प्रभाष जोशी के निधन की खबर पाकर मैं स्तब्ध हूं.. वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी एक ऐसा खालीपन छोड़ गए हैं जिसकी भरपाई कर पाना मुश्किल होगा..पत्रकारिता जगत के सशक्त हस्ताक्षर प्रभाष जोशी के निधन से वह कलम खामोश हो गई है..जिससे निकली स्याही एक नई इबादत खड़ी करती थी...अखबारों के पन्नों पर जब वह स्याही उकेरती थी...तब मानो कई सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दे उद्वेलित हो उठते थे..प्रभाष जोशी के साथ जब मेरी रायपुर के एक होटल में उनसे मुलाकात हुई...तब मैंने सोचा भी नहीं था कि इस बार की चाय और मीडिया दुनिया की चुस्की उनके साथ मेरी आखिरी मुलाकात है..जोशी जी के साथ बिताई गई वह शाम मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा....जोशी जी ने बड़े प्यार से ही मेरे सिर पर हाथ फेरा था...और मुझे कई नेक सलाह भी दिए थे...उन्होंने आज की पत्रकारिता पर खेद प्रकट हुए कहा था कि आज की पत्रकारिता अपने पथ से भटक गई है...और इसके खिलाफ मैं हमेशा लिखता रहूँगा...हिन्दी पत्रकारिता के प्रमुख स्तंभ प्रभाष जोशी के निधन के साथ ही हिन्दी प्रत्रकारिता के एक युग का अवसान हो गया..उन्हें परंपरा और आधुनिकता के साथ भविष्य पर नजर रखने वाले पत्रकार के रूप में सदा याद किया जाएगा...जनसत्ता के संस्थापक संपादक रहे प्रभाष जी की लेखनी में भारतीय मिट्टी की ख़ुशबू, उसके सरोकार और आम आदमी की भाषा थी...इस विशिष्ट शैली में राजनीतिक विश्लेषण से भरा उनका लोकप्रिय स्तंभ 'कागद कारे' अब उनकी कमी महसूस कर रहा है..उनके निधन के बाद पहला रविवार जनसत्ता के इतिहास का सबसे दुखद रविवार रहा... जनसत्ता के इतिहास में यह ऐसा पहला रविवार था...जब जनसत्ता में कागद कारे और संसार से प्रभाष जोशी नहीं है. उम्मीद थी कि जनसत्ता कम से कम एक रविवार उस कागद कारे के हिस्से को कोरा छोड़ देगा जहां पिछले लगभग डेढ़ दशक से प्रभाष जी कागद कारे लिखते थे. बिना कागद कारे रविवार को लेआउट नये तरह से डिजाइन किया हुआ था. पृष्ठ संख्या 6 और 7 प्रभाष जी ने कागद कारे नहीं किये हैं. बल्कि उनकी याद में उन्हें जाननेवालों ने प्रभाष जी को याद करते हुए कागद कारे किए हैं....वहीं वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी का निधन न सिर्फ पत्रकारिता, बल्कि देश के जनसंगठनों के लिए भी अपूरणीय क्षति है..ऊनके निधन से दोनों ही स्थानों पर निर्वात महसूस किया जा रहा है...जोशी जी देशभर के सामाजिक समूहों से न सिर्फ जुड़े रहे, बल्कि उन्होंने ऐसे समूहों ने सक्रिय भागीदारी भी की...ऊन्होंने देश के किसानों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और वंचित वर्गों के मुद्दे न सिर्फ अपनी लेखनी के माध्यम से उठाये, बल्कि वे उनसे करीब से जुड़े भी रहे...जिनकी आवाज को उन्होंने अपनी लेखनी से बुलंद भी किया...हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में प्रभाष जोशी युग लिखा जाएगा..उनके द्वारा लिखे जाने वाला क्रिकेट कालम भी सूना-सूना सा हो गया..जिस कलम में वे क्रिकेट को उस लय में पिरो देते थे..जिसे पढ़ने के बाद वह दृश्य एक-एक कर आंखों के सामने दिखती प्रतीत होती थी..आस्ट्रेलिया-इंडिया का पांचवा वन डे मैच जिसमें सचिन की आतिशी पारी के बावजूद भारत की हार के साथ हिंदी पत्रकारिता के शिखर पुरुष और क्रिकेट के जबर्दस्त रसिक प्रभाष जोशी इतने मायूस हुए कि दुनिया को ही अलविदा कह दिया...प्रभाष जी जो क्रिकेट और टेनिस के दीवाने थे..अपने शब्दों के जरिए पाठकों और क्रिकेटप्रेमियों की चेतना को झकझोरते रहे, सचिन के 17 हजार रनों पर लिखने की तमन्ना को दिल में लिए ही जहां से कूच कर गए....अफसोस, उनका सफर वहां खत्म हुआ, जहां असंभव को संभव बनाने देने वाले सचिन तेंदुलकर अपने आसाधारण खेल से दुनिया की नंबर एक क्रिकेट टीम ऑस्ट्रेलिया के मुंह से जीत को छीन कर भारत के हक में लाते-लाते रह गए...जहां सचिन सबसे ज्यादा रन बनाकर भी टीम को जीत नहीं दिला पाए, उसी तरह प्रभाष जोशी भी सचिन तेंदुलकर के रिकॉर्ड पर लिखने से पहले चले गए ...दरअसल, प्रभाष जी पेशेवर पत्रकार की तरह क्रिकेट पर कलम नहीं चलाते थे, बल्कि एक विकट क्रिकेटप्रेमी की तरह इस खेल और इसके खिलाडि़यों पर अपनी भावनाएं व्यक्त करते थे...लेकिन कागद कारे, क्रिकेट पर बेबाकी राय और किसानों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों एवं वंचित वर्गों के मुद्दों की लेखनी अब खामोश सी हो गई है..जिसकी भारपाई कोई नहीं कर सकता...
मीडिया का व्यवसायीकरण होता जा रहा है..व्यासायी घराने अपना हित साधने के लिए मीडिया और उसके संसाधनों का जबरदस्त दोहन कर रहे हैं...उनके हित के आगे खबरों की कोई अहमियत नही..चाहे वह खबर सामाजिक सारोकार से ही जुड़ा हुआ मुद्दा क्यों न हो...जब हम लोगों को एक पत्रकार के रूप में दायित्वों को बताया गया तब हमने सोचा था कि हम अपने दायित्वों के लिए किसी से समझौता नहीं करेंगे...लेकिन दायित्वों का पढ़ाया गया पाठ अब किताबों तक ही सीमित रह गया है...कौन सी खबर को प्रमुखता से दिखाना है..और कौन सी खबर को गिराना है...ये वे लोग निर्धारित करने लगे हैं..जिनका पत्रकारिता से कोई सारोकार नहीं है...आज का पत्रकार सिर्फ कठपुलती बन कर रह गया है...डमी पत्रकार..इन्हें वहीं करना है...जो व्यसायी घराने के कर्ता-धर्ता कहें..मीडिया के व्यवसायीकरण ने एक सच्चे पत्रकार का गला घोंट दिया है..घुटन भरे माहौल में काम की आजादी छीन सी गई है..व्यवसायी घरानों ने मीडिया को एक जरिया बनाया है..जिसके जरिए वह सरकार तक अपनी पहुँच बना सके..और अपना उल्लू सीधा कर सके..अपना हित साधने के लिए इन्होंने मीडिया को आसान जरिया चुना है...मीडिया के इस
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