जनम साथ-साथ जीने मरने की कसमें खाई..

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