बाल श्रम को रोकने के लिए सरकार ने न जाने कितने कानून बनाए...कितनी योजनाएं शुरू हुई..अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर न जाने कितने सम्मेलन किए गए...लेकिन आज भी बाल श्रम की हकीकत किसी से छिपी नहीं है...जिन बच्चों की दुनिया कॉपी-किताबों की बीच होनी चाहिए थी..जिनके हाथों में कलम होने चाहिए थे...आज वे बच्चें काम के बोझ तले दबे जा रहे हैं..मैं इन दिनों तीन प्रदेशों के दौरे पर हूँ..जहां बाल मजदूरों की रोकथाम के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं की असलियत साफ झलक रही है...ये तस्वीरें साफ बयां कर रही है कि हमारे नौनिहालों का भविष्य किस तरह अधर में लटका हुआ है...
बच्चों के भविष्य के लिए सपने संजोने वाले चाचा नेहरू के आत्मा को कितना आघात पहुँचेगा कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी बाल प्रशासन पर रोक लगा पाने में शासन औऱ प्रशासन कोई कारगर कदम नहीं उठा पाया हैं....बाल श्रम को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर कई कानूनों को अमली-जामा पहनाया गया...लेकिन आज भी बाल श्रम के नजारे राहे-बिगाहे देखने को मिल जाते हैं..आज भी चाचा नेहरू के इस देश में लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं..जो चाय की दुकानों पर नौकरों के रूप में, फैक्ट्रियों में मजदूरों के रूप में या फिर सड़कों पर भटकते भिखारी के रूप में नजर आ ही जाते हैं...इनमें से कुछेक ही बच्चे ऐसे हैं, जिनका उदाहरण देकर हमारी सरकार सीना ठोककर देश की प्रगति के दावे को सच होता बताती है...यही नहीं आज देश के लगभग 53.22 प्रतिशत बच्चे शोषण का शिकार है...इनमें से अधिकांश बच्चे अपने रिश्तेदारों या मित्रों के यौन शोषण का शिकार है...अपने अधिकारों के प्रति अनभिज्ञता व अज्ञानता के कारण ये बच्चे शोषण का शिकार होकर जाने-अनजाने कई अपराधों में लिप्त होकर अपने भविष्य को अंधकारमय कर रहे हैं....सुविधासंपन्न बच्चे तो सब कुछ कर सकते हैं परंतु यदि सरकार देश के उन नौनिहालों के बारे में सोचे, जो गंदे नालों के किनारे कचरे के ढ़ेर में पड़े हैं या फुटपाथ की धूल में सने हैं....उन्हें न तो शिक्षा मिलती है और न ही आवास.....सर्व शिक्षा के दावे पर दम भरने वाले भी इन्हें शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ नहीं पाते....पैसा कमाना इन बच्चों का शौक नहीं बल्कि मजबूरी है.....अशिक्षा के अभाव में अपने अधिकारों से अनभिज्ञ ये बच्चे एक बंधुआ मजदूर की तरह अपने जीवन को काम में खपा देते हैं और इस तरह देश के नौनिहाल शिक्षा, अधिकार, जागरुकता व सुविधाओं के अभाव में अपने अशिक्षा व अनभिज्ञता के नाम पर अपने सपनों की बलि चढ़ा देता है....
भारत में बाल-मजदूरी पर प्रतिबंध लगे 23 साल हो गए है, लेकिन विश्व में सबसे ज्यादा बाल मजदूर यहीं हैं...खदानों, कारखानों, चाय बागानों, होटलों, ढाबों, दुकानों आदि हर जगह इन्हें कमरतोड़ मेहनत करते हुए देखा जा सकता है....कच्ची उम्र में काम के बोझ ने इनके चेहरे से मासूमियत नोंच ली है...इनमें से अधिकतर बच्चे शिक्षा से दूर खतरनाक और विपरीत स्थितियों में काम कर रहे है...उन्हें हिंसा और शोषण का सामना करना पड़ता है...इनमें से कई तो मानसिक बीमारियों के भी शिकार हो जाते हैं..बचपन खो करके भी इन्हे ढग से मजदूरी नहीं मिलती....भारत में अशिक्षा, बेरोजगारी और असंतुलित विकास के कारण बच्चों से उनका बचपन छीनकर काम की भट्ठी में झोंक दिया जाता है....गंभीर बात है कि बाल अधिकारों का मुद्दा परिचर्चाओं की शोशेबाजी में उलझा हुआ है या फिर एनजीओ अथवा सरकारी महकमों की दिखाऊ परियोजनाओं का हिस्सा बनकर रह गया है...देश में जो बाल मजदूर हैं, वे गरीब माता-पिता के बच्चे हैं....ये माता-पिता इसलिए गरीब हैं क्योंकि या तो वे बेरोजगार हैं या उन्हें साल भर में 50-60 दिन से ज्यादा रोजगार नहीं मिलता....इन लोगों को सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम मजदूरी तक नहीं मिलती...बच्चों को इसलिए काम करना पड़ जाता है...आखिरकार बाल मजदूरी को न रोक पाने में आखिर कौन दोषी हैं.आखिर इसका ठीकरा किस पर फोड़ा जाए..आखिर कौन नहीं चाहता कि बाल मजदूरी पर रोक लगे...कहीं न कहीं समाज के वे रसूखदार लोग हैं...जो कम मजदूरी के चक्कर में इन बच्चों के हाथों में भारी-भरकम औजार पकड़ा देते हैं...और जब इसका जवाब उनके मांगा जाता है..तो जवाब देने से भी बचते नजर आते हैं..बच्चे देश के भविष्य हैं..देश के कर्णधार है..लेकिन देश का बचपन कहां जा रहा है...इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं...बहरहाल जब तक शासन और प्रशासन द्वारा बाल श्रम को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाएगा...तब तक बदस्तूर बाल श्रम के ऐसे नजारा हमें देखने को मिलते रहेंगे......
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