हमारे देश में क्या हो रहा है..जहां एक औऱ सफेदपोश अपनी तिजोरी भरते जा रहे हैं...वहीं देश की बागडोर संभालने वाले लालफीताशाही भी इसमें पीछे नहीं हैं..छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के आईएएस अफसरों के विरुद्ध आयकर विभाग के छापों ने एक बार फिर इन नौकरशाही पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है..नौकरशाही में भ्रष्टाचार के किस्से अब चौंकाने वाले नहीं रह गए..ये वैसे नौकरशाह हैं..जो ऐसे अजगर हैं..जिनके लिए सारा ईमान अपना तिजोरी भरना है...लेकिन जिस तरह से आम जनता के पैसों को इन्होंने अपनी तिजोरी भरने में पूरी ताकत लगा दी..क्या इन नौकरशाहों ने कभी सोचा कि इन्होंने कितनी लाशों पर अपने पैर रखकर ये पूरा काम किया है..अगर इसके आंकड़े निकाले जाए तो काफी चौंकाने वाले हैं..ये बाते मैं हवा हवाई में नहीं कर रहा..इसके पीछे मेरे भी तर्क है...उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ के कृषि सचिव बाबूलाल अग्रवाल को लेते हैं...जिनके स्वास्थ्य सचिव रहते विभाग में इतने घोटाले हुए..जिसे छत्तीसगढ़ के घोटालों का विभाग कहा जाता है...मलेरिया कीट, कलर डॉप्लर, माइक्रोस्कोप, सीरिंच एवं स्प्रे पंप औऱ न जाने क्या..क्या...अग्रवाल के स्वास्थ्य विभाग के कार्यकाल में करीब एक हजार करोड़ रुपए स्वास्थ्य विभाग का बजट खर्च हुआ है..इसमें 20 फीसदी रकम दवाइयों और उपकरणों पर खर्च की गई है...श्री अग्रवाल जुलाई 2004 से मई 2007 के बीच स्वास्थ्य विभाग के सचिव रहे....इस दौरान स्वास्थ्य विभाग में करोड़ों रुपए का कलर डापलर खरीदी घोटाला हुआ...उस दौरान कलर डापलर की खरीदी में जबर्दस्त खेल हुआ..पहले एक मशीन की खरीदी के लिए समिति बनाई गई लेकिन बाद में थोक में मशीन की खरीदी हुई तब केवल संचालक को अधिकार देकर पूरी खरीदी की गई..घोटालों की फेहरिस्त जितनी गिनाई जाए उतनी कम...ये सारे घोटाले बाबूलाल अग्रवाल के कार्यकाल में ही हुए..भ्रष्ट नौकरशाहों ने तो घोटाले कर दिए..लेकिन क्या उन्होंने सोचा...उनके इस करतूत से कितने लोगों की जाने गई होंगी...कितने लोग मलेरिया से मरे होंगे..कितने लोग स्वास्थ्य उपकरणों के अभाव में दम तोड़े होंगे...शायद नहीं..इनका धर्म-कर्म तो जैसे अपनी तिजोरी भरनी ही है...लेकिन इनके इन कारनामों के चलते जिन लोगों की जाने गई होगी..उसके जिम्मेदार यही है..नौकरशाह या सरकारी कर्मचारी इतने भ्रष्ट कैसे हो गए...नौकरशाह के ऊपर राजनेता होते हैं...और हमारे देश के राजनेताओं की गिनती दुनिया के भ्रष्टतम लोगों में होती है..इसलिए अगर राजनेता भ्रष्ट है..तो छूत की बीमारी नौकरशाहों तक आएगी ही....नौकरशाहों से यह रोग अब सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों तक पहुँच गया है...इस कारण आज आम आदमी परेशान है..उसका कोई काम बिना पैसे के नहीं होता...राजनेताओं के वरद हस्त अधिकारियों पर रहने के कारण ये अधिकारी अपनी झोली तो भरते ही है..साथ ही यही अधिकारी नेताओं की भी तिजोरी भरते हैं...
मीडिया का व्यवसायीकरण होता जा रहा है..व्यासायी घराने अपना हित साधने के लिए मीडिया और उसके संसाधनों का जबरदस्त दोहन कर रहे हैं...उनके हित के आगे खबरों की कोई अहमियत नही..चाहे वह खबर सामाजिक सारोकार से ही जुड़ा हुआ मुद्दा क्यों न हो...जब हम लोगों को एक पत्रकार के रूप में दायित्वों को बताया गया तब हमने सोचा था कि हम अपने दायित्वों के लिए किसी से समझौता नहीं करेंगे...लेकिन दायित्वों का पढ़ाया गया पाठ अब किताबों तक ही सीमित रह गया है...कौन सी खबर को प्रमुखता से दिखाना है..और कौन सी खबर को गिराना है...ये वे लोग निर्धारित करने लगे हैं..जिनका पत्रकारिता से कोई सारोकार नहीं है...आज का पत्रकार सिर्फ कठपुलती बन कर रह गया है...डमी पत्रकार..इन्हें वहीं करना है...जो व्यसायी घराने के कर्ता-धर्ता कहें..मीडिया के व्यवसायीकरण ने एक सच्चे पत्रकार का गला घोंट दिया है..घुटन भरे माहौल में काम की आजादी छीन सी गई है..व्यवसायी घरानों ने मीडिया को एक जरिया बनाया है..जिसके जरिए वह सरकार तक अपनी पहुँच बना सके..और अपना उल्लू सीधा कर सके..अपना हित साधने के लिए इन्होंने मीडिया को आसान जरिया चुना है...मीडिया के इस
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