काफी दिनों के बाद एक अच्छी फिल्म आई है...जिसने जिंदगी के उन तारों को छेड़ दिया..जिससे हर कोई गुजरता है..थ्री इडियटस..नाम और विवाद..इस फिल्म के साथ जुड़ा हुआ है..लेकिन जिन शब्दों को चेतन भगत ने कागज पर उकरने का काम किया...उसे रूपहले पर्दे पर सजीव करने का काम किया..राजकुमार हिरानी और विधु विनोद चोपड़ा ने..विवाद जो भी है..लेकिन इस रस्साकस्सी में दर्शकों को एक अच्छी फिल्म देखने को मिली...फिल्म एक भी सेकेंड छोड़ने लायक नहीं है..फिल्म के हर किरदार के साथ हम अपने-आप को पाते हैं..कहीं-न-कहीं हम भी फिल्म के किसी किरदार में जुड़ाव महसूस करते हैं..जैसे मानो ये अपना बीता हुआ पल है..जहां हमे भी अपनी जिंदगी से समझौता करना पड़ा....औऱ जिन्होंने समझौता नहीं किया..वे बन गए इडियटस..काश मैं भी इडियटस हो पाता....इडियटस के मायने अंग्रेसी शब्दकोश में जो भी है...लेकिन बालीवुड में इस शब्द को एक नई पहचान दी है...पहले इडियटस सुनकर काफी गुस्सा आता था....लेकिन फिल्म देखने के बाद लगता है..इफ आई वर इडियटस..थ्री इडियटस सभी को भाने वाली फिल्म है...भाए भी क्यूं न, आखिर इसने सुपरहिट फिल्मों के लिए वीरान नजारे वाले बालीवुड को एक सुनहरा तोहफा जो दिया है..राजू हिरानी के निर्देशन में बनी थ्री इडियटस में भारतीय शिक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर करने वाली इस फिल्म में आमिर, माधवन, शरमन, बीमन ईरानी और करीना ने बखूबी अपना अभिनय निभाया है...वर्तमान एजुकेशन सिस्टम पर फिल्म ‘थ्री ईडियट’ द्वारा उठाए गए प्रश्न, युवाओं के दिमाग में भी कौंधने लगे हैं...भारतीय शिक्षा प्रणाली को परखती इस फिल्म में बड़े ही सहज भाव से एजुकेशनल सिस्टम पर वार किया गया है, बच्चों पर कुछ बनने का दबाव और किताबी ज्ञान को रटने पर मनोरंजक तरीके से सवाल उठाए गए हैं...इस फिल्म की टीम काबिलेतारीफ है...जिसने समाज को एक आईना दिखाया है...युवा उपन्यासकार चेतन भगत के उपन्यास फाइव प्वाइंटस समवन पर आधारित यह फिल्म बीते कुछ सालों की सबसे उम्दा फिल्म है...
मीडिया का व्यवसायीकरण होता जा रहा है..व्यासायी घराने अपना हित साधने के लिए मीडिया और उसके संसाधनों का जबरदस्त दोहन कर रहे हैं...उनके हित के आगे खबरों की कोई अहमियत नही..चाहे वह खबर सामाजिक सारोकार से ही जुड़ा हुआ मुद्दा क्यों न हो...जब हम लोगों को एक पत्रकार के रूप में दायित्वों को बताया गया तब हमने सोचा था कि हम अपने दायित्वों के लिए किसी से समझौता नहीं करेंगे...लेकिन दायित्वों का पढ़ाया गया पाठ अब किताबों तक ही सीमित रह गया है...कौन सी खबर को प्रमुखता से दिखाना है..और कौन सी खबर को गिराना है...ये वे लोग निर्धारित करने लगे हैं..जिनका पत्रकारिता से कोई सारोकार नहीं है...आज का पत्रकार सिर्फ कठपुलती बन कर रह गया है...डमी पत्रकार..इन्हें वहीं करना है...जो व्यसायी घराने के कर्ता-धर्ता कहें..मीडिया के व्यवसायीकरण ने एक सच्चे पत्रकार का गला घोंट दिया है..घुटन भरे माहौल में काम की आजादी छीन सी गई है..व्यवसायी घरानों ने मीडिया को एक जरिया बनाया है..जिसके जरिए वह सरकार तक अपनी पहुँच बना सके..और अपना उल्लू सीधा कर सके..अपना हित साधने के लिए इन्होंने मीडिया को आसान जरिया चुना है...मीडिया के इस
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