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रेड रिबन इन विलेज

एड्स एक जानलेवा रोग...इस रोग को लेकर एक खास दिन मुकर्रर किया गया है..एक दिसंबर...जिस दिन एड्स को लेकर जागरूकता के कई कार्यक्रम सुनने और देखने को मिलते हैं..पिछले कई सालों से विश्व एड्स दिवस पर मैं रिपोर्टिंग करता आ रहा हूँ..लेकिन इस बार एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने के कारण वंचित रह गया..खैर जो भी हो...लिहाजा मैंने अपने ब्लाग पर ही लिखने की ठानी...लेकिन सोचता रहा..क्या लिखूँ..हमेशा की तरह वही घिसी-पिट्टी कहानी..या...एड्स को लेकर सामाजिक संगठनों की बखान जो वे आज के दिन करते हैं...लेकिन इतना सब होने के बावजूद भी इस पर कोई खास लगाम नहीं लगाया जा सका..ब्लाग पर कुछ नया देने के लिए मैंने घुमने का प्लान बनाया..ग्रामीण इलाकों की और निकला...जहां लोगों से बातों-बातों में एड्स के बारे में जानने की कोशिश की....लेकिन कोई भी सीधे मुंह इस बारे में बात करने से हिचकते रहे..एड्स को लेकर आज भी लोगों में कई भ्रांतियां व्याप्त हैं...जिसकी कमी इन ग्रामीण इलाकों में दिखी...स्वंय सेवी संगठन तो लाख ढिंढोरे पिटते हैं कि वे एड्स के लिए कई जागरूक कार्यक्रम चला रहे हैं...लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है...
विश्व एड्स दिवस के दिन कोशिश की जाती है कि इस लाइलाज बीमारी के प्रति जागरुकता फैलाने की..जिससे न सिर्फ़ लोग इससे बच सकें बल्कि बीमारी का शिकार बन चुके लोगों के प्रति भी भेदभाव को कम किया जा सके..जिसकी कमी साफ नजर आती है..विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया में एड्स के मरीजों की संख्या तीन करोड़ 34 लाख तक हो गई है, जिसमें 21 लाख बच्चे हैं. जबकि 2008 में तक़रीबन 27 लाख नए लोग एचआईवी और एड्स से पीड़ित हुए. वायरस के शिकार ज़्यादातर लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों से हैं लेकिन आज एड्स दुनिया भर के सभी देशों के पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के लिए ख़तरा बना हुआ है. इस रोग का पहली बार 1981 में पता चला और अब तक ढाई करोड़ लोग बीमारी से मर चुके हैं और तकरीबन हर दिन साढ़े सात हज़ार लोगों को नया संक्रमण होता है..एड्स आज अपने 28वें साल में पहुंच गया है...भारत की अस्सी फीसदी आबादी गावों में रहती है...अपने अधिकारों से अनभिज्ञ गरीब, तिरस्कृत और पिछड़ी जातियों के लोग एड्स से सर्वाधिक प्रभावित हैं...कितने तो उचित अस्पतालों तक नहीं पहुंच पाते हैं...गावों में एक तो प्रशिक्षित डाक्टर और स्टाफ नही मिलते हैं और मिलते भी हैं तो वहा दवाएं नहीं रहती हैं..अस्पतालों के बरामदों में बच्चे पैदा होना आम बात है...ग्रामीण भारत में टीबी आज भी असाध्य रोग के रूप में जाना जाती है...ग्रामीण आबादी की स्थिति भी हमारे यहा कुछ अच्छी नहीं है...आज ग्रामीण और पिछड़ी आबादी में एचआईवी-एड्स बुरी तरह फैल गया है...इन क्षेत्रों में अशिक्षा, उच्च स्तर पर व्यप्त है...सरकारी और निजी, दोनों स्कूलों से एड्स मरीज के बच्चों को निकाल बाहर कर दिया जाता है...जाति, पंथ, धर्म और आर्थिक विषमताओं के अलावा एचआईवी के कलंक से भी गरीब बुरी तरह पीड़ित हैं....सरकार, स्वयंसेवी संस्थाओं और आर्थिक सहायता देने वाली अन्य संस्थाएं विभिन्न पुनर्वास योजनाओं में करोड़ों रुपये खर्च करती हैं, लेकिन पीड़ितों तक ये सुविधाएं नहीं पहुंच पाती हैं...एचआईवी-एड्स योजनाएं धीमी होने और सीमित लोगों तक पहुंचने के चलते इसके प्रसार का अनुपात बढ़ता ही रहता है....शहरी और ग्रामीण भारत में मध्यम वर्गीय व निम्न मध्यम वर्गीय दोनों आबादी निवास करती हैं...इनमें एक बड़ी संख्या एचआईवी मरीजों के साथ रहती है...इनमें अधिकाश नौकरीपेशा या छोटे व्यावसायिक हैं...उनकी आय सिर्फ जीने भर के लिए पर्याप्त हो पाती है...वे अस्पताल और दवाओं के भारी भरकम खर्च को नहीं उठा सकते...ऐसे लोगों के लिए देखभाल, सहयोग और इलाज नहीं मिल पाता, क्योंकि ये लोग धनशक्ति के बल पर एड्स को नही छिपा सकते हैं...अंतत: इन्हें बेमौत मरने के लिए छोड़ दिया जाता हैं...स्वस्थ रहने का अधिकार संविधान के अनुसार स्वास्थ्य हमारा मूलभूत अधिकार है...इक्कीसवीं सदी में रहते हुए भी कम ही लोगों इसकी जानकारी है...हमारी सरकार और नेतागण हर भारतीय को शिक्षित करने की बात करते रहते हैं, पर अब वक्त आ गया है कि सभी नागरिकों खासतौर से ग्रामीणों को बताया जाए कि स्वास्थ्य उनका मूलभूत अधिकार है...अभी तक भारी संख्या में एचआईवी पीड़ितों को इलाज करने से सार्वजनिक अस्पतालों में मना किया जा चुका हैं....एचआईवी मरीजों को इलाज से मना करना अपराध के दायरे में आता है....एचआईवी और एड्स जैसी महामारी से लड़ते हुए मूलभूत मानवाधिकारों की रक्षा करते हुए ही हमें आगे बढ़ना है....मानवाधिकारों के हनन से ही सेक्स वर्करों और नशेड़ियों को एचआईवी से संक्रामित होने के अत्यधिक खतरे के सामने छोड़ दिया गया है...हर वर्ष हम विश्व एड्स दिवस मनाते हैं और अब यह हमें मौका मिला है कि मानवाधिकारों की रक्षा करते हुए हम एड्स के प्रसार को रोकने के लक्ष्य को प्राप्त करें....मैंने इस बार विश्व एड्स दिवस पर कोई खास कव्हरेज तो नहीं किया....लेकिन अपने ब्लाग के जरिए ही सही..ग्रामीण इलाकों में इसके परिदृश्य के यहां लाने की कोशिश की....

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