एक शहर...पहचाना सा..
लेकिन आज..अनजाना सा...
सभी यहां हैं..अपना सा..
लेकिन अपनेपन में बेगाना सा..
सभी हैं..अपने-आप में खोयें-खोयें से..
शहर की गलियां वहीं..
चौक-चौराहें वहीं..
फिर भी लगती है...तन्हाई सी
न जाने क्यों..
जिसे समझता था..अपना सा
वह हो गया बेगाना सा..
एक शहर पहचाना सा...
आज हो गया बेगाना सा...
लेकिन आज..अनजाना सा...
सभी यहां हैं..अपना सा..
लेकिन अपनेपन में बेगाना सा..
सभी हैं..अपने-आप में खोयें-खोयें से..
शहर की गलियां वहीं..
चौक-चौराहें वहीं..
फिर भी लगती है...तन्हाई सी
न जाने क्यों..
जिसे समझता था..अपना सा
वह हो गया बेगाना सा..
एक शहर पहचाना सा...
आज हो गया बेगाना सा...
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